पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३९५

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कामरूपैवं काँगाँग समाज मोह वर नारी --तुलसी (शब्द॰) । (ख) उ०—–शशि कामवर-सा पुं० [सं०] इच्छित मॅट या उपहार (ये । किरणों से उतर उतरकर भू पर कामरूप नभचर । चूम चपल कामवल्लभ--सज्ञा पुं० [सं०] १ ग्राम । आम का पेड । २ वसंत कलियों का मृदु मुख सिखा रहे थे मुसकाना-वीणा, पृ०५६ । (को०) । ३. चंद्रमा (को॰) । कामरूपत्व--संज्ञा पुं० [सं०] जैन मत के अनुसार एक प्रकार की सिद्धि कामवल्लभासद्मा सी० [सं०] चाँदनी । चद्रिका । बो कमfदि से निरपेक्ष होनेपर प्राप्त होती है। इससे साधक को कामवश-- वि० [सं०] काम के अधीन । कामयुक्त (को०] । यथेच्छ अनेक प्रकार के रूप धारण करने की शक्ति होती है। कामवशु-सज्ञा पुं० काम का प्रवेश या अधीनता (०] । कामरूपिणो-वि० [सं०] इच्छानुसार रूप धारण करनेवाली । कमिवाद'.- १० पु० [सं०] इच्छानुसार कहने का सिद्धात । मायाविनी । उ०—यम की समा कामरूपिणी है, विश्वक् म ने कामवाद-वि० १. इच्छानुसार हुने या बोलनेवाला । वनाई है ।-प्रा० भा० प०, पृ० ३२५ ।। | २ इच्छानुसार कहने के सिद्धांत को माननेवाला । कामरूपी-वि० [स० कामरूपिन्] [वि० मी० कामरूपिणी] इच्छा- कामवादी--वि० [सं० कामवादिन्] दे० 'कामवाद' । नुसार रूप धारण करनेवाला । मायावी । कामवान--वि० [सं० कामवत्] [वि॰ स्त्रीकामवती! काम की इच्छा कामरेखा चबा ली० [सं०] वेश्या । वारागना (को०)। करनेवाला । समागम का अभिलाषी । कामरेड—य पुं० [अ० दे० 'काम्नड' । कामविहंar-वि० [सं० कामविहन्तु] काम या वासना का हनन कामसू- सुज्ञा पुं० [अ० कॉमस] व्यापार । वाणिज्य । कारोवार । करनेवाला (को०] । लेनदेन । जैसे,--चेंबर आफ कामर्स । कामर्स डिपार्टमेंट। कामवीयं सच्चा पुं० [सं०] गल्छ (को०] । कामल'-सुज्ञा पुं० [सं०] १. एक रोग ।। कामवृत्त-वि० [सं०] कीमुक । लपट । स्वेच्छाचारी ने) । विशेष--इमे पित्त की प्रबलता से रोगी के शरीर की रग कामवृत्ति-वि॰ १. स्वेच्छाचारी। २ स्वतंत्र [को०] । पोला पड़ जाता है, अति और नख विशेष पीले जान पडते कामवृत्ति- सज्ञा पुं० [सं०] १ स्वतंत्र या अनियंत्रित कार्य । २ काम हैं, शरीर अशक्त रहती है और भोजन में अरुचि रहती है । की प्रवृति या भाव (वै] । ३. वृत का? । ३. रेगिस्तान (को॰) । कामवृद्धि–सच्चा स्त्री० [सं०] काम का प्रवेश था वेग (को०) । कामल-वि० कामी । कामवेग--- सज्ञा पुं० [सं०] कामोत्तजना । काम की तीवृता । उ०कामलडी - सच्चा श्री० [सं० कम्बल, हि० कोमल + डी (प्रत्य०) ] 'मवि’ मन की वेगयुक्त अवस्थाविशेष है, वह क्षुत्पिपासा, काम दे० 'कामरी' । उ०—-फाढि पटोली घुज करो कामलडी वेग आदि शरीरवेगो से भिन्न है ----रस०, पृ० १६४ । फहराय । जेहि जेहि भेजे पिय मिले, सोइ सोइ भेष कराय । कामशर—संज्ञा पुं० [सं०] १ कामवाण । २. अाम । ३ माम का –वीर सा० सं०, पृ० ४३ ।। पेड (को॰) । कामला-- संज्ञा पुं० [स० कामल] दे० 'कामल" ।। कामशात्र--संछा पुं० [सं०] बहू विद्या या ग्र थे जिसमें स्त्री पुरुषो के कमिलिका–च्चा स्त्री० [सं०] मदिरा किये । परस्पर समागम अादि के व्यवहारो का वर्णन हो । कामली-सज्ञा स्त्री॰ [० कम्बल] कमली। छोटा कवल । चु०- विशेप--इसके प्रधान अाचार्य नंदीश्वर माने जाते हैं और अतिम साधु हजारी कपड़ा ता में मेल न समाय । सकट काली प्राचार्य वात्स्यायन इनका ग्र थे काम सूत्र हैं। कामली माई तहाँ विछाय ।--कवीर (शब्द॰) । का मसख-सज्ञा पुं० [सं०] १ वसत । २. चैत्र का अरिभ । चैत्र मुख । कामली-दि० [सं० कामलिन्] [वि० वी० कामलिनो पीलिया । ३ आम का वृक्ष (को०] । रोग से पीडित [को०)। कमिसखा-सा पुं० [सं० कामसखिन] १. वसंत। २. चैत्रमास (को॰) । कामलेखा-सवा स्त्री० [सं०] वेश्या । बारागना ये०) । कामसुख--संज्ञा पुं० [सं०] काम का अानद । विपयानद । उ०---- कामलोक--सुज्ञा पुं० [सं०] बौद्ध दर्शन के अनुसार एक परोक्ष लोक । समुझि कामसुख सोचहि भोगी। भए अर्कटक माधक जोगी। विशेष—यह ग्यारह प्रकार का है--मनुष्यलोक, तिर्थक्लोक, । —मानस, ११६७ । नरक, प्रलोक, असुरलोक, चातुर्महाराजिक, श्रयस्त्रिश, याम्य, यौe- कामसुखेच्छा= विपय-सुख की लालसा । कामसुखेच्छ = कामतुपित, निमणिरति और परनिमित नाशवर्दी । सुख का इच्छुक । कामलोल-वि० [सं०] कामातुर [को॰] । कामसूत--सच्चा पु० [सं०] अनिवृद्ध जो कामदेब के अवतार, प्रद्युम्न कामवती'- संज्ञा स्त्री० [सं०] दकि हल्दी । | के पुत्र थे । कामवता- वि० स्त्री० काम की चसना रखनेवाली। समागम की कामसूत्रसला ५० [सं०] १• वात्स्यायन द्वारा रचित कमशास्त्र ।२. | इच्छा रखनेवालो । प्रमसूत्र । कामकया (को०] । कामहा–सच्चा पुं० [स० कीमहन्] १ शिव । २ 'विष्ण, [को०] । कामवन-सा पुं० [सं०] १. वह वन जहाँ वैठाकर महादेव जी ने कृामाकू श-सा पुं० [सं० कमिङकुश] १ नख । नाखन । ३. लग । कामदेव का दहन किया था । २ मथुरा के पास का एक प्रसिद्ध शिश्न (ने] । वन जो तीर्थ माना जाता है । कामगि -सच्चा पुं० [सं० कामाङ्ग माम ।