पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३९२

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कामकृत् म कामकृत्-सच्चा पुं० लीलापुरुष । परमात्मा इच्छा मात्र से सृष्टि करने कामजननी---सा बी० [सं०] नागल (को॰) । | वाला (को॰] । कामजान--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] कोयन कि०। कामकन-वि० [सं०] काम या कृामदेव द्वारा किया हृमा । उ०--- कामजानि--सया ब्री० [सं०] कायल (D० । दुई देह भरि ब्रह्मांड भीतर कामकृत कौतुक अय 1-मानस, कामजितु-वि० [सं०] काम को जीनान । १। ६५ । कामजित-संज्ञा पुं० १ महादेव । रिन । २ कातिः ।। ३ जि? देव। कामकृतऋण- सम्रा पुं० [सं०] वह ऋण जो विषय भोग में लिप्त होने कामज्वर-सपा पुं० [सं०] वैद्यक के अनुसार एक प्रकर का जर जो की दशा में लिया गया हो 1-(स्मृति)। स्त्रियों और पुरुष को अब ब्रह्मचर्य पालन करने में हो कामकेलि---संज्ञा स्त्री० [सं०] रतिक्रिया । कामक्री कृr [। जाता हैं। कामक्रिया- सच्चा स्त्री० [सं०] रतिक्रिया । स भोग (को०] । विशेप-इसमें भोजन से अरुचि और हृदय में दाह होता है नीद, कामक्रीडा-सा श्री० [सं० कामक्रीडा] कामकेलि । स भोग । लज्जा, बुद्धि और धैर्य का नाश हो जाता है, गुरपा के हृदय रतिक्रिया [को०)। में पीड़ा होती है और स्त्रियों कई अंग टूटता है. नेत्र चचल कामग--- वि० [सं०] [वि० बी० कामगा] १. स्वेच्छाचारी। अपनी हो जाते हैं, मन में से भोग की इच्छा होती है । क्रोध उत्पन्न इच्छा पर चलनेवाला । उ०—-गगवान जब दशरत्य नृप रानौन कर देने से इसका बैग शत हो जाता है। के गर्भहि गये। तवहीं विरचि सुदेयतन माँ बात यह वोलत कामह - सूझा पुं० [सं०] धतरराष्ट्र के वश का एक नT जो बनने जा भये । तुम हरि सहायहि के लिए उत्पत्ति कपि गन पी करो। राजा के सर्पयज्ञ में मारा गया था। अब अति बल मति कार्य कामगे कामरूपी विस्त । - , कामगारोसच्चा भी[सं० फर्मग * फार, गुज* काम +पर+६ पद्माकर (शब्द॰) । २. परस्त्री या वेश्यागभी । लपट । ३. । (प्रत्य॰)] जादूगरनी । उ० प्रीतम कामणग रिया, थन यन कामदेव । बादलियो । घण बरसत; मूकियो, ल ।” जाँगुरि 1--- कामगति--वि० [सं०] मनोनुकूल स्थान पर जाने में समय । अहो मन ढोना, ६० २१६ । चाहे वहाँ में जाने में समर्थ ।। कामडिया-सा पुं० [सं० कम्बन] रामदेव के मत के अनुयानी कामगार-सच्चा पुं० [सं० कर्म + फार, प्रा० कम्म +गार (प्रत्य॰)] १ दे० 'कामदार' । २ मजदूरी । मजदूरी करके रोजी कमाने चमार साधु ।। बोला यक्ति । विशेप---ये राजपूताने में होते हैं और रामदेव के जद या उनकी कामगिरि–सज्ञा पुं० [सं०] चित्रकूट कामदगिरि [को०] । वानी माते और भीख मांगते हैं। कामचर--सा पुं० [सं०] अपनी इच्छा के अनुसार सब जगह कामत -क्रि० वि० [सं०] १ इच्छानुसार । स्वेच्छ । ३ वासना रौ । जानेवाला । स्वेच्छापूर्वक विचरनेवाला । कामत-सज्ञा पुं० [अ० कामत] शरीर । जिम्म। डीन डौन । कः । कामचलाऊ- वि० [हिं० काम + चलाना] जिससे किसी प्रकार काम उ०--सर्व कामत गन्नव की चाल से तुम यो कयामत चले निकल सक । जो पूरा पूरा या पूरे समय तक काम न दे सकने थपा करके मारतेंदु ग्र ०, भा० २, पृ० २२० । पर भी बहुत से अशों में काम दे जाय । कामतरु -सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ वदा जो पेडो ०र होना है। ३ कामचार-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] [वि॰ कामचारी] १ इच्छानुसार भ्रमण। कल्पवृक्ष । २ स्वेच्छाचार (को०)। ३ कामुकता (को०)।४ स्वार्थपरता (को॰) । कामता सज्ञा पुं० [सं० फीमद चित्रकूट के पास का एक गाँव । कामचारी–वि० [सु० कामघारिन्] १ मनमाना घूमनेवाला । चित्रकूट । उ०—- पवन तनय तह लियुग माहीं । असे दरगन जहा चाहे वही विचरनेवाला । २ मनमाना काम करनेवाला । होव कढ़नाहीं । तुलसदास कह कृपा निहारी मोहि ने अचरज स्वेच्छाचारी । ३ कामुक । लपट। पग्त निहारी । कह कपीश कामता सिधारी । बैठहु काल्हि कामचारी-सच्चा पुं० १ गरुड़ । ३ गौरैया को ।। राम उघारी । विश्राम (शब्द॰) कामचोर-वि० [हिं० काम + चोर काम से जी चुरानेवाला । काम से । यो०-कामगिरि = कामदगिरि । मांगनेवाला । अकर्मण्यं । अलसी । जाँगरचौर । जो कामतापसी न पुं० [सं०] कामज्वर । उ॰ग्रन 7 । रग-रग- कामज-वि० [सं०] वासना से उत्पन्न । काम-तुप हुरन । घनानंद, पृ० ४१५। कामज-—सया पुं० १ व्यसन । कामताल- सज्ञा पुं० [सं०] कोयन (ो । कामतिथि- सच्चा स्त्री० [सं०] प्रयोदशी । विशेष—मनुसहिता के अनुसार ये व्यसन दस प्रकार के होते हैं। विशेष—इस तिथि को कामदेव की पूजा होती है। और इनमे शासक्त होने से अर्थ और धर्म को हानि होती है। कामद'–वि० [सं०] [वि॰ स्त्री० कामदा] मनोर। पूरी करने पर IT । दस कामज व्यसन ये हैं—मृगया, जुम, दिन को सोना पराई | इच्छानु राार फन देनेवाला । निंदा, स्त्रीसभोग मद्यपान' नत्य, गीत, वाद्य और व्यर्थ इधर यौ०-कामदगिरि = चित्रकूट । चार घूमना ।' कामद-सझा पुं० १ स्वामीकार्तिक । ३ ईश्वर । ३. शिव (को॰) । २ कोछ । प्रवेश (को॰) । ४ सुर्य (को॰) ।