पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३६८

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काडी ८८४ काषा २ जहाज के लगर की डाँड़ो, अर्थात वह सीधा भाग जो मुड़े २ प्याज । उ०-या मझ कोदा त जिम !---२ को हुए अंकुह ौर ऊपरी सिरे के बीच में होता है । ३. बस या । ये २, मा० २, पृ॰ ६७ । । लकड़ी का कुछ पतला सीधा लट्ठा जो घर की छाजन में का दूसधा पुं० [सं० फान्दविक] १ बनियो बी एफ जानि । २ बहू लगता तथा मौर और कामों में भी आता है। जाति जो भड़भूजे का व्यवसाय करती है । यो०-- कांडी कफन = मुरदे को रथी का सामान । को दो --सृज्ञा पुं० [सं० कर्दम, पा० कद्दम] कोच ) कीचः । ४ छ । लट्ठा । उ०—और सुअy सोने के द्वाडो । सारदुल रूप पक। उ०—मगि नहि रु पानी पर 'टा । पछिfह कोई की कड़िी ।—जायसी (शब्द॰) । ५ अरहर का सूप डठल । न कोदो प्राटा -- जायसी (शब्द॰) । रहा । का घ(---सर पुं० [सं० फन्प, प्र० सप] होघा । उ----(क) मा का डी.- संज्ञा स्त्री॰ [सं० फाण्डु = समूह, मु] मछलियों का समूह था। माँग सुत्र गजरहि चाऔं । निसि दिन रहि महाउत झा ।-- झुङ । दाँवर ।। जायसी (शब्द०)। (प) मस्तूप टीका काध जनेऊ । झवि काती-- सच्चा नी० [हिं० फ] १ कैची । १ छुरी। ३ बिच्छू का वियस पंडित राहदेऊ ।-जायसी (शब्द॰) । एक ।४ अत्यधिक व्यथा। मुहा०—फॉप देना=(१) ग्रहा। देना। उठाने में सहायता काथुरा-सया पुं० [पु० कन्या, हिं० करो फा पुं०] ३० 'कायर'। करना । किसी नारी चीज को कने पर उठा कर ले जाने में उ०—दे मदिरा भर प्याला पीवों । होइ मतवार कथा सहायता देना । (२) प्रकार करना । ऊपर सेना । सव --इद्रा०, पृ० १० ।। मानना। उ०--यह सो कृष्ण बलराम जन कोन चहै छर काथरि---सच्चा श्री० [सं० कन्या कथरी । गुदड़ी। उ०-कैरो वा ध। हम विचार अरु पापछि में र दीन ने काध -- ढब कथरि कथा । कैसे पाँय चलव भुई पंथा ।—जायसी जायसी (शब्द०)। फाँध मारना =न टिकना । या दैन । | (शब्द॰) । फाम ने माना। वृ--सुजन जो नाहि मारवले साधा। बुध कथरी+--सज्ञा चौ० [हिं० फयरो] कथरी । गुदद्दी । कहिये हस्ती का वा धर जायसी (शब्द०) । फघि सगना = काद--सा पुं० [सै० स्कन्ध, प्रा० कघ कांध] ३० 'कधा' । भारी या दूर तक बोझ ले जाने से कंधा दुना यो कत्लाना उ०—न देखे कोई त्यो अहिस्ता दर्ग छग । हलू इस कदि हैं। (फहारों की बोली) । फाँध लेना= उठाना ! ऊपर लेना । | उस कद के लग ।—दक्खिनी॰, पृ. २८२ ।। से नालना । उ०—काध सुमृद धस ीन्हे मि मा पा३ सय कांदना--- कि० अ० [सं० फन्दन= विल्लाना । वैग०] रोना । कोई । कोइ काहू न सभार मापन यापन हो; E-जापसी चिल्लाना । उ०--उसी समय एक ऋषि जो इंघन के लिये (शब्द॰) । वहीं जा निकले, दूर ही से उसका रोना सुनके पति व्याकुल | २ कोल्हू की जाठ में मु उ के ऊपर का पतला भाग । हो लगे सोच करने कि यह तो अनाय स्त्री कोई फदिती है।-- का धना(५–० स० [हिं कपि से नाम०] १ उठाना । [स सदल मिश्च (शब्द॰) । पर नैना । सँभालना । उ०—-(क) प्रीति पहाड भार जो कादर--सञ्ज्ञा पुं० [सं० फादर] ३० 'फादर'। उ०-झलमल काधा । ति तेहि छूट जाइ निम वाघ।—जायसी (शब्द॰) । तीर तरवारि बरछी देपि फादर काचा !- सुदर प्र ०, 'मा० २, (ख) उठा वाघ जस राब गर्ने वाधा । कीजै वे भार जम पृ० ८८५ । का घr ।—जायसी (शब्द॰) । १ ठानना । मचाना । कादरना--क्रि० प्र० [सं० क्रन्दन, हि० कवना] चिल्लाना । ऋदन उप-(क) सुभज मारच सर् त्रि सिर दूने बानि दलत जेहि करना। उ०—-चीजल ज्य चमके वाढाली, फाइर फादर दूसरो सर ने साधो । अनि पर नाम, विधि बाग तेहि राम भाजै ।—सुदर ग्र ० भा० २, पृ० ८८५। सो सकत सग्राम दसकंध का ध ।---तुलसी (शब्द०) । (ख) कादव-सबा पुं० [सं० फर्दम, प्रा० फद्दम, दो, कांवो] ६० भूपन भनत सिवराज तव किरि सम और को न किति |'का दो' । उ०—विन कादव जिमि कमल सुवाई ।—माघवा कहिवे को कोधियतु हैं ।—भूपण (शब्द॰) । ३ स्वीकार नल०, पृ० २०२।। करना। अगीकार करना । उ०—(क) जो पहिले मन माने कोदा--सज्ञा पुं०[सं० फन्द]एक मुल्म जिसमें प्याज की तरह गाठ न का । परसे रतन गाठि तव वाधे |-जापन(शब्द०)। पड़ती है। (a) तिनहि जति रन अाचे तु बाँधी । उठि सुन पितु अनु' विशेप---३सकी पत्तियां प्याज से कुछ चौड़ी होती हैं । यह तालो सासन का ध ।-नुलसी (शब्द॰) । ४ भार सहना । के किनारे होता है। वर्षा का जन पहने पर इस में पत्त अगेजना। सहना । उ०—विरह पीर को नैन ये से नहीं पल मॉघ । मीत माइकें । इन्हें रूप पीठि ६ वाघ -रतनहजार निकलते और सफेद रग के फूल (धतूरे के फूल के ऐसे) लगते (शब्द॰) । हैं जिनके दलो पर पांच छह खडी लाल घारिया होती हैं। इन काधर --सा पुं० [सं० कृष्ण प्रा० क] कान्ह । कृषए । धारियों के सिरो पर मवेचद्राकार पीले चिह्न होते हैं । इसकी उ० -कहि सदर भीतर जाइ जो देखो तो खोन नही कहू गाठ माडी देने के काम में आती है। इसे कंदली या कदली भी का घर को 1--सुदरीमवंस्व (शब्द०) । कहते हैं । इनका सस्कृत नाम भी कदली ही है। काँघा+सया पुं० [सं० स्कन्ध, प्रा० फ9,] दे॰ 'कधा' ।