पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४००

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झारखानेदार ९१३ कारतूस कारखानेदार - सज्ञा पुं० [हिं० कारखाना+दार (प्रत्य॰)] कारखाने कारण नौ प्रकार के हैं-उत्पनि, स्थिनि, अभिव्यक्ति, विकार, | का मालिक । ज्ञान, द्वाप्ति, विच्छेद, अन्यत्व अौर घृति । यह विभिन्नता केवल कारगर-वि० [फा०] १ प्रभावोत्पादक । प्रविजनक । असर कार्य भेद से जान पडती है । उत्पत्ति ज्ञान का कारण मन, करनेवाला ।। शरीर स्थिति का कारण आहार, रूप की अभिव्यक्नि का कारण क्रि० प्र०—होना । प्रकाश पचनीय वस्तुओं के विचार का कारण अग्नि अग्नि के २, उपयोगी । लाभकारक । जैसे—कोई दवा कारगर नहीं होती। कारणत्व का घूमज्ञान विवेकप्राप्ति और अशुद्धिविच्छेद का क्रि० प्र०—होना ।। कारण योगगों का अनुष्ठान, स्वर्णकार कुइने में सोने के कारगाह-सुबा सी० [फा०] १ वह स्थान जहाँ वहुत से मजदूर रूपान्यव का कारण,इम जगत और इद्रियों का अधिष्ठान ईश्वर अादि काम करते हों । कारखाना।२ जुलाई के कपडा बुनने वेदात उपादान कारण मानता है। कोई कोई कारण तीन का स्थान । करगह। कारगुजार-वि० [फा० कारगुजार] [सा कारगुजारी] काम को प्रकार का मानते हैं, उपादान (संप्रदायि), निमित्त और अच्छी तरह करनेवाला । अपना कर्तव्य अच्छी तरह पूरा साधारण । चावसि के रण को कोई पदार्थ नही #निता । करनेवाला । खूब अच्छी तरह और अज्ञा पर ध्यान देकर साख्य अयोगुणात्मिका प्रकृति को मून कारण कहता है । वेदात काम करनेवाला । का कहना है कि अचेतन प्रकृति में कार्य को उत्पत्ति नहीं हो कारगुजारी- सच्चा जौ० [फा० कारगुजारी] १ पूरी तरह और सकती । कणाद ने परमाणु को सवयव जगत् का वरदान अशा पर ध्यान देकर काम करना । कतै व्यपालन । २ कार्य कारण माना है। पटती । होशियारी । ३ कर्मण्यता ।। ३ अादि । मूल । ४ माघना । ५ कर्म ६ प्रमाण । ७ एक कारचोव- सा पुं० [फा०] [वि० सच्चा कारचोवी] १ लकडी का एक बाजा । ८ तात्रि को की परिभाषा में पूजन के उपरात को चौकठा जिसपर कपडा तानकर जरदोजी या कसीदे का काम मद्यपान । ६ एक प्रकार का गाना । १० विष्ण । ११ शिव । बनाया जाता है । अहा । २ जरदोजी या कसीद का काम कारणक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] हेतु । निमित्त [को०) । करनेवाला । जरदोज । ३ कसीदे या गुलकारी का काम जो विशेष—यह समस्त 9 के अंत में प्रयत्न होता है । जरी के तारों को लेकर लकड़ी के चोठे पर लगाया जाता है' कृराणता--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ कारण फी स्थित(को०] । कारचोवी-वि[फा०] जरदोजी का । कारणमाला- सा सी० [सं०] हेतुस्रो की श्रेणी । २ काव्य में कारचौबी-सज्ञा स्त्री० जरदोजी । गुलकारी । कसीदा। एक अर्था नकार जिसमें किसी कारण