पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४०३

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कर्क =- = -= - =-=- ६१६ कारीगरी कारीगरी--संवा ० [फा०] १ अच्छे अच्छे कान बनाने की का। कालरा-सा पुं० [५० कारह.] १ तु कनौ गीत, जिसमें रोग? का मूत्र वैद्य को दिखाने के लिये रखा जाता हैं । २. मूत्र । निर्माणकला । ३. सुदर बना हुआ काम । मनोहर रचना । पेशाव । कारीबरो-सा ही० [हिं० काली जीरी | दे० 'काली जीरी' । क्रि०प्र०--दिनाना। देवना। कुरोर-वि० [सुं०] करीर या वीस के कल्ले से निमित किये। मुहा०-कारा मिलना=अत्यंत प्रतिष्ठा होना । प्रत्य कारीप'--सा पु० [सं०] नूवे गोवर की ढरी । करीप का समूहको०] हेल-मेल होना ।। कारोय-वि० १. कारी या सूखे गोवर सुवंशी । २ सूखे गोवर ३. वारुद की कुप्पी जिनमें आग लगाकर शत्रु की अोर हँ कते हैं। चे उत्पन्न (को॰] । काहडिका, कारु डो-सज्ञा दी० [ सुं० कारुण्डिका, कारुण्डी ] जोक कारूप-वि० [सं०] करूप देश सेवघी । कल्प देश का । कारूप-सया पुं० १. कृरूप देश का निवासी । २. भुवं । क्षुधा(को०)। च्चेि ।। ३ एक वर्णचकर जाति जिनका पिता ब्राय वैश्य और माता कार--वि० [ मुं०] १ करनेवाला ! वनानेवाला । २ कलावस्तु | वैश्य हो (को॰) । बनानेवाला । कला का रचयिता ।। मंत्र बनाने वाला । ४, कारेखैर--सज्ञा पुं० [फा० कार+सर] शुभ कार्य । उ०-वडा तुरत भीषण । भयकर (को०)। २ विश्वकर्मा (को०) । शिम (को०)। पैदा किया कर ना देर किया लाख खुशियां सैती कारेखेर । झारु या पुं० १. शिल्पी । करीगर। दस्तकार। | दक्खिनी॰, पृ० ७८ । का--अशी पुं० [अ० [धी० कासको ] १. शिल्पी । कारगर । २ कलाकार [को॰] । कारेणव-वि•[मुं०] हथिनी सबंधी । करेणु अवधी [को॰] । कारुवोरसा पुं० [सं०] १. वह जो चोरी करता हो। २ घृतं । कास्पाइँट-सज्ञा पुं० [अ० करेम्पाउँट] बह जो किसी समाचारपत्र में अपने स्थान की घटनाएँ प्रादि लिखकर भेजता हो । समावंचक (को०)।। चार पत्रों में संवाद अादि भेजने वाला । नावाददाता । कारुज- सा पुं० [सं०] १. शिल्प की वनाई वस्तु । २. शरीर पर का तिल आदि । ३ हाय का बच्चा । करभ । ४ गेल। ५. फारेस्पाइँस-सा पुं० [ ५० करेस्पोंडेंस ] पत्र आदि का भेजा वनीक ! चमट (को॰] । जाना और आना । पञ्ब्यवहार । कारुणिक-वि० [सुं०] [वि० बी० करुणिको] कारुणयुक्त ! कृपालु । कारोछ - सा घी० [हिं० कानछि] दे० का छ' । कारो@–वि० [हिं० कोला| दे० 'काला' । उ०-सिंघ अनन दयालु । पर जमे का पीरो गात । वल अमृत सुवै पानही अमृत देखि कारुण्य-- पुं० [सं०] करुणा का भाव । दया । मेहरवानी । इति !--नई ग्रं॰, पृ॰ १८४ । कारुनीक-वि० दे० [हिं०] ‘ानिक' । उ०—-कानीक दिनकर कारोनर-सा पु० [अ०] वह अफसर जिका काम जूरी की सहाकुल केतू । दून पठायउ तव हित हेतु ।—मानस, ६५३६ । यता से आकस्मिक या संदिग्ध मृत्यु, आत्महत्या तथा उन लोगों की कारुपय–सुझा पुं० [ सू० कारापय ] दे० 'कारापथ'। मृत्यु की जांच करना है जो दो फसाद में या किसी दुर्घटना कारुशासित--सा मुं० [सं० करुशासितृ] शिल्पियो या कारीगरो का के कारण मरे हो। निरीक्षक या उन्हें काम में लगाने वाला (को॰) । विशेष--हिंदुस्तान में प्रेसिडेंसी नगरी अयुत् क कत्ते, वबई करुशिल्पिगण-संज्ञा पुं॰ [ सू० ] शिल्पियो मौर कलाकारों का और मद्रसि में कानर होते हैं। ये प्राय छोटी अदालत के सुत्र (ले०) । जज या मजिस्ट्रेट होते हैं। इनके साथ जूरी वैटते हैं। ऐसी का -सा पुं० [अ० कारू] हजरत मूसा का चचेरा भाई जो वडा मौत के मामल इस अदालत में प्रति है जो गिरने, पड़ने, जलने घनी या, पर खैरात नहीं करता था। कहा जाता है ४० अस्त्र शस्त्र के लगने या अत्महत्या से हुई है। उदाहरणार्थ खच्चरो पर उनके खजानो की कु जियां चलती थी। कंजूसी किसी युवती की मृत्यु जलने छ हुई है। उसने स्वयं अमिहत्या के कारण अब उसके नाम का अर्थ ही कंजूस पड़ गया है । की या जल फिर मार डाली गई, साक्षी मार प्रमाण पर रही उ०-दो चार टके ही पे कभी रात गवां दू। कारू' का खजाना निर्णय करना इस अदालत का काम है। मोर किच्चा प्रकार की कम इनाम है मेरा।-भारतेंदु, ५ ०, भा० २,पृ० ७९०। कानुनी कारवाई करने या द६ का इये अधिकार नहीं है। यौ०–कार का खजाना=असोम धन । अनत संपत्ति । कुबेर इसका निर्णम हो जाने पर साधारण भदाई में किधी पद मामुन्ना चलता ।। को सो पत्ति । कारोवार--सया पुं० [फा० कारगर ] दे॰ 'कारवार। का-वि• कजूस 1 चखौल । भक्खीचूस । कृपण । काक–स्या पुसं०] [बी० कारूका] १. णिल्पकार । २. कलाकार कारो-वि० [हिं० काला झाला । उ०—-चपल चवन को फार वह मुख कारों कानो !--नद ग्र०, पृ० २११ ।। झान-सया देश ] घोड़ों की एक जाति । उकास्नी फ़ाकसबा पुं० [अ० एक प्रकार की बहुत है। इसका लुक की छवि जिसके बोतल में उगाने को डाट बनती है। काग । सदली स्याह कैनेत्री रूनी। नुकरा और दुकाव बोरता है छ। विशेष:--पद् एक प्रकार का घाइड है जो स्पेन र पढ्या। इन ।-सुदन ( शुन्द॰) । = -= - = - = - = - = चै] ।