पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३८८

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काँपुरुष 84४ कॉफूरी कापुरुष-सज्ञा पुं० [सं०] कायर। डरपोक । उ०-वर न सका काफिया--- सच्चा पुं० [अ० काफिया] अत्यानुप्रास । तुक । सज। कापुरुष जिसे तु, उसे व्यर्थ ही हुर लाया ।—साकेत पृ० । क्रि० प्र०--जोडना - मिलना ।—मिलाना !---बैठना ।- ३८९ । वैठाना । कापेय- वि० [सं० [सं० सी० कापेयी कपि सुवधी । वदर का । यौ० -काफियावदी = तुकबंदी । सज मिलाना । तुक जोडना ।। कापेय सच्ची पुं० १ शौनक ऋषि जो कपि ऋषि के पुत्र थे । २ मुहा०- काफियर तग फरना = बहुत हैरान करना । नाकों दम कपिसमूह (को०) । ३ बदरघुछ की । वदरभभकी (को०)। फरन! । दिक करना। काफिया तग रहना या होना=किसी कापोत- वि० [सं०] भूरे मटमैले रग का । कपोत वर्ण का । काम से तग रहना या होना । नाको दम रहना या होना। | २. थोड़े धनवाला । वहुत कम प्रायवाला [को०] ।। उ*--तम दिल्लगी करती हो और यही काफिया तग हो रही कापोत-सच्चा पुं० १ कबूतरो का ऋड । २ सुर मा । ३ सोडा । है !-मान०, मा० ५, १० ५, । काफिया मिलाना=(१) तु ४. क्षार । ५ वह जो रूढियो और परपरमो के अनुसार मिलाना । (२) अपना साथी बनाना। किसी काम में भाचरण रखता हो [को०] । शरीक करना । काप्य'सम्रा पुं० [सं०] १ एक प्राचीनकालिक गोत्र जिसके प्रवर्तक काफिर' ---वि•[अ० काफ़िर]१ मुसलमानो के अनुसार उनसे भिन्न कपि नामक ऋषि थे। २ अगिरस । ३ पाप (को॰) । धर्म को माननेवाला । मुनिपूजक । उ०—मूरख कारों के फिर काप्य–वि० कपि के गोत्र में उत्पन्न । कास्य गोत्र का । अाधी सिच्छित स्वहि भयो री |--मारतेंदु ग्र०, भा॰ २, पृ० काप्यकर-वि० [सं०] अपने पापों पर प्रायचित्त करनेवाला [को०] । ४०५। २ ईश्वर को न मानने वालो । निर्दय । निष्ठुर । काप्यकार सुब्बा पुं० [सं०] १ अपने पापों को स्वीकार करना । २ । वेददं । ४ दुष्ट । वुर । ५ काफिर देश का रहनेवाला । अपने पापो पर प्रायश्चित करनेवाला व्यक्ति [को॰] । | काफिर-सज्ञा पुं० १ एक देश का नाम जो अफ्रिका में है और उस काफ'--सी पुं० [अ० काफ]अरबी और फारसी वर्णमाला का एक देश का निवासी । २ दरिया । नदी । ३ किसान । ४ एक अक्षर।। प्रेम पात्र । मामूक । ५ अफ्रीका की एक हब्शी जाति । ६ एक काफ-सञ्ज्ञा पुं० [अ० काफू] अरवी फारसी वर्णमाला का एक जाति जो अफगानिस्तान की सरहद पर रहती है। अक्षर । काफिरिस्तान-सज्ञा पुं० [अ० काफिर+फा० स्तान] अफगानिस्तान काफ-सज्ञा पुं० [फाफ] १ अरबी वर्णमाला का एक अक्षर । का वह प्रदेश जहाँ काफिर जाति रहती है। अब जद में १०० की सुचक सख्या । ३ कोहकाफ जो काला- काफिरों'-वि० [अ० फाफिरी] १ काफिर सर्वधी । २ काफिरो सागर और कास्पियन सागर के मध्य में है । काकेशस पहा । जैसा [को०] । ३. एक कल्पित पहाई जिसके विषय में धारणा है कि वह काफिरो-.-सच्चा स्त्री॰ १. काफिरो की भाषा । २ काफिरपन ।। दुनिया को क्षितिजविस्तार तक घेरे है । | काफिना---सुज्ञा पुं० [अ० काफिलहों यात्रियों का झुई जो तीयं, यौ ०–काफ तो फाफ या फाफ से काफ तक = एक छोर से दूसरे व्यापार आदि के लिये एक स्थान से दूसरे स्थान को जाता है । छोर तक । भूमडले भर मे । सारी पृथ्वी मे । कफ से दाल = यौ॰—फाफिला सोलार = यात्रियों का नेता । काफिने का (संभवत 'कौल शो दलील' का सक्षेप) (१) वातचीत और सरदार । सार्बपतिं । तक । (२) सजावट । तडक भडक । (३) मुखं । वेवकूफ । काफी'—वि० [अ० काफी] किसी कार्य के लिये जितना अविश्पक ही उन । मत उर्व भर के लिये । पर्याप्त । पूरा। काफ-सच्चा पुं० [अ० काफ]असत्य । झूठ । उ०—सो काफिर जे क्रि० प्र०—होना ।। बोलै कफ ।—दादू०, पृ० २५४ ।। काफूर--वि० [अ० काफिर सं० 'काफिर' । उ०- -सो काफर सो ही । काफी-सच्चा पुं० [हिं०] सपूर्ण जाति का एक राग जिसमे गधारे का मापण बूझे अल्ला दुनिया भर ।—दक्खिनी॰, पृ० १०८। कोमल लगता है। विशेष- -इसके गाने का समय १० दइ से १६ दड तक हैं। काफी काफरो–वि० [हिं० काफूरी] दे॰ 'काफूरी' । उ०—काफरी कपूर कान्डा, काफी टोरी, का । होली अदि इक कई सयुक्त चरबी अरबी हैं अँगरेज आदि काठ ठून तूल पूस भूसे है - भारतेंदु ग्र०, भा॰ १, पृ० ८६५ । काफी-सच्चा स्त्री० [अ० कॉफी दे० 'कहवा'। काफरी मिर्च-सच्चा स्त्री० [हिं० काफिरी+मिर्च] एक प्रकार का काफूर--सज्ञा पुं॰ [फा० काफूर, तुलनीय सं० कपूर, हि० कपूर | मिरचा जो चपटे सिर का गोल गोल और पीला होता है। । [वि० काफूिरो] कपूर। काफल'.-पुं० [सं०] कायफल । मुहा०—काफूर होना = चपत होना । रफूचक्कर होना। गायव काफल*-- सुब्बा पुं० [सं० टफले] छोटा लाल फुन्। उ०-... होना । उड़ जाना । लुप्त होना । जैसे,—वह देखते ही देखते काफल थे रग रहे, फूल मे थी फल लिए खुदानी ।--अतिमा, काफूर हो गया। १० १५। काफूरी'-वि० [हिं० फाफर] १ काफूर का । १. काफूर के रग का । फा-सा पुं० [अ० कापफ, सेवार। प्रपत्र । उ०- दरस काफूरी-सा पुं० १ एक प्रकार का बहुत हुलका रग जिसमें कुछ रिया फतच अ६ माफ !--दरिया बा, पू० ४० । कुछ बुरेपन की झलक इवी है।