पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४०२

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कारस्तानी कारीगर कारस्तानी-संज्ञा स्त्री॰ [फा०] १ कारसाजी । काररवाई । २. चाल ४. पीड़ा देना। उत्पीडन (को०) । ५ व्याज । सूद (को०)। | वाजी । छिपी काररवाई। व्यापार । वाणिज्य (को॰) । कारा'- सज्ञा स्त्री० [सं०] १ वघन । कैद । उ०—है अपनो को छोई कारिख–सच्चा स्त्री॰ [स० ५ लुष] १. कल छ । स्याही । लिम्।। मुक्ति भी अपनी कारा --साकेत, पृ० ४१६ । ३. काजल । ३ कलक } दोष । उ०---देवि बिनु करतुति यौ॰—कारागीर । कह्विो जानि हैं लघु लोइ । कहौ गो मुख की समरसरि कानि २ पीडा । वलेश । ३ दुती । ४ सोनारिन । कारिख धोइ ।—तुलसी (शब्द०)। वि० दे० 'कालिख । कारा२७t-वि० [हिं० काला ] [वि॰ स्त्री० कारी ] दे० 'काला'। कारिखी-सच्चा स्त्री० [सं० कलुष या कर्मय] १. स्याही । उ०-१च तत्त रग भिन्न भिन्न देखा । कारा पीरा सुरख कालिमा । उ०-भले भूप कहत भले भदेस भूपनि सो लोक सपेदा -तुरसी० श०, पृ० २३८ । लखि बोलिए पुनीत रीति मारिखी 1 जगदेवा जानकी जगत कारागार-- सझा पुं० [सं०] वदीगृह । कैदखाना। पितु रामभद्र जानि जिय जीवो ज्यो न लागे मुह कारिखीकारागारिक–सा पुं० [सं०] कारागार का रक्षक अधिकारी। जेलर। | तुलसी (शब्द॰) । २. काजल । ३ व लक । दोप। कारागुप्त- सच्चा पु० [सं०] बदी । कैदी। कारिज-सच्चा पुं० [सं० कायं] दे० 'कार्य । उ०—सवही सौं हित कारागृह–सज्ञा पुं० [सं०] कैदखाना। बचीगृह ।। अरु गुन सहित ऐसौ कारिज मन धरत । ताको जु अर्थ अमृत कराचुनी सल्ला मी० [सं०] शख जैसा एक वाद्य [को०] । लहत कोऊ दुख को नहि करत ।—द्र ज० ग्र०, पृ. ६० ! कारापक-संज्ञा पुं॰ [सं०] वह आदमी जो भवन या मदिरनिर्माण कारिणी-वि•सी० [सं०] करने वाली [को०]। । की देखरेख करने के लिये नियुक्त किया गया हो (ले०] । विशेष—समास के अंत में ही व्यवहार मिलता है। जैसे - कारापथ- सज्ञा पुं० [सं०] एक देश जो लक्ष्मण के पुत्र अगद और हितकारिणी । चित्रकेतु के शासन में था। कारित–वि० (१०) कराया हुआ है। कारापाल—सच्चा पुं० [सं०] कारागारिक। बदीगृह का रक्षक व्यक्ति या । कारित–सुज्ञा पुं० (देश) काठवेल । अधिकारी । जेलर [को०] । कारिता–सम्रा पुं० [सं०]वह व्याज जो दस्तुर से अधिक हो और जिसे कारामद–वि० [फा०] उपयोग । काम में आने लायो । | धनी या महाजन ने जबर्दस्ती ऋणी से देना स्वीकार कराया हो। कारायिका—सज्ञा स्त्री० [सं०] भादा सारस । सारसी [को०]। कारितावृद्धि-सज्ञा स्त्री० [सं०, वह सूद जो ऋण लिया हुमा धन कारारुद्ध–वि० [सं०] कैद में डाला गया [को॰] । दूसरे को देकर लिया जाय । कारावर–सच्चा पुं० [सं०] १ एक प्रकार का वर्णसकर जिसका पिता विशेष—आधुनिक वैक इसी नियम पर चलते हैं । निपाद और माता वैदेही हो । २ वह वर्णसंकर जिसकाापिता । कारिम -वि० [अ० करीम ] १, कृपालु । २. दाता। दानशी । चर्मकार और माता निषादी हो । मोची [को॰] । कारिम --संज्ञा पुं० ईश्वर । सब जीवो पर कृपा करनेवाला । कारावास- सझा पुं० [सं०] कैद ।। उ०---कारिम करम वरवसी फरे। दिल के रहम रहबर कारावासी-सञ्ज्ञा पुं० [सं० कारावासिन्] कैदी। बदी [को०]। मिले --तुरसी० श०, पृ० २८ ।। कारावैश्म-सज्ञा पुं० [सं० फारवेशमन्] कारागृह [को०]। कारियगर--सज्ञा पुं० [हिं० कारीगर] दे॰ 'कारीगर' । उ०— करदा- सूझापुं० [फा० कारिबह ][समा कारिदगरी दूसरे की कारिपगर मशिन बुलवाये ।---प० रासो, पृ० २२ । ओर से काम करने वाला । कर्मचारी । गुमाश्तो । । कारी'-.-वि० [सं० कारिन][वि०सी० फारिणी] करनेवाला । बनाने कारिख}--वि० [हिं० फारी] दे॰ 'कारी'। उ० ससि कारि घटा वोला। जैसे,--न्यायकारी। मैं करि उदोत ।—हम्मीर० रा०, पृ० ७० । विशेष--इसका प्रयोग यौगिक शव्द ही के अत में होता है। कारि—सच्चा सी० [सं०] कार्य । क्रिया कर्म (को०)। झारी--सच्चा पुं० १ कनाकार । २ यत्रविद् । ३ निर्माता की तैयार कारि- सज्ञा पुं० १ कलाकार । २ यत्रवेत्ता (को॰) । करने का काम करने वाला व्यक्ति (को॰) । कारिक-संज्ञा पुं० [देश॰] करघे मै वह चिकनी लकड़ी जो । कारी -वि० [फा०] गहरा । घातक। मर्मभेदी । ताने को सँभालती है और जिसे जुलाहे 'खरकूत' भी कहते हैं। कारी--वि० स्त्री० [हिं० काली] दे० 'काली' या 'काला' । ३०-- कारिक-सज्ञा पुं० [अ० कारिफ] कुर्की करने वाला । जो पुरुष कुर्की सखि कारी घटा बरसे बरसाने पं गोरी घटा नदगाँव पै री। इतिहास, पृ० ३८४ । करे। कारीगर'-सुद्धा पुं० [फा०] [सज्ञा कारीगरी हाथ से अच्छे अच्छे कारिक- वि० [सं०] कार्य करनेवाला । कीम बनाने वाला अदमी । धातु, लकडी, पत्थर इत्यादि से कारिका-सुज्ञा स्त्री० [सं०] १ किसी सूत्र की श्लोकवद्ध व्याख्या । विशाल और सुदर वस्तुमो की रचना करने वाला पुरुष । किसी सूत्र की प्रलोको में विवरण । २. नाटक करनेवाले नट शिल्पकार ।। की स्त्री । नटी । ३. संकीर्ण राग का एक भेद -(संगीत)। कारीगर-वि० हाथ से काम बनाने में कुशल । निपुण । हुनरमदा।