पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३८९

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६०५ को। काव' विशेप---यह रग के मर फिटकरी और हरसिंगार से बनता है । करने योग्य । दाद देने योग्य । उ०--ौलाना अरशद और हजरत नयाज दोनो नु'हत्रों के मजामीन काविलेदाद हैं ।--- २ कपूरी पान । प्रेम ० अौर गो पृ० ५२।। कवि-संज्ञा पुं० [तु० का वडी रिकावी। कार- उज्ञा पुं० [सं० काव्य, प्रा० कव्व] दे० 'काव्य' । ३०-दुग्न काविलेदीद-वि•[२० कालि+फा० दीद] देने योग्य । दर्शनीय (को०] } लोगा असरार जुध, सुकवि चंद करि काब।-पृ० रा०, काविस -संज्ञा पुं० [सं० फपिश] १ एक रग जिनसे मिट्टी के कच्चे ७११३८। । | वर्तन रेंगकर पकाए जाते हैं। कावर'- वि० [अ० कवंर, प्रा० कवर] कई रगो का । चिंतकवर । विशेष—यह मोंठ, मिट्टी, बबूल की पत्ती, वस की पत्ती, माम कविर-अज्ञा पुं० [हिं० स्वाभर] १ एक प्रकार की भूमि जिसमें कुछ कुछ रेत मिन रहनों है । दोमट । खभिर । उ० कावर सुदर की छाल और रेह को एक मे घोलने से बनता है । इनने रंग कर पकाने से वर्तन लाल हो जाते हैं और उनपर चमक आ रूप, छवि गेहूवा जहें ऊपउँ । वाला लगै अनूप है त नैनन लहलही ।--- रत्नहज़ार (शब्द॰) । २. एक प्रकार की जगली मैना | जाती हैं। २ एक प्रकार की मिट्टी जो लाल रंग की होती है और पानी कावला-सज्ञा पुं० [ग्रं० के दिल-रस्स] एक बड़ा पेंच जिसमें देवरी हालुने ने वड नसदार हो जाती है। | कसी जाती है वाल ।-(लश०) । विशेष—यह मिट्टी का विम बनाने में काम माती है। कावा-सा पुं० [अ० कावह.] १ अरव के मक्का शहर का एक स्यान जहाँ मुसलमान लग इज करने जाते हैं। उ०—काव कावी- सुज्ञा स्त्री॰ [फा० फावा) कुश्ती का एक पैच । फिर काशी भया राम व मया रहीम् । मोटे चूने मैदा भया विशेप- इममे खेलाडी विपक्षी के पीछे जकर एक हाथ से उसके वैठि कवीरा जीम --कवीर (शब्द॰) । जाँघिए का पिटा पकड़कर दूसरे हाय से उसके एक पैर विशेष—यह मुमतमानो का तोर्य इस कारण है कि यहाँ मुहम्मद की ननी पकड़ कर खींच लेता हैं। सावं रहते थे । काव--सज्ञा स्त्री॰ [फा०] १ कबूतरों का दरव।। २ काडे की गद्दी २ चौकोर इमारत । ३ पौसा | जिसपर रोटी रखकर तदूर में लगाते हैं। कावाडी--सच्चा पुं० [हिं० फवार, फवाड़] १ लकड़हार । लकडी कीबुल- सज्ञा पुं० [सं० कुभा] [वि० कावुली] १ एक नदी जौ अफगानिस्तान से आ कर अटक के पास सिंधु नदी में गिरती काटनेवाला । उ०—कावाड़ी नित काटता भीक कुड़िा झाङ । है । २ अफगानिस्तान का एक नगर जो वहाँ को राजधानी --वकी० य०, मा० १, १० ३२ । ३ गुदडी के सामान जुटाने और बेचने वाला। है। यह केवुल नदी पर है।३ अफगानिस्तान का पुराना नाम । काविज–वि० [अ० काबिज] १ जिसका किसी वस्तु पर अधिकार मुहा०---काबुल में भी गधे होते हैं = अच्छी जगह में भी बुरे या या कब्जा हो । अधिकार रखनेवाला । अधिकारकत । अधिकारी । २ ऐसी वस्तु जिससे कब्ज हो । योग्य व्यक्ति होते हैं। काविल वि० [अ० काविल [सच्ची काविलीयत] १. योग्य ! काबुली-वि० [हिं० काबुल) काबुत का । काबुल में उत्पन्न । लायक ( ३०- अरु काबिल खुरलीन, कोपि पति साह बुलाये। यौ० काबुलो प्रनार । काबुली मेवा । काबुली पट्ट । फावली | घोड़ा। -हमीर रा०, पृ० ६६ । १ विद्वान् । पंडित । यौ० - काविलजिक्र । काविलदीद । काविलतारीफ । कावनी चना - सज्ञा पुं० [हिं० कावुली+चना] एक प्रकार का चना काविल -सदा पुं० [हिं०] दै० कावुल' । उ०-- कवन कञ्ज जिसके दाने बड़े बड़े मर रगे साफ होता है । | काबिन गया, कियचे कवन से देदे |–१० रातो, पृ० १०२। काबुली वेवून-सा पुं० [हिं० काबुली+ववूल] एक प्रकार 'क। । बवुन नो सरो की तरह सीधा जाता हैं। काविदोद -वि० [हिं०] दे० काविनेदीद' । उ---जो कुछ पहले विप-यह भारत के प्राय सभी स्थानों में पाया जाता है। दिलो को काविलीद व दरकार है --प्रेमघन०, भा॰ २, बबई की प्रोर इसे राम बवू न कहते हैं । इमकी लकडो १० १३४।। साधारण बबूल की कडो से कम में जवून होती है। काविलित ५ --वि० [अ० काविल+हि० ते) ३ करने योग्य । काबली मदर-- सञ्चा जी० [हिं० काबुनी+मटर] एक प्रकार का

  • मदर जिस के दाने बड़े बड़े होते है । वहस करने योग्य । जिसपर बहस या विवाद किया जाये । ३० हुम कुछ हैवान अौर जगली नहीं कि हमारी मा चाल और काबुन मस्तगाममा ओ० [फा०] एक वृक्ष का गोद जो हम

मस्ती के समान होता है और मस्ती की जगह काम तक काविलितकै हौं ।- मघ ० 'भा॰ २, पृ॰ ६१ । अाता है । काविन्नीयत--संज्ञा स्त्री० [अ० काविलोपन] १ योग्यता । नियत । विशेप -इनका पेड़ बवई पान तया उरी भारत में भी होता २ पीडित । विद्वत्ता। है । उस ववई की मम्मी की क हदें हैं। काबिलेतारीफ-वि० [अ० दिन+तारीफ प्रशानी । प्रशंसा के योग्य । दिघ्य । कानु–ज्ञा पुं॰ [तु० फाबू! वने । ग्रधिकार । इनियार । जोर। वैन । कना । काबिलेददि---वि० [अ० कावित फा० +दाद] प्रशसनीय प्रगस। -- - -