पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३९३

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कामधेन्वी | ६०8 कामदगिरि कामह--- वि० [सुं० कामदुह] अभीष्टदायक किये। कामदगिरि-संज्ञा पुं०[सं०] चित्रकूट का एक पर्वत जो सभी कामनाएँ कामदुहासज्ञा सी० [सं०] कामधेनु । पूरी करनेवाला माना जाता है। कामदूतिका-सा स्त्री॰ [सं०] नागदती ! हाथीसूड नाम की घास । कामदमणि---दुल्ला पु० [सं०[ चितामणि । - कामदूती--संज्ञा स्त्री० [सं०] १ परवल की वैल । २. कोल (को॰) । कामदर्मान–शा पुं० [३० कानदमणि] दे० 'कामदमणि' । उ०- गर चित चेति चित्रकूट चलि ।”:: करिहैं राम भावतो मन को कामदेव-सच्चा पुं० [सं०] १ स्त्री पुरुप के संयोग की प्रेरणा करने बाला एक पौराणिक देवता जिसकी स्त्री रति, साथी वसंत, सुख साधन अनयास महा फलु । कामदमनि कामदा कल्पतम् । वाहन कोकिल, अस्त्र फूलों का धनुष बाण है। उसकी ध्वजा सो जुग जु] जागत जगतीतलु। तुलसी तोहि बिखि बुझिए पर मीन और मकर का चिह्न हैं। एक प्रतीति ग्रीति एकै वलु ।—तुलसी शब्द० । । विशेष—कहते हैं जब सती का परलोकवास हो गया, तुम शिवजी कामदर्शन---वि० [सं०] देखने में जो सूदर लगे कि ने यह विचार कर कि अव विवाह न करेंगे, समाधि लगाई। कामदव-सच्चा यु० [सं०] कामाग्नि । कामज्वाला [को०] ।। इसी बीच तारकासुर ने घोर तप कर यह बर माँगा कि मेरी कामदहन-स) पु०[सं० काम + दहनोकामदेव को जलानेवाले, शिव । मृत्यु शिव के पुत्र से हो और देवताओं को सताना प्रारंभ उ०-घर ही बैठे दोऊ दास । रिधि सिधि भक्ति अभय पद किया। इस दु ख से दुखित हो देवताओं ने कामदेव से शिव दायक अाप मिले प्रमु हरि अनयति ।'–जाको ध्यान धरत की समाधि भग करने के लिये कहा। उसने शिवजी की समाधि मुनि वाकर शीश जटा दिग अंदर तास । कामदहन गिरि भग करने के लिये उनपर अपने बाण चलाए। इसपर शिवजी कदर प्रासन या मूरति की वृऊ पियास ।—सूर (शब्द॰) । ने कोप कर उसे भस्म कर डाला | इसपर उसकी स्त्री रति कामदा-सद्मा जी० [सं०] १ कामधेनु । २. एक देवी जिसकी रोने और विलाप करने लगी। शिवजी ने प्रसन्न होकर कहा अहिरावण पूजा करता था। उ०—देही बलि कामद कई किं कामदेव अव से बिना शरीर के रहेगा और द्वारका में कृष्ण सोई । जानेहु नभ प्रकाश जवे होई।-विश्राम (शब्द॰) । के घर प्रद्युम्न के रूप में उसका जन्म होगा । प्रद्युम्न कामदेव ३ चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम । ४ दस अक्षरो के अवतार कहे गए हैं। का एक वर्णवृत्त जिसमे क्रम से, रगण, यगण, और जगण सया पर्या०—काम । मदन । मन्मथे। मार। प्रद्युम्न । मीनकेतन । एक गुर होता है। जैसे,--रायजू गयो मो लला कहाँ ? रोय कदर्प । चर्पक । अनग । पंचशर । स्मर। शंबरारि । मनसि छ ।' यो कहूँ नद जू तह । हाय देवकी दीन प्रपदा । नैन मोठ के कुसुमेष । अनन्यज। पुष्पधन्वा । तिपति । मकरध्व३ ।। मूर्ति कामदा।। मात्मन् । ब्रह्मसू । ऋग्वकेतु। विशेप- इस वृत्त के आदि में गुरु के स्थान में दो लघु रखने से २ वीर्य । ३.