पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३९

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छटपा उठना उटडपा-- सुंक्षा पुं० [हिं० उठना या ऊँट ] दे॰ 'उटडा' ।। पहले की अपेक्षा अधिक ऊँचाई तक पहुचे । जैसे, लेटे हुए उटडा -सज्ञा पुं॰ [ देशज ] एक टेढ़ी लेकडी जो गाडी के अगले भोग प्राणी का बड़ा होना । ऊँचा होना । में, जहाँ हुर से मिलते हैं, जुए के नीचे लगी रहती है। इसी संयो॰ क्रि०-जाना [--पड़ना । के बल पर गाड़ी का अगला भाग जमीन पर टिकाया जाता मुहा०—उठ खड़ा होना= चलने को तैयार होना । जैसे, अभी अाए एक घटा भी नहीं हुआ और उठ बुडे हुए। उठ जाना= है। उन्हपा । उटहहा। उटपटांग-सज्ञा पुं॰ [ हि० ] ३० ऊटपटांग' । उ०—दूसरी कसर दुनिया से उठ जाना । मर जाना । जैसे,—इम ससार में कैसे निकालने के लिये व्यर्थ उटपटांग वाते वक्र चलते हैं :--- कैसे लोग उठ गए । ३०--जो उठि गो बहुरि नहि यो मरि मरि कहाँ भमाही ।--कवीर (शब्द०) 1 उठनी कोपल = प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० २५२ } नवयुवक । गमरू । उठो जवानी = युवावस्था का प्रारभ । उटड़ा-सा पुं० [ हि० ] दे॰ 'उटडा' । उठ्नी परती= अजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) में प्रचलित जोत का उटारी- सच्चा स्त्री० [हिं० उठना ] वह लकडी जिस पर रखकर एक भेद जिसके अनुसार किसानों को केवल उन खेतो का | चारा काटा जाना हैं । निष्ठा । निहटा। इस गान देना पडता है जिनको वे उसे वर्प जोतते हैं और उटेव--संज्ञा पुं० [हिं० उ+ टेव ] जन की धरन के बीचोबीच परती खेती का नहीं देना पड़ता । उठने वैठने= प्रत्येक अवस्था ठोकी हुई डेढ़ हाथ की दो खड़ी लकड़ियों जिनपर एक वेडी में। हर घड़ी। प्रतिक्षण । जैसे--किसी को उटते वैठते लव डी या गटारी बैठाकर उसके ऊपर धरन रखते हैं । गालियाँ देना ठीक नही । उठने जूनी और वैठने लात = परम्पर उट्टा---सा पुं० [हिं० श्रोटना ! दे० 'ब्रटनी'। मेल न होना । ग्राम में न बनना । उठना बैठना= स्नाना उट्ठना--क्रि० अ० [ स० उत् + स्था, प्रा० उट्ठण ] दे० 'उठना जाना । सग सुव । मेल जो हैं। जैसे--इन का उठना बैठना उ०—सोई घाव तन पर लगे उ सँभाले साज ।-दरिया बड़े लोगों में रही है । उठ बँठ = दे० 'उठावठी' । उठावठी = वानी, पृ० १२ । (१) हैरानी। दौड ६ ।। ३ वे केली । वैचैन । ३ उने उट्टी- सच्चा स्त्री० [ हि० उठना ] किसी प्रतियोगिता में पराजय या वैठने की कसरत । वैठक ।। उससे हट जाने की स्थिति, भाव या क्रिया। २ ऊँचा होना । र ऊँचाई तक बढ़ जाना । जैसे-लहर उठना । उ०--लहरें उठीं से मुद उलय निा। भूला पथ सरग यिराना क्रि० प्र०-उही वोलन पूरी तरह से हार स्वीकार कर लेना। --जायमी (शब्द॰) । २ ऊपर जाना। ऊपर चढ़ना । ऊपर उ०--इस अर्ययुग में सव व न जिसका है वही उद्गी वोन होना । जैसे-वाद न उठना, धूआँ उठना, गई उठना । टिड्डी गया !