पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३९९

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હ૧૭ कारस्कराटिका कारन'-सज्ञा पु० [सु०कारण] ३० 'कारण' । कारवौलिक-वि॰ [अं॰ कार्वोतिक] अलकतरा संवधी । अलकतरा कारन’--संज्ञा पुं० [म० कारुण्य या कारणा] १ रोने का अातं स्वर। मिश्रित या उससे बना है। 'कुक । कण स्वर । २ व्या ! दुख । पोड़ा। उ०-नागमती कारवोलिक-सञ्ज्ञा पु० एक सार पदार्थ जो (पत्यर के) कोयले के कारन के रोई - जायसी ग्र०, पृ० १५९।। तेल या अलकतरे से निकाला जाता है। क्रि०प्र०—करना । करके रोना । विशेप-घाव या फोड़े फु सियों पर कारदोलिस को तैसे कीड़ों कारनिस–सच्चा स्त्री० [अ०] दरवार की कैंगनी । कगर। को मारने या दूर रखने के लिये लगाया जाता है । १ से ३ कारनी'---वि० [स० कारण या करण = कान] प्रेरक । झरनेवाला। जन तक की मात्रा में कार्बोलिक खिलाया जाता है। इसका उ०—जे पे चेराई राम की करतो न लजाता । तो दाम वेल और सावुन मी वनवा है। कुदाम ज्यो कर कर न विकतो ।--राम सोहातो तोहि कारभ---वि० [सं०] करम या ऊँट सवधी । कैट का [को॰] । जौ तु वहि सोहातो। काल कर्म कुल कारनी कोऊ न कारमन-सृज्ञा पुं० [सं० कार्मण] दे॰ 'कार्मण' । कोहातो ।—तुलसी (शब्द॰) । कारमवि--संज्ञा स्त्री० [३० फार्मणी] जादूगरनी । कारनी—संज्ञा पुं० [स० कारोनि ] भेद करनेवाला । भेदक । जैसे, कारमिहिका-- सच्चा सौ० [सं०] कपूर । बनसार [क] । उसके साय यहीं से कारनी लगे और राढ़ में कान भरकर । कारय-सज्ञा पुं० [सं० कार्य] ६० 'कार्य' । उ०—कारण काय भेद उन्होंने उसकी म ति पलट दो। नहीं कछु अापु मैं आपुहि अापु वहाँ हैं ।—सुदर ग्रं०,म०२, पृ० ६१६।। कारपण्य--वैज्ञा पुं० [व० कापवा] ६० 'कार्पण्य' । उ०-द्रोह कारयिता---सज्ञा पुं॰ [स० कारयितु]१. सृष्टि करनेवाला । २ (कार्य) कोतवाल त्यो अशान तहसीलवाल गवं गढवाल रोग येवक करानेवाला [को॰] । अपार हैं । मनै रघुराज कारपण्य पण्य चौधरी है जग के कारयित्री-वि० [सं०] १. करानेवाली । सृष्टि या रचना कराने विकार जेते तवं सरदार हैं।--रघुराज (शब्द)। | वाली (को०] । रिपरदाज़ -वि॰ [फा० कारपर्दा][सा फारपर्दाजी ] १ काम कारयित्री-सच्चा स्त्री०१. रचना करानेवाली स्त्री । २ प्रेरक शक्ति । करने वा ना। कारकुने । २ प्रबंधकता । कारिदा । | वह अतरिक शक्ति जो रचना के लिये प्रेरित करे [को०]। कारपरदीजो-वि० [फा० फारपदन] १ दूसरे का काम करने को यी०-- कारयित्री प्रतिभा ।। वृत्ति । दूवरे की ग्रोर से किसी कार्य का प्रबंध कृरने का काम कारवाईसच्चा स्त्री॰ [फा०] १ काम। कृत्य । जैसे--(क) यह २ दूसरे का काम करने की तत्परता । कार्यपटुता । | बड़ी बेजा काररवाई है । () तुम्हारी दरखास्त पर कुछ कारपरिल-सा पु० [अ०] पलटन का छोटा अफसर। जमादार। काररवाई हुई या नहीं ? जैसे ---कारपोरल मिल्टन । किं० प्र०—करना । दिक्षानी --होना । कारवं कल-सज्ञा पु०[अं॰] शरीर के किसी भाग में विशेषत. पीठ २ वार्यतत्परता। कर्मण्यत।। पर होने वाला जहरीला फोड़ा। क्रि० प्र०-~-दिखाना। कारवन-सापु०[अंकावंन] मोतिक सृष्टि के मूलभूत तत्वों में से एक। २ . ३ गुप्त प्रयत्न । चान । जैसे-इसमे जरूर कुछ काररवाई की गई है। | बहू करिबोनिक एसिड (गैस),कोयला, हीरा आदि में होता है। ( क्रि०प्र०—करना । लगना । होना। वन पपरे- पद्म पुं० [9] वह गहरे पत्तले या नीले रंग का कारवसा पुं॰ [सं०] कीम्र । वापिस । काग [ी,1, कागज जिसे उस कागज के नीचे लगा देते हैं, जिसपर लिखते कारवा-सज्ञा पुं॰ [फा०] यात्रियों की झुठ जो एक देश से दूसरे देश या टाइप करते हैं । इस प्रकार उस कागज के माध्यम से लख की यात्रा करता है। को प्रतिलिपि भी साथ जाये तैयार होती जाती है। उ०-डोल यौ०-फारव सराय =कार के ठहरने की सराय । कारबो--वि० [सं० कृत्रिम] कृत्रिमं । कृच्चा । नकली। उ०-दादू उधर औ इधर फौनादी युग के दानव, प्र म नया क्या होगा र | काया कारवी. देखते ही चले जाइ --दादू॰, पृ॰ ३९० । यह वही कारवन काप |--ददन०, पृ० ४४। । कारवेल्ल---सा पुं० [सं०] करेला। रिवार-से। पुं० [फा०][वि० कारवारो] कानकाज । व्यापार। कारवेल्खक- सच्चा पु० [सं०] ६० अरवेल्ल' (चे । पेशा । व्यवसाय । कारवारी–वि० [फा०] कामकाज ।' कारसाज---वि० [फा० कारवाज] [सचा कारसाजी ] काम बनाने कारवारी-सक्षा पु० दूवरे की ओर से काम करने वाली अदिमी। वाला । बिगड़े काम सँभालने वाला। काम पूरा करने की युक्ति निकालने वाला । जैसे-इश्वर वा फारसाज है । झारफुन । कारिदा । पनि-सा पुं० [अ०] [वि० कारबोनिक रसायन शास्त्र के कारसाजा-समी • [फा० फारतीजी] १ काम पूरा उतारने | अनुसार एक तत्व जा सृष्टि के बीच दो रूप में मिलता है, | मुवित। २. गुप्त कारवाई । चालबाजी । कपट प्रयत्न । जैसेएक हीरे के रूप में, दूसरी पत्यर के कोयले के रूप में। तुम्हारा कुछ दोष नहीं, यह सब उसी की छारसाजी हैं। रोनि-वि० [म, कार्बनिक कारवन या कोयला संवधी । कीरस्कर--सबा १० [सं०] कुचला। झिपाम वृक्ष (को०)। कान भित्रित । कारबन से बना हुई। झारस्कराटिका-सया चौ॰ [सं०] १. गोजर । शतपदो। २. जोछ । -अनि बिर गैस । जौमा ३, बिच्छु ! वृश्चिक (] ।