सभोग की इच्छा। ४. शिव । ५. विष्णु (को॰) । ‘शुद्ध कामदा' वृत्त हो है । इसमे ५,५ प यत्ति होती है। कामघाम–संज्ञा पुं० [हिं० काम+घाम] (अनु०)] कामकाज । । कामदान- सय पु० [सं०] ऐसा नाच रंग या गाना बजाना जिसमे धधी । उ०—त्र ज घर गई गोपकुमारि । नेकहू कहु मन न । लोग अपना कामBधा छोडकर लीन रहे। (को०)। लागत का मधाम बिमारि ।---सूर (शब्द॰) । विशेप- कौटिल्य के समय में राज्य की मुख्य मदनी अनाज की कामधुक–वि० [सं०] अभीष्टदायक यै] । उपत्र का भाग ही था । अतृ. कृपको के दुव्र्यसन, अलिस्य कामधुक-सा स्त्री० कामधेनु को०)। अादि के कारण जो पैदावार की कमी होती थी, उससे राज्य कामचक्र--सच्चा स्त्री० [सं० कामधेनु] कामधेनु । उ०—-नाम कामको हानि पहुँचती यी । इसी से कामदान' अपराधो मे गिना | घुक रामलला ।—तुलसी (शब्द॰) । गया या और इसके लिये १२ पण जुर माना होता था । | कामधेन--चच्चा बौ० [सं०] १. एक गाय जो पुराणानुसार समुद्र कामदानी-सज्ञा स्त्री० [हिं० काम+वानी (प्रत्य॰)] १.बेलबूटा के मथने से निकली थी 1 सुरभी । जो वादले के तार या सलमे सितारे से बनाया जाय । २. वह विशेष-यह चौदह रत्नों में से एस है। कहते हैं इससे जो माग कपड़ा जिस पर सबमे सितारे के बेलबूटे बने हो। | जाय वही मिलता है। कामदार'—सा पुं० [हिं० काम+वार (प्रत्य॰)] राजपूताने की २. वशिष्ठ की शबला य नरिनी नाम की गाय । विशेष--इसके कारण वशिष्ठ का पिवामिव से युद्ध है। था। रियासत में एक कर्मचारी जो प्रदध का काम करता है। विश्वामित्र एक बार वशिष्ई के यहां गए । वशिष्ठ ने अपनी । झारिवा। अमला | इ-पाँचौ पक कामदार बो पकी गाय के प्रभाव से उनका वैरे वैभव के साथ भातिय सिपी । मेमतेमाई --कवीर श० पृ० १३३ । । विश्वामित्र लोम करके वह गाय माँगने लगे। वशिष्ठ ३ : मदीर-वि० कारोबी जिसपर जरदोजी या ती १ के कसीदे की अस्वीकार किया, इसी पर दोनों में घोर युद्ध हुआ । | काम हो ।जिसपर कलावस्तू अदि के बेलबूटे धने हौ। ३. दान के लिये सोने की बनाई हुई गाय । जैसे--कामदार टोपी, मिदरि जुता । = दृच्छा परी मरने वाला । अमीष्ठ कामधेन्वा--सा स्वी० [सं० कामधेनु] दे० 'कॉमन' । मदुध-वि०स०] हर प्रकार की इच्छा पूरी करने वाला अभीष्ठ ॥ भर छी जमधेन्वा इतनी उदार होगी पद्द में विश्वास |दाय (बो०) ।। । प ---झिएन०, १८ ।। गया औ० [सं०] मधेत झाभर मै । -- -- -