---इद्र०, पृ० ६६ । उठना । उ०--(क) उठी रेनु रवि गाऊ छपाई । मरुत थकित् विशेप--बच्चे अपने खेल में इस शब्द का प्रयोग करते हैं । वसुधा अकुलाई ।—मानस, ६i७८ । (ख) खनै उठई खन उठेगल-वि० [ वेश० ] १ वेढगा। मौडा । २. वैशऊर । अशिष्ट । बुडइ, अस हिय कमल सँकेत । हीरामनहिं बुलावहिं सखी कहते उठेगन--सच्चा पुं० [ स० उत्यिताड़>* उठअग अउठेग से बना ] जिव लेत ।----जायसी (शब्द॰) । ४ कूदना । उछलना । उ०- १ अड। टेक । ३ उठेंगने की वस्तु 1 बैठने में पीठ को उठहि तुरग लेहि नहि बागा । जात उलटि गगन कई लागा | सहारा देनेवाली वस्तु । —जायसी (शब्द॰) । ५ विस्तर छोडना । जागना । जैसे,- उठेगना-क्रि० अ० [ स० उत्थित +अङ्ग ] १ किसी केंची देखो कितना दिन चढ़ आया, उठो । उ०--प्रानकाल उठिकै वस्तु का कुछ सहारा लेना । टेक लगाना । जैसे-वैह दीवार रघुनाथा । मातु पिता गुने नावहि माया ।—तुलसी (श६०) । से उठेंगकर वैठ गया । २ लेटना ! पड़ रहना। कमर सीधी सयो० क्रि०-~-पड़ना ।—वैठना। करना । जैसे- बहुत देर से जा रहे हो, जरा उठेग तो लो। ६. निक नना । उदय होनी । उ० -बिसि जगवति सखी उठेगाना-क्रि० स० [ हि० उठेंगना का संक० रूप ] १ किमी सयानी । सूर उठा, उठ पदुमिनि रानी ।—जायसी (शब्द॰) । वस्तु को पृथ्वी या और किसी प्राधार पर खड़ा रखने के लिये ७. निकनना। उत्पन्न होना। उद्भूत होना, जैग-विचार उसे तिरक्षा करके उनके किसी भाग को किसी दूसरी वस्तु उठना, राग उठना । जैसे,---मेरे मन में तरह तरह के विचार से लगाना । भिड़ाना । २. ( किवाड ) भिडाना या बद उठ रहे हैं । उ०--(क) छुद्रघट कटि कचन तागा । चल करना। ३ शयन करना । लिटा देना। उठहि छतीस राग --जावमी (शब्द॰) । (३) जो धनहीन मनोरय ज्यो उठि वीर्वाह गीच विनाइ गयो है !--(शब्द॰) । उठना---क्रि० अ० [हिं० उठेंगना ] दे॰ 'उठेगना' ।। ८. महत्ता प्रारंभ होना । एकबारगी शुरू होना । अचानक उठतक--- सच्चा पुं० [हिं० उठना ] १ वह चीज जो पी लगे हुए उमडना ! जैसे-वात उठना, दर्द उठन, ग्रांधी उठना, हुवा घोड़े की पीठ को बचाने के लिये जीन या काठी के नीचे रखी उठना । उ०—प्राधे समुद प्राय मी नाही । उठी बाड प्रधी जाय । उइतुके । २ उचकन । ग्राड । टेक । उपराही ।-जामी (। ९ तैयार होना । सनद्ध उठना-क्रि० अ० [ १० उत्यान, पा० उठान, प्रा० उठाण, होना। उद्यत होना । जैसे,--ग्य [प उठे हैं, यह काम उटण ] १ नीची स्थिति में और ऊँची स्थति में होना। चटपट हो जाएगा। क्रिस वस्तु की ऐसी यिनि में होना जिसमें उस का विस्तार मुहा--मारने उड़ ग = मारने के लिये उद्यत होन।। १०. किमी