पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३८३

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कान' हर तरह की बात को मान लेनेवाला 1 झठी या निराधार बात को मान लेने वाला। उ०—जो करें ढाह ६ विपठ हम पर। पढ़ उतारें न कान के पतले }-चुभते०, पृ० १ ० । कान की बैंठी या मैल निकलवाना = (१) कान साफ कराना । (२) सुनने के योग्य होना ! सुनने में समर्थ होना । (अपने) कान खड़े करना = (१) (ग्राप) चौकन्ना होना । सचेत होना । जैसे,—वहुत कुछ खो चुके, अध तो कान खड़े करो। (दूसरे के) कान खड़े करना = सचेत करना । होशियार कर देना । चेतना। वजग कर देना ! भूल बता देना ! कान गरम करना या कर देना = क्रीन उमेऊना ! कान झन्नाना= अधिक शब्द सुनने से कान का सुन्न हो जाना । जैसे,—-इन झांझ की अावाज से तो कान *न्ना 'ए । कान पुछ दवाकर चला जानी चुपचाप च जाना। बिना ची चपड किए खिसक जाना । बिना विरोध किए टेल जाना। कौन थेदना = वाली पहनने के लिये कान की लौ मे छेद करना । (यह वञ्चों का एक मेकार है।) .नि ददाना= विरोध न करना । दवना । सह्मना । जैसे,—उनसे लोग कान दवाते हैं। उ०—दो चार आदमि नै पकानो और छतों से देले फेकै मगर यह कान दाए चले हैं। गए ।—फिसाना०, ० ३, पृ० ६६ । ( किसी बात पर ) कान देना= ध्यान देना। ध्यान से सुनना । जैसे,—हम ऐसी बातों पर काने नहीं देते । 39-—कहा जिए कान प्रान प्यारी की बातृन । कहा लीजिए स्वाद अधर के अमृत अधात न !-प्रज० ग्र०, पृ० ५९५ ) (किमी वात पर) कान धरना = ध्यान से सुनना । (किसी बात से) कान घरना = (किली वात को) फिर ने करने की प्रतिज्ञा करना । वाज आना । कान धरना = दे० ‘कान उमेटना' । कान न दिया जाना = केकंग या कब्ण स्वर सुनने व क्षमता न रहना। न मुना जाना । सुनने मे कष्ट होना । जैसे,—(क)व्ठेरों के बाजार में कान नहीं दिया जाता। (ब) अपनी माता के लिये बच्चा ऐसा रोता है कि कान नहीं दिया जाता । कान पक जाना = ऊत्र जाना । अनिच्छा होना। उ०--सुनते सुनते मैरा कान पक गया।—किन्नर०, पृ० ७६। कान पकडना = (१) कान मलकर दड़ देना । कान उमेश्ना ! (२) अपनी भूल या छोटाई स्वीकार करना । किमी को अपना गुरु मान लैना । (३) किसी बात को न करने की प्रतिज्ञा करना । तोबा कर नी । जैसे,—प्राज से कान पकडते हैं, ऐसा काम कर्म न करे । (किसी बात से) कान पकड़ना = पछतावे के साथ किसी बात के फिर न करने की प्रतिज्ञा करना । जैसे,—अब हम किसी की जमानत करने से कान पकडते हैं। कान पकड़ी बड़ी = अयन आज्ञाकारिणी दासी । फान पण कर उठना बैठना = एक प्रकार का दड़ जो प्राय लइका को दिया जाता है । फान पकड़कर निकाल देना = अनादर के साथ किसी स्थान से बाहर कर देना । बेइज्जती से हटा देना। कान पडना, कान में पड़ना = सुनने में माना । सुनाई पड़न। कान पर ज न रगना = कुछ भी परवा ने होना । कुछ भी ध्यान न होना । कुछ भी चेत न होना। बेखबर रहना । जैसे,—इतना नव हो गया पर तुम्हारे कान पर जू न रेंगी। फान पर हाथ धरकर सुनना = ध्यान से सुनना । उ॰—अगर इजाजन हो तो अर्ज हाल करू’ मगर कान पर हाथ धरकर नुनिए।--सिमाना, मा० ३, १० १२१ । कान पार कर सुनना = इयान से या एकाग्र होकर सुनना। ३०--भौर तु कही न मानीं बात ।' कानन पारि न सुनत वाहि ते नेको वेन हमारो ।-ठे०, पृ० १५। कान पूछ फटकारना = सजग होना । सावधान होना । चैतन्य होना तुरंत के प्रावात से स्वयं या तदा से चैतन्य होना। जैसे-इतना सुनते ही वे कान पूछ फटकार कर बडे हुए । कान फटफटाना = कुनो का कान हिलना जिससे फट फट का शब्द होना है। (यात्रा ग्रादि में यह अशुभ समझा जाता है ।) कान फुकवाना - गुरुमत्र तेना। दीक्षा लेना । कान फुकाना= दे० 'कन फुकाना' । उ०—जिंदा एक नगर में आया, तावो राजा कान फुकाया ।—कवर सा०, पृ० ५२६ । कान फूकना = (१) दीक्षा देना । चे 'T बनाना । गुरुमंत्र देना । (२) ३० कान भरता' । फान फटना या कान का परदा फटना = कड़े शब्द सुनने सुनने कान में पीडा होना या जी ऊबना । जैसे,—-ताशो को अावाज से तो कान फट गए हैं। कान फूटना= दे० 'कान फटनी या कान का परदा फटना' । उ०—गरजनि तरजनि अनु अनु मौत । फुटे कान अरु फाट छाती ।- नंद० ग्र ०, २० १६१ । काने फोइना = प्योर गुल करके कानों को कष्ट पहुँचाना। फोन बजना = कान में वायु के कारण सय सय शब्द होनः । कान बहना= कान से पौत्र निकन्नना 1 फोन वपना = कान छेदना । फोन चपडियाना या बुचियाना = कानों को पीछे की घोर दवाकर काटने या चोट करने को तैयारी करना। (यह मुद्रा वदरौ ओर घोडो में वहुधा देखने में स्नाती है। कान भर जाना सुनते सुनते जो ऊब जाना । जैसे,—उसकी तारीफ सुनते सुनते वो कान भर गए । कान भरना = किमी के विरुद्ध किसी के मन में कोई वात वठी देना। पहले से किसी के विपत्र में किसी का खयाल बराव करना । जैस,-लोगों ने पहले ही में उनके काने भर दिए थे, इसनिये हुनर व कहूना सुनना पर्यं हुआ । उ०—क्यो भला अाप भर गएं साहब, कान हो तो भरे किसी ने थे,--चोखे, पृ० ५३ । कान मलना = दे० 'फान उमेठना' । फान में कोई डालना दास या 5 33 म वनाना । फोन में तेल डालना = बहरा बन जाना । वैववर हो जानी। ध्यान न देना । उ०-- कान में तेल डान लेने से, कान का खोल डाल [ अच्छा ।—चावे, १० २८ । फान में तेल डाल वैठना = बहर। वैन जानावात सुनकर भी उस शोर कुछ ध्यान न देना। वेखबर रहना । जैते,--लोग चारो ओर रुपया मांग रहे हैं और वह कान में तेल डाले वैया है । (कोई वात) कान में डाव देना = गुना देना । फान में पारा भरना = कान में पारा भरने का दह देना । (प्राचीन कान में अपराधियों के कान में तीन या पारा भरा जाता या। (किसी फा) कान लगना = कान के पीछे घाव हो