पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४०४

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कार्कण ९२० गर्म मे बहुतायत से दबा होता है । इसका पेड ४० फुट तक ऊँचा कानस--सच्च। पु० [अ०] दे० 'कारनिस' । नृ०--प्रतिदान के होता है । छाले दो इंच तक मोटी होती हैं। एक बार छील कानिस पर धरे हुए शीशे का वस और बोतल चमक उठे । लेने पर यह छाल चार या छह वर्ष में फिर पैदा हो जाती । पर उस क्रोध या विजली बुझा दी ।प्राकार०, पृ० ५०।। है । इसका वृक्ष १५० वर्ष तक रहता है। कादंभ-वि० [सं०] वि० ० कादमी ] कोचड से भरा हुआ या कार्कण - वि० [सं०] किसान से संबंध रखनेवाला (को०)। सना हुआ । २ कदम नामक प्रजापति सवधी । कृदंभ का कैलास्य सुज्ञा पुं० [सं०] गिरगिट होने की स्थिति या दशा [को०] उत्पन्न । ३ कदम का किया या बनाया हुआ । काकवाकव–वि० [सं०] कृकाकु या कुक्कुट से सबंध रखनेवाला कादंमक, कार्दमिके---वि० [सं०] [वि॰ स्त्री० कदमको, कादमिकी (को॰) । दे० 'कादम' (को॰) । कार्कश्य-सच्चा पुं० [सं०] १ कर्कशता । कठोरपन । २ दृढ़ता । ३ कापंट--संज्ञा पुं० [सं०] १. वादी । न्यायार्थी । २ अभ्यर्थी । उम्मीदठोस होना । ठोस दशा । ४ कटोरहृदयता । निष्ठुरता। ५ वार। ३. चिथड़ा। ४ लाख (को०)। मोटा या मेहनत का काम (को॰) । कार्पटिक-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०) १ तीययात्री २ पवित्र तीयंजन ते कार्कीक- वि० [सं०] सफेद घोड़े जैसी (को०)। जाद र जीविका प्राप्त करने वाला व्यक्ति 1 ३ तीर्थयात्रियों का काज -सज्ञा पुं० [सं० कायं ] दे० 'कार्य' । उ०-१ जो मन चाहि सार्थ या कारवां । अनुभवी व्यक्ति । ५. पर पिडोपजीवी । है सो तेरो कार्ज होइगौ !-- पोद्दार अभि० ग्र०, पृ० ४८४ । ६ घूत । वचक । ७ विश्वासपात्र । अनुगामी (को॰) । कार्ड–सच्चा पुं० [अ०] १ मोटा कागज । मोटे कागज का तुरुता । कार्पण--सा अ°ि (स०) प्रसन्नता (को०)। | २ छोटे तथा मोटे कागज पर निखा हुआ खुला पत्र । ३ पत्ते कार्पण्य-संज्ञा पुं॰ [सं०] १ कृपया होने का भाव । कृपणता । का कागज । कजूसी । देखोली । २ दया ! सहानुभूति (को०)। ३. गरीबी यौ० - पोस्ट कार्ड । विजिटिंग कार्ड । प्लेइंग कार्ड । बेजेज कार्ड। धनहीनता (को॰) । का - सच्चा पुं० [सं०] १ कान का भूपण । कनफूल । २ कान का । कामणि-सच्चा पुं० [सं०] कृपाणयुद्ध । युद्ध । सग्राम [वै] । मेल । ३ वृषकेतु का नाम (को॰) । कापस–सच्चा पुं० [सं०] [जी० फापसी १ कपास का बना कार्ण-वि० १ कान संबंधी । २ कणं सवधी (को॰) । कपडा । २, कपासे । उ० ----व्यापी है जिसमें विभा वलय सौ कार्णछिद्रक---सज्ञा पुं० [स०] एक प्रकार का कुआ [को॰] । नीलाभ श्वेत प्रभा । होते हैं सित मधखड़ जिसमें कार्पास के काणटि भाषा--संज्ञा स्त्री० [सं०] कनट या कन्नड़ देश की भाप । पु ज से । सपकार नितात दिव्य जिसम नीहारिकाएं मिली। | वन्नई भाषा (को०)। फैला है यह क्या पयोधि पय सा सवये अाकाश में ।-पारिकार्तयुग--वि० [सं०] कृतयुग या सत्ययुग संबधी। सतयुग से सबध । जात, पृ॰ ३० । ३ कागज (को॰) । रखनेवाला कि० ।। या-कार्पासास्थि = कपास फा बाज। कार्तवीर्य-सक्षा पु०[सं०] कृतवीर्य का पुग्न सहस्रार्जुन जिसकी राज कापस–वि० कपास फा । कपास फा बना । कपास सुवघी (को०)। | धानी माहिष्मती नगरी थी । कपसतातव--सज्ञा पुं० (सं० फापसतान्तव ) कपास के सुत का चुनी विशेष--यह राजा तत्रशास्त्र का प्राच।यं माना जाता है। कहते हुमा कपडा [को॰] । कार्पासनलिका, कापसनासिका--सच्ची चौ० (सं०) तुकुम (को०] । हैं कि इसे परशुराम जी ने मारा था। इसके हजार हाथ थे। कापससौत्रिक--वि० [सं०] कपास के सूत का बुना हुआ (को०)। कार्तस्वर-सच्ची पुं० [सं०] १ स्वर्ण । सोना । २ धतूरा (को॰) । कात तिक--वि० [सं० कातन्तिक भविष्यद्वक्ता । ज्योतिषी (को०)। कार्पासिक-वि० [सं०] वि० बी० कार्पासिको कपास से या कपास कार्तिक–सम्रा पु० [सं०] १.एक चाद्र मास जो क्वार और अगहन के का बना हुआ (को॰) । कापासिका-सच्चा चौ० [सं०] कपास का पौधा (को॰) । बीच मे पड़ता है। विशेष—जिस दिन इस मास की पूर्णिमा पड़ती है, उस दिन कार्पेट-सच्ची पु० [अ०] कालीन । गलीवा। उ० --घर का मालिक चद्रमा कृत्तिका नक्षत्र में रहता है, इसी से इसका यह नाम उसी घर में तस्वीरें टॉगकर कार्पेट बिछाकर उसपर सदा के पड़ा है। लिये अपनी छाप लगा देना चाहता हूँ ---रस, पृ० ६२} कार्बन--सच्चा पुं० [सं० दे० 'कावन' । २. वह सवत्सर जिसमे वृहस्पति कृत्तिका या रोहणी नक्षत्र में हो । कार्बोन--संज्ञा पुं॰ [अ॰] दे० 'कारवन' । उ०--हीरा और कोयला बार्हस्पत्य वयं । ३ कुमार स्कद का एक विशेषण । कातिको-सच्चा श्री० [स०] कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि [को]। दोनो कान हैं, उनम्र बन्ने का रसायनिक क्रिया भी एक सी कार्तिकेय--सच्चा फु० [सं०] कृतिका नक्षत्रमे उत्पन्न होनेवाले स्कदजी । है !-—श्रीनिवास ग्र०, पृ० १९५।। • धडानन । स०-आजनय को अधिक कृती उन कातिकेय से भी कार्बोनिक-वि० [अ०] दे० 'कारबोनिक' । लेखो, माताएँ ही माताए हैं जिसके लिए जहाँ देखो -साकेत पृ॰ ३८२ । काबलिक---वि० [अ०] दे० 'कारबौलिक' । पोक्रादिपप्रस =दिये थी मात्रा, पार्वेदी । कार्य--वि० [स०] परिथमी। मेहरवी । समशीन (ले०] । ।