पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४०९

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कोनि कालवियत • केलज्ञान-सज्ञा पु० [सं०] १ समय की पहचान । स्थिति अौर कर लिया था और अपने शरीर को चार मागो मे बांटकर अवस्था की जानकारी। २. मृत्यु का समय जान लेना। सब कार्य करता था । अत में यह विष्णु के हाथ से मारा गया कालज्येष्ठ--वि० [सं०] उम्र में वड़ा। जिसकी अायु अधिक हो (को०] | और दूसरे जन्म में कैसे हुआ है। कालतुष्टि-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] साक्ष्य में एक प्रकार की तुष्टि । कालपक्व–वि० [सं०] समय पर स्वभावत. या अपने प्राप पक्व (को०] विशेष—यह विचारकर संतुष्ट रह्ना कि जब समय आ जायेगा, कालपट्टी-सी स्त्री० [पुर्त० कोलफिटी] जहाज की सीवन या दरार तब यह बात स्वयं हो जायेगी। में सन आदि दूसने का कार्य । कालत्रय-सी पुं० [स०] तीन काल-भूत, वर्तमान और भविश्य । क्रि० प्र०—करना ।—होना। कालदेड-- सज्ञा पुं० [सं० कालदण्ड] १ यमराज का दई । उ०-वज्र कालपर्ण-सज्ञा पुं० [सं०] एक फूलवाला पौधा । तगर (ो । ते कठोर हैं कैलाश ते विशाल, कालदड ते कराल सब कान कालमा बी० [म०] काली तलसी । गावई ।-केशव (शब्द॰) । २ मृत्यु (को०) । कालपर्यंय-संज्ञा पुं० [सं०] काल का अतिक्रमण । निश्चित समय कालदत्त-वि० [सं०] समय की दी हुई। परिस्थितृवश प्राप्त । उ०- का उल्लंघन [को०) ।। उभरी इसको कठिन स्वचा पर कालदत कर्कशता, नहीं लूटे कालपर्याय-सा पुं० [सं०] समय की गति । कालचक्र [को०] । पाई है उमइसकी हार्द सरसता !--दैनिकी, पृ० ३७ । । कालपाश-संज्ञा पुं० [सं०] १. समय का वैवना। समय का वह कालदमनी-सवा स्त्री० [सं०] दुर्गा । नियम जिसके कारण भूत प्रेत कुछ समय तक के लिये कुछ कालदष्ट-वि० [सं०] काल द्वारा उसी प्रा या काटा हुअा को०] । अनिष्ट नही कर सकते । २ यमपाश । यमराज का चघन् । कालघमं—सा पु० [सं०] १ मृत्यु । विनाश । अवसान । उ०—- कालपाशिक-संज्ञा पुं० [सं०] वधिक । जल्लाद []। । । । सुगर 'मुग जय गयो देवपुर काले धर्म कहें पाई । अशुमान को । कापुस्प-सच्चा पुं० [सं०] १ ईश्वर का विराट रूप। विराट रूप भूप कियो तब प्रकृत प्रजा समुदाई ।—रवृराज (शब्द०)। 'भगवान् । २ काल । ३ यम के दूत । ३०-अक्षर के २. वह व्यापार जिसका होना किसी विशेष समय पर देखते ही वह अड़ा फूट गया और उसमें से कालपुरुष उत्पन्न स्वाभाविक हो । समयानुसार धर्म । जैसे बसत मे मौर लगाना, हुआ ।-कवीर म०, पृ० ७ । ग्रीष्म ऋतु में गरमी पड़ना । ३. समयानुकूल प्रभाव [२] । कालपूरुप-सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'कालपुरुष' (को॰] । ४. अबसर या समय के अनुकूल अाचरण [को०] । कालपृष्ठ--सज्ञा पु० [सं०] १ मृग या हरिण का एक प्रफार । २ कालधारणा--सज्ञा स्त्री॰ [सं०] समय का विस्तार (को०] । क्रौंच पक्षी । ३, बगुला। ४ केक पक्षी [को०)। कालवौत--वि० [सं०] सोने या चांदी का ये ।। कालपृष्ठक--सच्चा पु० [सं०] १ कर्ण के धनुष का नाम । २. धनुष । कालनर- ज्ञा पुं० [सं०] (ज्योतिष शास्त्र के अनुसार) मानव शरीर कमान [को०)। का अाकार । मनुष्य के शरीर की प्रतिमा ]ि । कलिप्रभात-सज्ञी पु० [सं०] शरत (को॰] । कालनाथ-सज्ञा पुं० [स०] १. महादेव । शिव । २ कालभैरव । । विशेष—वप के बाद आनेवाले अश्विन प्रौर काकि दो महीने काशीस्य भैरव विशेप । उ०—ोक वेदहू विदित बारानसी वर्ष में श्रेष्ठ समय के रूप में माने जाते हैं। की वडई वासी नर नारि ईज अविका सरूप हैं । कालनाथ कालप्रमेह-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का प्रमेह रोग । कोतवाल दहकारि दउँपानि सभासद गणप चे अमित अनुप हैं। विशेप -- इसमे काला पेशाब आता है। सुश्रुत ने इसे अम्लग्रमेह - -तुलसी (शब्द०) । लिखा है। कालनाभ--सज्ञा पु० [सं०] हिरण्याक्ष दैत्य के नौ पुत्रों में से एक ।। कालफांस---सज्ञा पुं० [स. कालपशि ] काले का पाठ । काल की । कालनिघि--सुज्ञा पुं० [स०] शिव । महादेव । काशीश (को॰] । फाँसी । उ०—बुझो काल फाँस नर नारी, पूर्व जन्म तोहि कालनियोग-संज्ञा पुं० [सं०] भाग्यफल । नियति को०] । लीन्ह उबारी ।—कबीर सा॰, पृ० ७२ ।। कालनियस--सज्ञा पुं० [सं०] गुग्गुल ।। कालनिशा--सुज्ञा स्त्री० [सं०] १ दीवाली की रात 1२ अत्यत काली कालेजर से ज्ञा पुं॰ [सं० छात+हिजेर] वह भूमि जो बहुत । अंधेरी भयावनी रात । ' दिनो से जोती वोई न गई हो। बहुत पुरानी परती। ' २ful ३० कालनेमि' । उ०—पहिले कालबादी@---वि० [सं० कालवादिन] काल (समय) को मानने | झालनेम हो हुतौ । विष्णु सदा को वैरी सु त ।-नद अ'०, वाला । उ०-वैसेविका शास्त्र पुनि कालवादी है प्रसिद्ध ' पृ० २२३ ।। पातंजलि शास्त्र मह योगवाद लयो वै ।-नु दर ५०, झालनेमि–संज्ञा पुं० [सं०] १ रावण की मामा एक राक्षसे जो मा० २, पृ॰ ६२१ । हनुमान जी को उस समय छलनी चाहता था, जब वे संजीवनी काबवियत -सेञ्च पुं० [क झालिब वीर धारण करना, साने जा रहे थे । २.एके दानवे की नाम । ३०वी मोर झा, दोनों मिलकर छविय अपर। , विशेष---इसने देवताओं को पराजित कर स्वयं पर अधिकार -वित्ती, पु० ३९५!