पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३६३

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कतिपक्षी ६७६ कांस्पिरेसी कातपक्षी–सुज्ञा पुं० [३० कान्तिपक्षन्] मोर को ! काती---सज्ञा स्त्री० [सं० कान्ति] एक प्रकार का पटिया लोहा जिसमें कातपापाण-सज्ञा पु० [सं० कान्तपापाण] चुवक पत्थर।। मिट्टी मिली रहती है और जो रेलिंग तया काही दि बनाने अयस्कात । के काम में आती हैं। कातलक–सज्ञा पु० [सं० कान्तक] नंदी वृक्ष (को०] । काद ---सज्ञा पुं० [सं० स्क्न्घ , ७ काँव दे० 'कंध्रा' । उ०--- कातलौह- सी पुं० [स० कान्तलौह] कासार । काद न देइ मुसकरी करई । कुहु दुई भाँति कैसे निस्तरई ।-- कृतिसार - संज्ञा पुं० [सं० कान्तसार कात लोहा । दे० 'काति--१० । कवीर वी०, १० २०६ । । काता- सुज्ञा स्त्री॰ [ सं० कान्तिा ! १. प्रिया सुदरी स्त्री। २ कादव--संज्ञा पुं० [सं० कान्दव] चूल्हे या कड़ाही में भूनी, अथवा विवाहित स्त्री। भाय। पत्नी । ३ पृथ्वी (को०)। ४.। सेकी हुई चीज । प्रिय लता (को०)। ५ वडी इलायची [को०] । ३ एक कादवि--सज्ञा पुं॰ [सं० फान्दविफ], १. नॉनवाई । रोटीवाला । सुगवित द्रव्य (को॰) । २ हलवाई [को० ।। कातार–चा पुं० [सं० फन्तिार] १. भयानक स्यान । कांदिशीक-वि० [सं० कान्दिशीक] १. मागा हुअा। २. भयभीत विशेप-बीत ग्र यो मे पाँच प्रकार के कृातार लिखे हैं-चौर [को०)। कतार, व्याल काढार, अमानुप कतारे, निरुदक कातार और कांपिल-सा पुं० [सं० काम्पिल दे० 'कापिल्य’ किये०],।। अल्प मध्ये काढ़ारे। कापिल्य-सञ्ज्ञा पुं० [सं० झाम्पिल्य] एक प्राचीन प्रदेश । २. दुर्भद्य और गहन वने । घना जगले । ३. एक प्रकार की ईख । विशेष--यह आजकले फर्रुखाबाद जिले को कायमगंज तहसील केतारा (४. वाँसे । ५ छेद । दरार। ६. बुरा रास्ता । दुर्दम के अंतर्गत कपिल नामक 'परगना कहलाता है। राजधानी के रास्ता (को॰) । ७. लक्षण (को०) 15 कमल (को०)। स्थान पर कपिल नाम का एक छोटा सा कसवी रह कतारक-संज्ञा पुं० [सं० कन्तिारक] एक प्रकार की ईख (०)। गया है । कतासक्ति -- सुज्ञा स्त्री० [सं० कान्तासक्ति ] भक्ति का एक भेद कपिल'.-सज्ञा पुं० [तं० काम्पिल्ल] १. कापिय । २. एक प्रकार जिसमें भक्त ईश्वर को अपना पति मानकर पति-पत्नी-माव। | का पेड ! ३ एक प्रकार की सुगध को । से उसमें प्रेम और भक्ति करता है। कापिल्लुक----सज्ञा पुं० [सं० कम्पिल्लक दे० 'कापल्य' ।। काति -संज्ञा स्त्री० [सं० कान्ति] १ दीप्ति । प्रकाश । तेज । प्रभा । कावजिक-संज्ञा पुं० [सं० काम्बलिक] को जी [को॰] । २ सौंदर्य । शोभा। छवि । ३. चद्रमा की १६ कलाप्रो में । कावोज-वि० [सं० काम्बोज] १. कवोज देश की ! कवोज देश एक । ४. चद्रमा की एक स्त्री का नाम । ५. अयि छद का संवघी । २. कंवौज देश का निवासी । एक भेद जिसमे १३ लघु और २५ गुरु होते हैं। ६. कीवोजसंज्ञा पुं० १.. कोज देश का निवास व्यवित । १ पूनाग दुर्गा (को०)। | वृक्ष । ३ कोज देशीय घोडो की एक जाति को । कातिकर--वि० [६० कान्तिकर] सौंदर्य बढानेवाला। शोभा कासल–सच्चा पु० [अ० कौन्सल] वह मनुष्य जो किसी स्वाधीन | कर ]ि । • राज्य या देश के प्रतिनिधि रूप से दूसरे देश में रहता और कातिद'-सझा पुं० [हिं० कान्तिद] शुद्ध किया हुआ मक्खन (०] । अपने देश के स्वायौं, विशेषकर व्यापारिक स्वार्थों की रक्षा कातिद-वि० १ सौंदर्य प्रदान करनेवाला । ३. सौंदर्य बढ़ाने करता हो । वाणिज्यदूत । राजदूत । जैसे,—कलकत्ते मे रहने| वाला (को०)। वाले अमेरिकन कासल ने अमेरिकन माल पर, विशेषकर मोटरकातिदा-सच्चा वी० स० कान्तिदा] सोमराजी किये। गाडियो पर, अधिक महसूल लगाने के बारे में भारत सरकार कातिदायक'–सुज्ञा पुं० सु० कान्तिदायक सौंदर्य प्रदान करनेवाला। को लिखा है। । । _ सुदरता बढानेवाला ।। कासोलेट-- सूझा पु० [० कौंसलेट] दे० दुतावास' । कातिदायक-सुझा पु० कालीयक वृक्ष (को०] । कास्टिट्युएसी-सच्ची सी० [अ० कास्टिट्ठएसी] स 'निर्वाचक सुध' । कातिमुत-सी पुं० [सं० कान्तिभूत् चंद्रमा को०] । कास्टिट्यूशन-झिी पुं० [अ०] १. किसी देश या राज्य के शासन कातिमान् - वि० [सं० फातिमत् । कातियुक्त। चमकीला । सुदर। या सरकार का विधिविहित या व्यवस्थित रूप । संघटना । कातिसार--संज्ञा पुं० [सं० कातिसार] दे॰ 'कातसार' [को०] । ३. वह विधि विधान या सिद्धांत जो किसी राज्य, राष्ट्र, तिसुर--संज्ञा पुं० [सं० सुरकान्ति] १. देवताओं की छुठि । २. समाज या सस्या की सुघर्टना के लिये रचे भोर निश्चित किए सोना 1-अनेक० (शब्द॰) । गए हो ।, विधि विधान । व्यवस्था । कातिहर--वि०[स० कान्तिहर]१. काति को नष्ट करनेवाला । कुरूप कास्पिरेसो--सज्ञा स्त्री॰ [अ०] किसी बुरे उद्देश्य या दुरभिसंधि से | बनानेवाला [क] । नोगो का गुप्त रूप से मिलना जुलना या सांठ गाँठ। किमी कातिहीन---वि० [सं० कान्तिहीन] विना काति का ३ कुरूप । निष्प्रभ राज्य या सरकार के विरुद्ध गुप्त रूप से कोई भयकर काम ]ि । करने की तैयारी या प्रयोजन करना । पइयत्र । साजिश ।