पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३५७

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म्हहाहट ८७३ म्हनावति ! । । विशेष—यह चीन देश के सीह्वाटनी नामक राजा ने ईमामयीह के पूर्व तीसरी शताब्दी के अंत में फू-किन, क्वाँ-नु ग और क्वाँसी नामक भगोल जातियों के आक्रमण को रोकने के लिये चीन के उत्तर में वनवाई थी । यह दीवार १५०० मील लुबी, २०-२५ फुट ऊँची और इतनी ही चौड़ी है। इसमे सौ गज की दूरी पर बुर्ज वने हैं ! २ कठिन रोक जिसे किसी तरह पार न कर सकें । क्रि० प्र० -उठाना |--डालना। कहकहाहट-सज्ञा जी० [हिं॰ कहकही+ग्राह: (प्रत्य॰)] जोर की हँसी । अट्टहात ।। कङ्गलq--सज्ञा पुं० [फा० फहगिल] दे॰ कहगिल' । उ०—करि कहूगन व्रह्म को दी ।—प्राण, पृ० ७१ । कहगिलु-सुज्ञा स्त्री॰ [फा० काहघास+मिल= मिट्टी दीवार में लगाने में मिट्टी का गारा जो मिट्टी में घास फूस लाकर बनाया जाता है। कहत-सज्ञा पुं० [अ० कहत] दुमक्ष । अकाल । उ०—-इक तो कहत माँ सूर मिट्टी खिलकत जो है गा सेवे । तेह पर टिकस वैया है कि मैया जो है सो है !--भारतेंदु ०, भा० ३, पृ० ८६१ । क्रि० प्र०पडना । यौ॰—कहतलाल = दुमक्ष का समय। कहतजदा-वि० [अ० कहते +फः० जदह] अकाल fifडते । अकाल । स मारा हुआ । कहता--सज्ञा पुं० [हिं० सहनी, कहता हुआ] कहनेवाला पुरुप । उ०—(क) कहते को कौन रोक सकता है । (ख) कहता बावला, मुनता सुरेख ! कहन-सज्ञा स्त्री० [सं० कयन] १ कथन । उक्ति । २ वचन । वात । ३ कहावत । कहनूत । ४ कविता । शायरी । कहना'--क्रि० स० [सं० फेथन, प्रा० कहन] १ बोलना । उच्चारण करना । मुह में शब्द निकालना । शब्दों द्वारा अभिप्राय प्रकट करना। वर्णन करना । उ०--(क) विधि, हरि, हर कवि कोविद बानी । कहते साधु महिमा सकुचानी ।----तुलसी (शब्द॰) । मुहा०—कह उठना= कहने लाना। कहना । उ०—इस गजल ने वह लुत्फ दिखाया और ऐसा रग जमाया कि हमारे हबीब लवीव तक अहो हो कह उठते थे !- फिसाना, भा० १, १० है। कहते न आना = अकथ्य होना । कहते न बन पडना। उ०---काने जाइ उसास भरे दुख कहत न अावे --नैद० ग्र०, पृ० २०१ । कहना बदना= निश्चय करना । ठेहुना। जैसे,- यह वात पहले से ही बदी थी। फह बेदकर=(१) प्रतिज्ञा करके । दृढ़ संकल्प करके । जैसे,—तुम कह वदकर निकल जाते हो। (२) ललकारकर। खुले खजाने । दावे के। साथ । जैसे,--हम जो करते हैं, कह वदकर करते हैं, छिपकर नहीं। कह वैठनाएकाएक कह देना । कह जाना । उ०—ौर जो साहव कुछ कह वै ?-फ़िमाना भाग ३, पृ० ५। फहना सुनना= बातचीत करना। कहने को= (१) नाममात्र को। जैसे, वे वे वन कहने को वैद्य हैं । (२) भविष्य में स्मरण के लिये । जैसे,—यह बात कहने को रह जायगी । कहने सुनने को = दे० 'कहने को। कहने की वात = वह कयन जिसके अनुसार कोई कार्य न किया जाय। वह बात जो वास्तव में न हो । संयो॰ क्रि—उठना।—डालना ।—देना ।—रखना । २ प्रकट करना । खोलना । जाहिर करना । जैसे,—तुम्हारी सूरत कहे देती है कि तुम नशे में हो। उ०--मोहि करत कत बावरी, किए दुरावे दुरै न । कहे देत रंग रात के रेत निचुरत से नैन ।—विहारी (शब्द॰) । संयो० क्रि०-देना । ३ सूचना देना। खबर देना। जैसे,—वह किमी से कह सुनकर नहीं गया है । ४ नाम रखना । पुकारना । जैसे,—इस कीड़े को लोग क्या कहते हैं ? ५ समझाना। बुझाना । जैसे,— तुम जाग्रो, हम उनसे कह लेंगे । मुहा०--कहनी सुनना = (१) समझाना बुझान । म नाना । (२) दिनती या प्रार्थना करना । जैसे,——हम उनसे कह सुनकर तुम्हारा अपराध क्षमा करा देंगे । संयो॰ क्रि०--देना ।—लेना । ६ वहकाना । वातों में भुलाना । वनावटी बातें करना । मुहा०-कहने या सुनने में आना = किसी की वनावटी बातो पर विश्वास करके उसके अनुसार कार्य करना। जैसे,--चतुर लोग धूर्ती के कहने सुनने में नहीं आते । कहने पर जाना = किसी को वनावटी बातों पर विश्वास करना और उसके अनुसार कार्य करना। ७. अयुक्त वात वोलना । भला बुरा कहना । जैसे,---(क) एक । कहोगे, दस सुनोगे । (ख) हमें एक की देस कह लो । संयो॰ क्रि० • लेना। कहना--संज्ञा पुं॰ कथन । वात् । अाज्ञा 1 अनुरोध ! जैसे,--(क) उनका यह कहना है कि तुम पीछे जाना । (ख) वह किसी का कहना नहीं मानतः । क्रि० प्र०—करना = मानना) —टालना( = न मानन}}--- | मानना ।। कहनाउत(G)- सच्चा स्त्री० [हिं० कहनावत] दे॰ 'कहनावत' । कहनावत-सज्ञा स्त्री० [हिं० कहना + श्रावत (प्रत्य॰)] १. वात । कथन । २ कहावत । मल । अहानी ।। कहूनावति –सच्ची जी० [हिं० कहनाबत] १ बात । कथन । उ०--सुनड़ सखी राधा कहनावति । हम देख्यो सोई इन देखे ऐसेहि ताते कहि मन भावति ।-सूर (शब्द॰) । २ कहावत । मस ने। उ०—साँची मई कहनावति वा कवि ठाकुर कान सुनी हतो जोऊ । माया मिली नहिं राम मिले दुविधा में गये सजनी सुनु दोङ (–ठाकुर (शब्द०)।