पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३९८

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फाय ९१४ कीयस्त्र यौ -कायक्रियी । फाक्लेश । कायचिकित्सा । निकाय । क्रि० प्र०—करना ।—होना ।। दीर्घकाय । महाकाय ।। ३ निर्धारित । निश्चित । मुकरर । जैसे, हुद कायम करना । २ प्रजापति तीर्थ । कनिष्ठा उगली के नीचे का भाग ।। यौ॰—कायममुकाम । विशेष—मनु ने तर्पण, आचमन सकल्प आदि की पवित्रता के ४ जो बाजी बर पर रहे, जिसमें किसी पक्ष की हार जीत न हो। | विचार से अगो के तीर्थ नाम से विभाग किए हैं । महा०-“कायम उठाना= निरज की या जी का इस प्रकार समाप्नु ३ प्रजापति को हवि । वह वि जो प्रजापति के निमित्त हो । | होना जिसमे किसी पदा की हारजीत न हो । ४ प्राजापत्य विवाह । ५ मूल घन । असल । ६ वस्तु कायममिजाज वि० [अ०कायम + मिजाज] मुस्थिरचित्त। शात्मस्य। स्वभाव । लक्षण । ७ लक्ष्य । ८. समुदाय । सध । ६. वौद्ध- कायममुकाम-वि० [अ० फायममुकाम] स्यानापन्न ! एवजी । भिक्षुग्नो का सघ । १० पेड का तना या काण्ड (को०)। ११. कार्यमा---सी पुं० [अ० कायम ] (ज्यामिति में) समकोण । नचे तारों के अलावा वीण का रूप या तुचा (को०) । १२ निवास | अश का कोण । ' स्थान (को०)। यौ॰—जाचियाकार्यमा = समकोण । काय --अव्य० [हिं० फाह! दे० 'काहे । उ०—आग लगी क्या कायर-वि० [सं० फातर,प्रा० फाइर) इग्पोक । भी । असाहसी । देखत अधे काय के खातर सोय। जू ।- दक्खिनी, पृ० १६ । कमहिम्मत । उ०—(क) कपड़ी हायर कुमति कुजाढी । कायक-वि० [सं०] शरीर सबधी। दैहिक [को०] । लोक वेद निदित बहू भीती ।—तुलसी (शब्द॰) । (४) कायका--सच्चा स्त्री० [सं०] व्याज । सूद [को०)। वड़ो कुर पायर करत कोडी अाध को —तुलसी (शब्द॰) । कायक्क(G)---वि० [सं० कायक या कायिक] दे० 'कायिक' । कायरता-सा नी० [सं० फायरता या हि०कापर+ता(प्रत्य॰)] कायचिकित्सा--सज्ञा स्त्री० [सं०] सुश्रुत के किए हुए चिकित्सा के अाठ । इरपोकपन । भीरुता । विभाग या अगो में से एक । काल---वि० [अ० कायल] जो दूसरे की बात की सवार्थता को विशेष- इसमे ज्वर, कुष्ठ, उन्माद, अपस्मार अादि सर्वा गन्मापी स्वीकार कर ले । जो ततं वितर्क से सिद्ध वात को मान ने । रोगों के उपशमन का विधान है। जो अन्यथा प्रभावित होने पर अनः पक्ष छोड दें। कपूल कायजा - सच्चा पुं० [अ० कृायजह ] घोडे की लगाम की डोरी, जिसे करनेवाला । पूछ तक ले जाने र वाँधते हैं । मुहा०— कायल करना = समझा बुझाकर कोई बात मनवाना । क्रि० प्र०----चढ़ाना ।---बाँधना ।--लगाना । स्वीकार करना । निरुत्तर करना । जैसे,—जब उसको दस महा०-.--कायजा फ्रना= घोड की लगाम की डोरी को पूछ में अदमी कायल करेंगे, तब वह झख मारकर ऐसा करेगा। फँसाना । कायत माकूल फरना= दे० 'कायत करना । कायल होना= विशेष----धोड़े को चुप चाप खड़ा करने के लिये खरहरा करते (१) दूसरे की बात की यथार्थना को मान लेना 1(१) स्वीकार समय गाय ऐसा करते हैं । | करना । मानना । जैसे,--हम उन्की चालाकी के कार्यल हैं। कायथ-सा पुं० [सं० फायस्थ] [स्त्री० फायथिन, केथिन]० फायस्य' । कायलो+-सा ब्री० [हिं० कायर] ग्लानि । लज ना । । कायदा-सञ्ज्ञा पुं० [अ० फयिवह, १ नियम । २ चाल । दस्तूर । क पली -सच्चा नी० [सं० क्ष्वेदिका, वैलि की, पा० वलि का] रीति । ढग ३ विधि । बिधान । ४ क्रम । व्यवस्था। मथानी । खेलर । (दि०)। करीना। ५ व्याकरण । ६ प्रारंभिक पुस्तक जिसके द्वारा कायली --वि० [हिं० काहिंल] काहिल । अक्षरज्ञान कराया जाय, जैसे उर्दू का कार्यान् । कायवलन-संज्ञा पुं० [सं०]कवच । जिरह बख्तर (को॰] । कायफर--सा पुं० [सं० कायफल] दे० 'कायफल । काव्य-सया पुं० [सं०] महाभारत में वर्णित एक दस्यु सरकार के कायफल-सम्रा पुं० [सं० कट्फल] एकवृक्ष जिसकी छाल दवा के नाम । काम में आती है। विशेष—यह बड़ा धर्मपरायण या और सुघुप्रो तया ते रवियो की सेवा करता था । विशेष-गह वृक्ष हिमालय के कुछ गरम स्थानों में पैदा होता है। | कायव्यूह–सच्चा पुं० [सं०]१ शरीर में वात, पित्त, कफ तया वक अासाम के खासिया नामक पहाड़ पर और वरमा में भी यह रक्त माम, स्नायु अम्यि, मज्जा मौर शुक्र के स्थान और बहुत होता है। विभाग आदि का क्रम (वैद्यका) । २ योगियों की अपने कम कायबंधन- सम्रा पुं० [सं० कपिबन्धन) १. शुक्र और रक्त का के भोग के लिये चित्त में एक एक इद्रिय और अग को करना समिश्रण ! ३ करघनी । कमरवद [को०)। की क्रिये, फायब्यूह-सा पुं० [सं० फायदयूह] १ शरीर का बनाया हुमा कायस्थ--इस वि० [सं०] काय में स्थित । शरीर में रहने वाला । मोरचा या टयूह । ई०-~-प्रतिबिंबित जयसाहि दुति दीपति कायस्थ-सा पुं० [सं०] १ जीवात्मा । १. परमात्मा । ३ एक दरपन घाम । सबु जगु जीतनु कौं करपी कायव्यूह मेनु काम । | जाति का नाम । कायथ । - विहारी 'शब्द०)। २ दे० 'कार्यज्यूह' । विशेष - इस जाति के लोग प्राय लिखने पढ़ने का काम करते कायम- वि० [अ० कायम] १ ठहरा हुआ । स्थिर । २ स्थापित । हैं और पजाव को छोड़ प्राय सारे उत्तर भारत में पाए जाते जैसे, स्कूल कायम करना । शतरग में मोहरा कायम करना। हैं । यह लोग अपने को चित्रगुप्त को वशज मानते हैं।