पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३८२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

कादरी २९६ कान। कादवरी-सहा सी० [सं० कादम्बरी ] १ कोकिल । कोयल । २ काद्रव-वि० [सं०] गहरे पीले रग का [को॰] । सरस्वती । वाणी ३. मदिरा। शराब । उ०--मधुर केलि काद्रवेय-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] रोप, अनंत, वानुक, तक्षक आदि सर्प ज्ञों कादवरी छके सँवरे छैन ।—घनानंद, पृ० २७३ । ४ मैना। कद् से उत्पन्न माने जाते हैं। ५ बाणभट्ट की लिखी एक अख्यायिका जिसकी नायिका का कान--संज्ञा पुं० [सं० फर्ण, प्रा० फण्ण] वह इंद्रिय जिससे शब्न का यही नाम है । ६ गड्ढो में एकत्र बरसात का पानी (को॰) । ज्ञान होता है । सुनने की इद्रिय । श्रवण । श्रुति , धोत्र । कादविनि-सज्ञा स्त्री० [सं० कादम्बिनी} दे० 'कादविनी' । उ० विशेष—मनुष्य तया और दूसरे माता का दूध पीनेवाले जीवो निरवधि रस की रासि रसीली । हित कादविनि नित के कान के तीन विभाग होते हैं 1(क) बाहरी, अर्थात् सुप की बरसीली ।-घनानंद, पृ० १८५ ।। तरह निकला हुग्रा भाग झोर बाहरी छेद । (ख) वीच फा कादविनी-संज्ञा स्त्री० [सं० कादम्बिनी] १. मेघमाला ! घटा । २ भाग जो वाहुरी छेद के अागे पडनेवालो झिल्लो या परदे के मेघ राग को एक रागिनी ।। भीतर होता है और जिसमे छोटी छोटी बहुत सी हड्डियों फैनी कदम - सज्ञा पुं० [सं० कदम, प्रा० कददन] दे॰ 'कर्दम"। उ० होती हैं और जिसमें एक नदी नाक के वेदो या तीलू के ऊपर वसु मास कादम मचो पसंत परवत वणे, रुधिर मिल सतपत वाली थैली तक गई होती है । (ग) भीतरी या भूलभूलैया चो हुप्रो रातो रघु० ६०, पृ० २० । श्रवण शक्ति का प्रधान साधक है और जिसमें शव्दवाहक कादर-वि० [सं० कातर] १ डरपोक । भीरु । बुजदिल । २ ततुओं के छोर रहते हैं। इनमें एक थैली होती है जो चक्कर व्याकुल । अधीर । उ०—(क) लाल विनु कसे लाज चादर दार हड्डियों के बीच में जमी रहती है। इन चक्करदार रहेगी अाज कादर करत मोहि वादर नए नए ।—श्रीपति थैलियो के भीतर तथा बाहर एक प्रकार का चेप या रस ( शब्द०)। (ख) क्षण इक मन में शूरि कहोई । क्षण इक रहता हैं । शब्दो की जो लहरें मध्यम भाग के परदे फी मे कादर हो सोई ।—प्रनुराग, पृ० ४१ ।। झिल्ली से टकराती हैं, वे अस्यिततुग्रो द्वारा भूलभुलैया में कादरियत -सज्ञा पुं० [अ० कव्रत ] कुदरत करने वाला । उ पहुचती हैं । दूध पीनेवानों से निम्न श्रेणी के रीढवाले जीवों कादरियत के ग्राल में में किसे च कुदरत नई, जो खुदा में कान की बनावट कुछ सादी हो जाती है, उसके ऊपर का कहवाये ।