पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४०८

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। कालर्कटकट ६२४ कालज्ञ ६ यकृत । ७ एक राक्षस का नाम जो कलिक नभिक स्त्री से कालकोठरी-सच्चा स्त्री० [हिं० कोल + कोठरी] १ जलाने की एक उत्पन्न कश्यप का पुत्र था । ८ एक प्रकार का अन्न (को०)। बहुत तग मोर अँधेरी वोटरी जिसमें कैद तनहाईवाले कैदी काल कटकट- सज्ञा पुं॰ [सं० फालफटन] शिव [को॰] । रखे जाते हैं । २ कल कले के फटे विलियम नामक किले कालकरज-सज्ञा पुं० [सं० कालकरञ्ज] एक प्रकार फा के जा जिसकी को एक तग कोठरी जिसमें सिराजुद्दौला नै अँगरेजों को ऊपरी छाल साधारण कजे की छाल से कुछ अधिक नीली कैद किया था । होती है । काला कजा । कालक्रम- सच्चा पु० [सं०] कान की गति । ममय का अतिक्रमण [को०)। कालकणिका, कालक-सच्चा श्री० [सं०] दुर्भाग्य । भाग्य- कोलक्रियास ०[मे०] १ समय का निश्चय । २ मृत्यु किने । हीनता [को०] । कालक्षेप-सद्या पुं० [मं०] १ दिन काटना । समय बिताना । वक्त कालकर्मा-- सच्चा पुं० [सं० कोलकर्मन्] १ मृत्यु । नाश (को०] ।

  • गुजारना । जैसे-वह हीन ब्राह्मण किसी प्रकार अपना काल-

कालकलायसवा पुं० [सं०] कालो मटर या दाल [को॰] । क्षेप करना है । २ विलवे देर (को॰) ।

  • कालकल्लक- सच्चा पुं० [सं०] पानी में रहनेवाला साँप । डेडहा [] क्रि० प्र०—करना ।—होना ।।

कालकवि-सच्ची पुं० [सं०] अग्नि । कालखज, कालखजन- सी पुं० [सं० फालखञ्ज झालपञ्जन ] १ कालका- सच्चा ओ० [सं०] दक्ष प्रजापति की एक कन्या ।। यकृत । २ वरपट (को॰) । विशेष -यह कश्यप को यही थी और इससे नरकी अौर कालक कालखड-मं० पुं० [ संक्षा कालखण्ड ] १ परमेश्वर । उ०- मानो नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए थे। फोन्ही काल ही की कारखड सहन केव (शब्द॰) । २ का कामुक - सज्ञा पुं० [सं०] वाल्मीकि के अनुमार खरदूपणा की सेना यकृत (को०)। ३. बवट को॰] । | का एक सेनापति जिसे रामचंद्र ने मारा था । कोलगगा---सा स्व० [सं० कालगङ्गा ] १ वह गगी जिसका रंग कालकाल-सज्ञा पुं० [सं०] १ ईश्वर । २ शिव [] । केला हो, अथति यमुना नदो । २ लंका द्वीप को एक नदी । कालकील-सज्ञा पुं० [सं०] ध्वनि । को वाहन (को०] । कालगडत संज्ञा पुं० [हिं० काला + ग+ऐत (प्रत्य०) वह विपघर कालकु ज–सझा पु० [सं० कालकुञ्ज ] विष्णु (को॰] । साँप जिमके ऊपर काले गड़े वा चियि होती हैं । ' कालक्रु ठ- सज्ञा पुं॰ [ सं० कालकुण्ठ ] यमराज । यम (को॰) । कालगौतम-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] एक ऋपि का नाम ।। फाल कूट- सज्ञा पुं॰ [सं०] १ एक प्रकार का अत्यंत भयकर विप । कालग्रथि-सा {सै० फालग्रन्य] वर्ष । वत्सर । साल (को॰) । का विशेप–इसे काला बेच्छनाग भी कहते हैं । भविप्रकाश के कालचक्र—सझा पु० [सं०] समय का चक्र । म मय का हेरफेर। अनुमरि यह एक पौधे को गोद है जो ऋ गवेर, कोकण और जमाने की गदिश । उ०कालचक्र में हो दवे, अाज तुम मलय पर्वत पर होता है। शुद्ध करने के लिये इसे तीन दिन राजकुबर।–अपरा, पृ० ११ । गोमूत्र में रखकर सरसों के तेल से भीगे कपड़े में बांधकर कुछ विशेष-दिन रात अादि के वरवर आते जाते रहने से काल को दिने तफ रखना चाहिए । शुद्ध रूप में कभी कभी सन्निपात, उपमा चक्र से देते आए हैं । मत्स्यपुराण में पूर्वाह्न, मध्याह्न, श्लेष्मा अादि दूर करने के लिये इसका प्रयोग होती हैं। अपराह्न को कालचक्र की नाभि, सवत्सर, परिवत्सर आदि २ सिकिम और भूटान में होनेवाले साँगिया की जाति के एक को अारे और छह ऋतु को नेमि लिखा है। जैन लोग भी पौधे की जड़ जिसमें छोटी छोटी गोल चित्तियाँ होती हैं । उत्सपिणी और अवसपी काल में छह छह आरे मानते हैं । ३ समुद्रमर्थन के वाद निकला हुअा विप जिसे शिव ने पान २ उतना काल जितना एक उत्तम भणी और अवसपणी में लगता किया। हलाहल (को॰) । है । ३ एक अस्त्र का नाम । ४ कान का पहिया (को०)। ५ भाग्यचक्र । भाग्य का हेरफेर (को०)। ६ सुर्य (को०)। ‘कालकूटक-सज्ञा पुं॰ [सं०] विप । गरल । जहर (को०)। कालचित-सज्ञा पुं॰ [सं०] काल या मृत्यु होने के लक्षण किये। कालकृत्-सच्ची पुं० [सं०] १ परमात्मा । ईश्वर ! २ मोर पक्षी। कालजा - सज्ञा पुं० [हिं० कलेज] ३• 'कलेजा'। उ०—कार्ट ३ सूर्य को०] । नाहर कालजा, छक यो अचरज छाक ---वकीनं ०,भा० । कालकृत-वि० [सं०] १ काल या ऋतु से उत्पन्न ! २ निश्चित । पृ० २४।। | नियत् । ३ न्यस्त । न्यास के रूप में रखा हुआ ! उधार दिया कालजुवारो-सज्ञा पुं० [हिं० काल+जुवा] वड़ा जुवारी। गजब हुआ । ४ बहुत पहले का कृत या किया हुआ [को॰] । | का जुवारी ।। , कालकृत--सज्ञा पुं० सुर्य (को॰] । | कालजोपक–वि० [सं०] समय पर जो कुछ मिन जाय वही खा । काज केतु-सच्ची पुं० [सं०] एक राक्षस का नाम । उ०—कालकेतु । पीकर संतुष्ट रहनेवाला (को॰) । || निसिचर तह वा । जेहि सूकर ह्व नृपहि भुलावा ।- कालुज्ञ-सुमा १०[सं०] १ समय के हेरफेर को ज'नने वाला व्यक्ति। मानस, १1१७० । २ उपोतिपो । ३ मुर्गा । | कालकेय-सच्चा पुं० [सं०] राक्षस । दैत्य । उ०--दैत्य काले य, कालकेय कालज्ञ-वि० १ अवसर को पहचानकर काम करने वाला । २ तथा कालकूज कहे गए हैं ।--प्रा० भ० १२, पृ० ८९ । मृत्यु को जाननेवाना (को॰) ।