पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३७४

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काकुल ६९० कागजी सबूत विशेप–इसका चमडा बहुत सफेद, मुलायम और गरम होता है। विशेप---यह स्पेन, पुर्तगाल तथा अफिफा के उत्तरी नागों में होता | अमीर लोग इस चमड़े की पोस्तीन वनवाकर पहनते हैं। है। यह ३०-४० फुट तक ऊँचा होता है। इसकी छाल दो ककुिल-–मझा पुं० [फा०] कनपरी पर लटकते हुए लबे वाल । इच तक मोटो और बहुत हलकी तथा लचीली (अर्थात् कुल्ले । जुल्फें 1 उ०—दामे काकुल का तेरे कोई गिरफ्तार दाव पड़ने से दब जानेवाली) होती है। वोतले, पीजी अादि नही, पेंच हम पर ए पड़ा |--श्यामा० पृ० १०२ । को इट इसी छाल की बनती है । महा-काकुल छोड़ना = वालो की लट गिराना या विखर नि । २. बोतल या शीशी की डाट जो काग नामक पेड़ की छाल से काकुल झड़ना=वा मे कधी करना । वनती है। काकेची—सज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की मछली को०३ ।। कागज-सज्ञा पुं० [अ० फागज] [वि० फागजी] १. सन, रूई, काकोचिक-सझी पुं० [सं०] एक प्रकार की मछली (को०)। पटुए, वोम, लकडी ग्रादि को पीसकर या सड़फर बनाया हुआ। काकोदर सज्ञा पुं० [सं०] [स्पी० काकोदरी] १ सौप । उ० पत्र जिमपर अक्षर लिखे या छापे जाते हैं । दादुर काकोदर द सन परै मसन मति ध्याउ दीन० ग्न ०, यौ॰—कागजपत्र =(१) लिते हुए कागज । (२) प्रामाणिक पृ० २०६ । २ अघासुर नाम का राक्षस जिसका वध कृष्ण ने लेख ' दस्तावेज । किया था। उ०—हरि तन चितय कहत काकोदर । याकै महा०----कागज फाला करना- व्यर्थं कुछ लिम्वना । फागज उदर दोउ मेरे सोदर ।—नद अ ०, पृ० २६० ।। रंगना= कागज पर कुछ लिखना । फागज फी नाव =णको कोल–सज्ञा पुं० [सं०] १ एक विप का नाम । २ काला कौश्रा | भगुर वस्तु । न टियाने वाली चीज । कागज फी लेवी-ग्र यो (को०)। ३ मर्प (को०)। ३ शूकर (को०) । ५ कुम्हार (फो०) । में लिखी बातें जो आखों से देखी बातो की अपेक्षा कम ६ एक नरक (को०)। ७ एक बहुमूल्य वस्तु या पदार्थ (को०)। प्रामाणिक होती है । उ० -- मैं कहता हू' अधिन देवी, तू काकोली—सज्ञा स्त्री० [सं०] एक पधि । कहता कागज की लेवी ।---कीर ई०, भा० १, पृ० ३५ । विशेप-यह एक प्रकार की जड या कद है जो सतावर की तरह कागज दौडाना, फागजी घोड़े दौड़ना= खूब लिखापढ़ी। करना । बुव चिट्ठीपत्री भेजना 1 परस्पर खूब पत्रहोती है, पर अाजकल मिलती नहीं। इसका एक भेद क्षीरका कोली भी है। वैद्यक में यह वीर्यवर्चक अर क्षीरवर्द्धक व्यवहार करना । कागज पर चढ़ना= कहीं लिख लेना । मानी गई है। टाकना । टीपना । पर्या०—शीतपाको । पपस्या । क्षीरा । वीरा । धीरः । शुल्को। २ लिखा हुमा कागज़ 1 लेख। प्रामाणिक लेख । प्रमाणपत्र । दस्तावेज । जैसे,—जबतक कोई कागज न लाओगे, तुम्हारा मेदुरा । जीवती । पयस्विनी ।। दावा ठीक नही माना जाएगा। काकोलूकिका–सल्ला स्त्री० [सं०] कौया र उल्लू के जैसी सहज क्रि० प्र०—निखना --- लिवाना।। शत्रुता [को० । । ३ संवादपत्र । ममाचारपत्र । उपर का कागज । अस्ववारे । काकोलकीय--सुज्ञा पुं॰ [म०] १ काक और उल्क की सहज जैसे –अाजकल हम कोई कागज नहीं देखते । ४ नोट । वैर । २ पचतंत्र का तीसरा तत्र [को०) । प्रामिसरी नोट ।—जैसे,—३००००) का तो उनके पास यौ॰—काकोलूकीय तत्र =पच तय का तीसरा तत्र । फाकलूकीय | खाली कागज है। न्याय = वह न्याय जहाँ कौञा शीर उल्लू की सहज पश्तिा की कागजात---सधा पुं० [अ० कागज का बहु०] कागजपत्र । स्थिति हो । | कागजी-वि० [अ० फागज +फा० ई (प्रत्य॰)] १. कागज की । काक्ष---सच्चा पुं० [सं०] १ तिरछी नजर 1 कटाक्ष । २. कोप दृष्टि । | कागज का बना हुआ । २ जिसका छिलका कागज़ की तरह ३. कुदृष्टि (को०] । | पतला हो । जैसे,—कागजी नीबू, कागज़ बादाम । काक्षी--सच्चा स्त्री० [सं०] १ एक प्रकार का सुंगधित पदार्थ । २ एक यौ----कागजी जो क = बहुत पतली और छोटी जोक ।। प्रकार की सुगधित मिट्टी को०] । विशेप--जो तीन प्रकार की होती हैं ।---(१) में सिया ! काख--सज्ञा स्त्री० [हिं० कांख] दे० 'काँख'। उ०—-पट अ६ । (२) मझो और (३) कागजी । जठर बीच तो वेनु । काख वेत, कच लपटे रेनु }--तेंद० कागजी-- सज्ञा पुं० १ कागज बेचनेवाला । २ वह कबूतर जो विलकुल ग्र ०, पृ० २६४।। सफेद हो । काग- सच्चा पु० [सं० काक] का 1 वायस । कागजी कारवाई-सज्ञा जी० [हिं० कागजी + फा० काररवाई] मुहा० फाग उड़ाना = किसी के आने का शकुन विचारना। लिखापढ़ी । ३०-वारुडियों में यक्कियो, काग उड़ाइ उडाइ ।-ढोला०, कागजी बादाम–संज्ञा पुं॰ [हिं० कागजी+फा० बाद मि] एक प्रकार का वढिया वादाम जिसका ऊपरी छिलका अपेक्षाकृत पतला ६० १६७ । । होता है। यौ०--कागभुसुडि, कागभुसुडी । कागजी सबूत--सज्ञा पुं० [हिं० कागज +अ सबूत] कागज पर काग--स्वच्छा पु० [अ० फार्क] १. बलूत की जाति का एक बडी पेड़ । लिखा हुआ सबूत । लिखित प्रमाण ।