—दक्खिनी०, पृ० ४११ ।। निकला हुग्रा भाग नहीं रहता, अस्थितनु भी कम रहते हैं। कादव-सज्ञा पुं० [स० कर्दम, प्रा० कद्दम, काँदो) दे० 'काँदो' । बिना रीढवाले कीटो को 'भो एक प्रकार का फन होना है । उ०—मानि कादव लपटाये रे, ले कि तनिक गुन जाए रे । मुहा०—कान उठाना = (१) सुनने के लिये तैयार होना । विद्यापति, पृ० ४६५ । अाहट हेना । अकनना । (२) चौकन्ना होना । सचेत या कादा--संज्ञा पुं० [सं० क = जल + = भीगी हुई] लकड़ी की सजग होना । होशियार होना । कान उड़ जाना=(१) पटरी जो जहाज की शहतीरो और कडियो के नीचे उन्हें जकडे लगातार देर तक गभीर या डा शब्द सुनते सुनते कान में रहने के लिए जडी रहती है। पडा और चित्त मे घबराहट होना । (२) कान का कद जाना। कादिम -सज्ञा पुं० [हिं० कदम] दे० 'कर्दम' । उ०-नदियाँ कान उड़ा देना=(१) हल्ला गुल्ला करके कन फी पाडा नाला नीझरण, पावस चढ़िया पूर। करउ कादिम तिलकस्यई पहुँचाना और व्याकुल करना । (२) कान काट लेना । पथी पूगल दूर ।–ढोला०, ६० २५६। कान उड़ाना= ध्यान न देना। इस कान से सुनना उसे कान कादिर-वि० [अ० कादिर] १ ताकतवर । शक्तिशाली । २ से उडा देना। उ०—अर्थ सुनी सब कान उडाई !-कवीर सामथ्यंबान । काबुदार । उ०-वीर रघुवीर पैगवर खोदा मेरे, सा०, पृ० ५८२ । कान उमेठना =(१) दंड देने के हेत किती कादिर करीम काजी भाया मत खोई है ।—मलूको॰, पृ॰ २६ । का कान मरोड़ देना । जैसे,-इस लडके का कान तो उमेठो । कादिरकार-वि० [अ० फाविर+फा० कार(प्रत्य ०)] शक्तिशाली (२) दड आदि द्वारा गहरी चेतावनी देना । (३) कोई बनानेवाला । सामथ्र्य प्रदान करनेवाला । उ०--जिदगानी काम न करने की कड़ी प्रतिज्ञा करना । जैसे,—लो भई। कान उमेठता है, अब ऐसा कभी न करेगा। कान ॐ चे करना मुरद वाद, कुजे कादिरकार ।—दाटू०, पृ० ५०७ ।। दे०कान उठाना । कान ऐंठना = दे० कान उमेठना' । फान कादिरी-सज्ञा स्त्री० [अ० कादिरी] एक प्रकार की चोली जिसे फतरना = दे० 'कान काटना' । कान करना = सुनना। ध्यान वेगमे पहनती हैं। सी नावद । उ०—नीमा जामा तिलक लवादा देना । उ०—-बालक बचने करिय नहि काना । —तुलसी कुस्ती गला दुनही, नी मस्तीन कादिरी चोला झगला - (शब्द०)। कान काटना = मात करना । वेफर होना । सुदन (शब्द०)। उ०—बादशाह अकबर उस वक्त कूल तैरह बरस चार महान कादी- सज्ञा पुं० [अ० काजो] दे० 'काजी' । उ०----सुरुवान के का लड़का था, लेकिन होशियारी अौर जवमर्द बडे बडे फरमाने सगो राह सम सम सेल पलु, कादी पोजा मुपदूम लरु। जवानों के कान काटता था। - शिवप्रसाद (शब्द॰) । | कीति ०, १० ८० ।। कान का कच्चा = शोन्नविश्वासी । जो किसी के कहे पर विना कादो - सच्चा सुं० [हि कदिन, कादव दे० 'कोदो' । उ०— सोचे समझे विश्वास कर ले । जो दूसरो के व हवने में अ परवत वुडे भूमि नहि गीजे कादो वकुलह खाई ।-- म० दरिया, जाय । उ०---क्यो भला हम व ति के रची सुनें। हैं न व उचे न १० ११२ । कान के कच्चे --चुभते ०, १० १७ । कान को पतला