से उत्पन्न कार्य पुन झारज -सज्ञा पुं० [सं० कार्य ] दे॰ कार्य' । किसी अन्यकार्य का कारण होता है प्रा वर्णन किया जाय । कारज-वि० [सं०] करज अर्थात् उँगली स वध (को०) । जैसे-दले ते वल, बल ते विजय, ताते राज हुलास । कृत ते कारटा -सच्चा पुं॰ [ मै० फरट ] कौग्न । काग । उ०-काज कानागत सुत, सुत ते सुयश, यश ते विवि महे वास । कारी अनि देव को खाय। कहै कबीर समझे नही बाँधी कार णवादी संज्ञा पुं० [सं० कारणवादिन 1 नवा या फरियाद करने यमपुर जाय ।-कवर ( पाब्द॰) । बाला व्यक्ति । वादी (को॰] ।। कारटून-सच्चा पुं० [अ० कार्टून वह उपहासपूर्ण कल्पित चित्र । कारणवारि-सच्चा पुं० [सं०] सब्टि के प्रारमकाल में उत्पन्न प्रार• के | जिससे किसी घटना या व्यक्ति के संबंध में किसी गूढ रहस्य का ज्ञान होता है । व्यगचित्र । जल, जिमसे इसका क्रमश विस्तार या विकास हुमा [को॰] । क्रि० प्र०—निकलना ।—निकालना। कारणशरि-सच्चा पुं० [सं०] वेदात में अणुवाद के अनुसार सुपुप्त कारटूनिस्ट-सज्ञा पुं॰ [ अ० काटू'मिस्ट ] व्यग्यचित्रकार । अवस्था का कल्पित शरीर । । विशेष—इम में इद्रि यो के विपयापार का अभाव रहा है पर कारटुन्ज- सूझा पुं० [अ] दफ्ती, टीन, तवे प्रादि का बना हुआ वह् ।। । अहकार आदि का सकार मात्र रह जाता है, जिससे जीना अावरण जिसके अंदर वदूक मे भरकर चलाई जानेवाली गोली केवल सुव ही मुवे का अनुभव करता है। यह शरीर वास्तव या । अादि रहता है । कारतूस । |' ' । में अविद्या ही है । इमै मानमय कोश भी कहते हैं। कारड़ा-सा पुं० [अ० फाई या पोस्टकार्ड ] दे० 'कार्ड' । । कारणा-सच्चा मो० [सं०] १ यय । कष्ट । तकलीफ २ यम को कारण-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] १ हेतु । वजह । सवव । जैसे, तुम किं १ यातना ! ३ प्रेरणा प्रोत्साहन [को०)। कारण वहाँ गए थे । कारणिक-सज्ञा पुं० [सं० 1[ श्री० फाररिकी ] १ मुकदमे विशेप---इस शब्द के साथ विभक्ति से' प्राय नहीं लगाई जाती । । सवघी कागज लिखनेवाला । मुहरि अर्जी वीस । २ लि पक २ वह जिसके बिना कार्य न हों। वह जिसका किसी वस्तु या लिखक । क्लर्क । ३ परीक्षक (को०)। ४ न्यायाधीश । क्रिया के पूर्व सवद्ध रूप होना आवश्यक हो । वह जिससे । निणयक (को०)। ५ अध्यापक (को॰) । । कारणोपाधि- संज्ञा पुं० [सं०] ईश्वर ।-(वेदान) । दूसरे पदार्थ की सप्राप्ति हो । हेतु । निमित्त । प्रत्यय । । कारतूस- सच्चा पु० पुतं ० फारस) एक लवी न जिसमे गो । विशेप--न्याय के मत से कारण तीन प्रकार के होते है-समवाय छ और वारूद मर रहता है और जिसके एक पिर पर टोपी (जैसे तत् वस्त्र फा ), असमवाय (ततुका मु योग वस्त्र का)। | - लगी रहती है। इसे टोटवली व क या रिवाल पर, 2 फन और निमित्त (जैसे जुलाह।, ढरकी अादिःवस्त्र के ।। योदर्शनमे दि में भरकर चलाते हैं ।