पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३६१

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१७७ काँचो रह जाना । (ख) कहीं वह आ न जाय । (ग) देखो कहीं । विशेप- सन् १८८५ मे कई भारतीय प्रमुख जनों के सहयोग से वै ही न आ रहे हों, जिनका आसरा देख रहे हो। (इस ह्यूम ने इसकी स्थापना की । यागे चलकर इस संस्था ने मुहावरे में या तो भावरूप में क्रियाएँ अाती हैं अथवा स्वतंत्रता को अपना लक्ष्य रखा और महात्मा गांधी के नेतृत्व सदिग्ध भूत, सुभाव्य भविष्यतू आदि समविनासूचक क्रियाएँ। में सन् १९४७ में इस सृस्या ने देश को स्वत्र किया । प्रती हैं कही तो नहीं =(प्रश्न के रूप में अशिका और। ३. समेलन । ४. किसी संघटन या समुदाय के प्रतिनिधियो की अशा सूचित करने के लिये) जैसे,—कही बह रास्ता तो नहीं वार्षिक वैठक । ५. संयुक्त राष्ट्र अमेरिका को संसद् या पार्लमेट । भूल गया । (इस मुहावरे में प्रायः सामान्यभूत, सामान्य काग्रेसमैन-सच्ची पुं०[अ॰] वह जो काग्रेस का सदस्य हो । वह जो भविष्यत् और सामान्य वर्तमान क्रियाएँ आती हैं। काग्रेस के सिद्धांत या मंतव्य को माननेवाला हो । काग्रेस ४. बहुत अधिक । बहुत बढ़कर । जैसे,—यह चीज उससे कहीं सदस्य । काग्नस का अनुयायी ! कांग्रेस पयी । अच्छी है । कांग्रेसी-वि० [हिं० काप्ने स+ई(प्रत्य॰)] १. काग्रेस से संबंध कही -क्रि० वि० [हिं० कहना कथित ! कही हुई । उ०—ठव रखनेवाला । २. काग्रेस दल का सदस्य । इक उपमा मो मन भई । केही कहत, किधौं उपजी नई -- कांचन-सञ्ज्ञा पुं० [सं० कान] [वि॰ काचनीय]१. सोना । ३. नंद ग्र०, पृ० ३०८ ] कचनार। ३. चपक । चपा। ४. नागकेसर । ५. गूलर । कही-सा कोई[हि कहना वात । कयन । ६. मैतूरा । ७. चमक । ज्योति ! दीप्ति (को॰) । क @f- क्रि० वि० [हिं० कहू] दे० 'कहू। कांचन-वि० १ सोने का बना हुआ। २. सुनहरा [वै] । कहूं--प्रत्य० [हिं० कहे !दे०को' । उ०---बिरह में चित्त समाधि काचनकदर-सया पुं० [सं० काचनकृन्दर सोने की खान [को०] । | लाइहौ। तुरतहि तव मो कहू पाइहौ —नंद॰ ग्रे ०, काचनक-सा पुं० [सं० कुञ्चिनक] १. हुरताल । २ चपा । ३ पृ० ३०३ । | अन्न । अनाज (को०)। हुवा–संज्ञा पुं०[अ० कइवा] एक दवा जो घी, चीनी, मिर्च कांचनगिरि----सुच्चा पुं० [सं० काञ्चनगिरि] सुमेरु पर्वत ।। और सोंठ को आग पर पकाने से वनती है और जुकाम(सरी) | में दी जाती है। कांचनजंगा--सा पुं० [ काञ्चनशृङ्ग ] हिमालय की एक चोटी जो हुवा -- संज्ञा पुं॰ [संकोह] अर्जुन नामक वृक्ष । नेपाल और सिकिम के बीच में है ।। कहू ---क्रि० वि० [सं०कुह] किसी स्थान पर । कहीं। उ०—कहा काचनपुरुष-सुझा पुं० [सं० काञ्चनपुरुष एकादश कर्म में महाव्राह्मण कापपुर लई दृग करे परे वाल बेहाल । कुहु मुरली क पत पट कहूँ को दी जानेवाली मृति, जो सोने के पत्तर पर बनाई जाती मुकूट वनमाल –विहारी (शब्द॰) । है वै] । कुहू ---प्रत्य० [हिं०] ३० 'को' । उ०—तजि जाये सुकै कद काचनप्रभ-वि० [सं० काञ्चनप्रभ] सोने की तरह चमकनेवाला । नंदलाल ! हम सबन कहू" वह तीन काल ---प्रेमघन०भा० १, | सोने की प्रभावाला [को॰] । कांचनसघि--संज्ञा स्त्री० [सं० काञ्चनसन्धि] वह संधि जो दोनो कहैया –वि० [हिं० कहना] दे॰ 'कहवैया' । उ०—प्रिय सदेश पक्षों में समानता के आधार पर होती है किं०] । कहैया है यह द्विजवर कोई । नद० प्र०, पृ० २०२ । कचनार--सी पुं० [सं० काञ्चनार] कचनार । कलू-संज्ञा पुं० [अ० कह] दे॰ 'कहर'। काचनी—सूझा स्त्री॰ [सं० काञ्चनी] १. हल्दी। उ०—-पीता गौरी कार-सय्य पुं० [सं०] श्वेत कमल । सफेद कमल । कांचनी रजती पिडा नाम -अनेकार्थ, पृ० १०५। २. कह्व-सा पुं० [सं०] एक प्रकार का सारस । वर्गाला (को॰) । गोरोचन । कांक्षणीय-वि० [सं० फाक्षणीय दे० 'कानीय' । काचनीय-वि० [सं० काञ्चनीय] १. सोने का बना हुमा। २. सोने फानीय–वि० [सं० काङ्क्षनीय] इच्छा करने योग्य । चाहने लायक । की माभावाला [को०] । कक्षा-संज्ञा श्री० [सं० काङ्क्षा] [वि॰ कांक्षनीय, काक्षित, कांक्षो, कांचि-सचा स्त्री० [सं० फा]ि दे० 'कावी' (] । क्ष्यि इच्छा। अभिलाषा । चाह । काचिक-सा पुं० [सं० काञ्चिक ] कांजी (क्यो०)। झांक्षित-वि० [सं० फाइक्षित] चाहा हुमः। इन्ति । अभिलषितं । काची-सुवा स्त्री॰ [ मे० काञ्ची ]१. मेखला । क्षुद्रघटिका । झक्षी--वि० [सं० काक्षिन्] [ौ• काक्षिणी]चाहनेवाला । करधनी । उ०-नृप माणिक्य सुदेश, दक्षिण दिय जिय इच्छा रखनेवाला। भावतो । कटि तट सुपट सुवेश, कुल काची शुभ मडई । फक्षिर-सा स्त्री० [सं० काङ्क्षी] एक प्रकार की सुगधि मिट्टी । राम धर्म०, पृ॰ १५ । क्षोरु-सुथा पुं० [सं० १. सारस । ३. बगुला [को०] । यौ०-कोचीरुप । काचोगुणस्थान | काचीपद ।। प्रेस-सा पुं० [सं०] १. वह महासभा जिसमे भिन्न भिन्न स्थानों | २, गोटा । पट्टा । ३ गुजा । घु घची।४, हिदुमो की सात के प्रतिनिधि एकत्र होकर किसी सार्वजनिक या विद्या सवधी पुरियों में से एक पुरी जिसे अब कांजीवरम् कहते हैं । विषय पर विचार रखे हैं। २. भारत की राष्ट्रीय महासभा विशेष---यह दक्षिण में मास के पास है और एक प्रधान विद वेश्मद का ५।