पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३८०

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काठी ८६६ फतुरचिरि काठी -वि० [सं० कष्ट, हु, प्रा फट् ] ( राज० ) कठी। काण'--० [३०] १ काना। २ छद मिा ३ (को०) । खूब मजबूती से । उ०-गण काइ न सिर जिय, प्रीतम हाय काण.--सा ५० उम्र । करत । काठी सात मूठ मी, काही काखी सरी ।-ढोल०, काण’--सी R० [हि: ५।नि] मयदा । लोक उज्जा । २०-- पी छ।फा ने न्', हा चाल F 1 की० ॥ ०, का -सा पुं० [ हि० काठ ] गटू की तरह का एक प) ar जिम की +f० २, पृ॰ ३ । खेती हिमालय के कम ठढे स्थानों में होती है । काण ---- पुं० [सं०] १ पौया । २ मुग । ३. एक प्रकार का विशेप--इस का पेड कूटू से कुछ बड़ा होता है । और दाने फूट ही हुन । उया नाम चिपा (०} । की तरह पहलदार होते हैं, पर कोने नुकीले नही होते । इसकी काणय-सी j० [सं०] झी स्त्री का सफ़र १०] । तरकारी भी लोग खाते हैं । क्राणर--सा पुं० [सं०] १० 'हाय' (दै०) । काठो-सधा पुं० [ हि० काठ ] एक प्रकार का मोटा धान जो पजाब । काली--राग मी० [मुं०] १ ब्यभिचारिणी भी । २ त्रिहित में होता है। काड–सधा झी० [अ० कोई 1 एक प्रकार की मछली जो उत्तर की

  • [को०] ।। और ठढे समुद्रो में पाई जाती है।

यौ~--फागेलोमाता=(१) अविवाहित स्त्री का पुर। (२) विशेप---यह तीन वर्ष में पूरी वाढ़ को पहुँचती है । उस समय माता जियो प्रबिवाहित अवस्था में न हो। यह तीन फुट लेवी और तौल मे १२ पाउ इ से २० पा3 ड त है काण्व-स, पुं० [सं०] १ फ7 का वनज । २ कप फ़ा पनु ।यो । होती है। इसका मास बहुत पुष्टिकर होता है। इसमें एE कात्र--सधा पुं० [० फात १] फलप व्याकरण निमें कुमार या प्रकार का तेल बनाया जाता है जिसे 'काड लिवर प्रल' कार्तिकेय की कृपा से सयंम ने उनाया था। कहते हैं । यह तेल क्षय रोग की अच्छी दा मानी जाती है । , कात--सा पुं० [सं० करीन, ग्रा० सन १ एक प्रकार को केवी इसमें विटामिन बी पर्याप्त मात्रा में होता है । जिसमें रिये भेड़ के बात करते हैं। २. मुर्गे के परे का यौ०- का लिवर अायल = करि नाम की मछली के फलेने से फा । । निकाना हुआ तेल । कातक५ --सा पुं० [हिं०] ३० 'काति'। उ०—कति फरत काडो-सच्चा भी [सं० फा३] अरहर का सूखा और कटा पेड़। पहुगर सनने । गोकन महातम सुनत कान पृ° कदिन । रहर्ट । ७ि, १ । ३६०। काढ़ना-क्रि० स० [सं० फर्षण, प्रा० फड्ढण] १. किमी वस्तु के कातना-- क्रि० स० [सं० फत्तन, प्रा० फत्तन] १ ३ वे व उनाना । भीतर से कोई वस्तु बाहर करना । निकालना। उ०—(क) इ ५। ऐठ या चटकर तागा बनाना । उ०---बहू सास को खनि पताल पानी तह काढ़ा। छीर समुद निकसा हुत कहि समुचे तु मेरे ढिग बैठी कति ।---सुदर नं ०, भा० १, वाड़ा ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) मीन दीन जनु जल । पृ० ५४५। २ ढेर से सने या मुज आदि की रस्सी वनाना । ते काढ़े -- तुलसी (शब्द०) । २. किसी अावरण को मुहा०-महीने कातना=बहुत कुशलता से गई गकर बात हटाकर कोई बस्तु प्रत्यक्ष करना । खोलकर दियाना । जैसे, करना । दात काढ़ना । ३ किसी वस्तु को किसी वस्तु से अलग । कातर'-वि० [सं०] [स फातरता ! १ मधीः । व्याकुन । चचल ! करना। उ०—तब मथि कादि लिए नवनीता ।—तुलसी ३ डरा हुअा। भयभीत । ३, डरपोक । बुजदिल । उ॰—(शब्द॰) । ४ लकडी, पत्थर, कपडे अादि पर वेल दूटे कोउ कातर युद्ध पर।व सभय (शब्द॰) । ४ अ त । दु वित । बनाना । उरेहना। चित्रि में करना । जैसे-वैल वूटा काढ़ना, ३०-कावर वियोगिन दुपद रन कीभूमि पावते नम भई। कसौदा काढ़ना । उ०—(क) परिहि पंवरि सिह गढ़ि भारतेंदु अ ०, भा० १, पृ० ११०। काढ़े। ढरप लोग देखि व ठाढ़े ।—जायसी (शब्द०)। यौ---फातरोक्ति५(१, दुःख से भरा पूचन। (२) विनती । (ख) राम वेदने विलोकिं मुनि ठाढ़ा । मान” चित्र माझि प्रातविनय । लिखि काढ़ा ।—तुलसी (शब्द॰) । ५ उधार लेना। ऋण ५ विवश । लाचार (को॰) । लेना । जैसे, उनक पास रुपया तो था नही, पाही से फाढ़ कातर-सपा पुं॰ [सं०] १ घनल । २. एक प्रकार कर लाए हैं । उ०—(ग) मात पितहि उऋण भए नीके। कातर-सा पुं० सं० कतरी] जबडा। चोभर ।-(कलदर) । गुरु ऋण रहा सोच बड़े जी के । सो जनु हुमरे माथे काढ़ा। कातर"- सय ० [सं० फट् = कातनेवाला कोल्हू में लकी का दिन चलि गए ब्याज बहू बाढ़ा ।—तुलसी (शब्द॰) । वह तथा जिसपर हाकनवाजा बैठता है पर जो काह की ६. कड़ाहे मे से पकाकर निकालना । पकाना। छानना । कमरे से लगा हुम उसके चारो मार घूमती है । ईधी में दें। जैसे,—पुरी काढ़ना, जलेबी काढ़ना । ७ दूध दुहना । जैसे,--- जाते जाते हैं। गैया का दूध अभी काढ़ा गया है। कातरवा-सा श्री० [सं०]{वि० कातर 1 मीर।।। च नि । काढ़ा- सच्चा पुं० [सं० क्वीय, प्रा० काठ] मोषधियो को पानी में २ दुख की व्याकुलता । ३ डरपोकपन । चाख मा चौदाकर बनाया है। यरवत । स्वाथ् । खोयांव। कातराचार-सपा पुं० [सं०] नृत्य में एक प्रकार का ६९ ।