पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३५५

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कस्तूरी ६७१ कसॉजी नाभि से कस्तूरी निकलती हैं। २ एक सुगंधित पदार्थ जो हैं तथा फूल का रग भी कुछ ललाई लिए होता है। कसॉजे का वीवर नामक जतु की नाभि से निकलता है। पौधा चकवेड के पौधे से बहुत कुछ मिलती जुलता है । भेद । कस्तूरा--सज्ञा पुं० [स० कस्तुरी] कस्तुरी मृग । केवल यही है कि इसके पत्ते नुकीले होते हैं और चकवं के गोल । इसकी फूली चोडी और वीज नुकीले और कुछ कस्तूरा--संज्ञा पुं० [देश०] १ जहाज के तनो की सुधि या जोड । २ वह सीप जिससे मोती निकलता है। ३. एक चिपटे होते हैं, पर चकवेई की पतली फली और गोल चिडिया जिसका रग भूरा पेट कुछ सफेदी लिए तथा पैर और होती है जिसके भीतर उर्द की तरह दाने होते हैं। यह चोच पीले होते हैं। कडवा, परम, कफ-वातनाशक और खमी दूर करनेवाला विशेप--यह पक्षी झडों में रहना पसंद करता है। यह पहाडी होता है। कोई कोई इसका साग भी खाते हैं ! लाल कसौज देशो में कश्मीर के अासाम तक पाया जाता हैं और अच्छा की पत्ती और वीज बवासीर की दवा से काम आते हैं । वोलता है ! पर्या- कोसनर्द। अरिमर्द । कासारि । कर्कश । कालकत । ४. एक अपधि जो पोर्ट ब्लेयर के पहाड़ो की चट्टानो से खुरचकर | काल । फनक । निकाली जाती है । कसजी-सच्ची झी० [हि• कजा] दे० 'कसौंजा'। विशेप--यह दवा बहुत वल कारक होती है। दूध के माथ दो कसौदा-सुज्ञा पुं॰ [स० कासमर्द, प्रा० फीसमद्द] दे० 'कसौंजा'। रत्ती भर खाई जाती है । लोग ऐसा मानते हैं कि यह अवाबील उ०-- कोई इरफा रेउरी कदिा !-—जायसी ग्रं॰, पृ॰ २४७ } चिडिया के मुह का फैन है। कसदो-सा वी० [हिं० कसौदा] दे॰ 'कसजा' ।। ५. लोमडी के आकार का एक प्रकार का जानवर जिसकी दुभ कसौटा -सृा पु० स० कपपट्ट, प्रा० फसवट्ट दे० 'कसौटी' । | लोमड़ी की दुम से लंबी और झारी होती है । । उ०—-जैसल कसोटा न भेल मलान । विनु हुत बहे भेल बाहर विशेप-कुछ लोगों का विश्वास है कि इसकी नाभि में से भी |वान 1--विद्यापति, पृ० ३०६ ।। कस्तुरी निकलती है, पर वह वात ठीक नहीं है । कसोटी-सज्ञा स्त्री० [सं० कपपट्टी, प्रा० फसवट्टी] १. एक प्रकार का सञ्चा क्षी० [सं०] कस्तुरी ! काल) पत्थर जिसपर रगड़कर सोने की परख की जाती है। कस्तूरिका कस्तूरिया'.--सच्चा स्त्री० [हिं० कस्तुरी] कस्तूरी मृग । शालिग्राम इसी पत्थर के होते हैं । कसौटी के खरल भी बनते हैं। उ०---कसिअ केसोटी चिन्हि हेम, प्रकृत परेखिअ कस्तूरिया--वि० १. कस्तुरीवाला ! कस्तुरीमिश्रित । २. कस्तूरी के सुपुरुप प्रेम --विद्यापति, पृ० ३८१ । । | रंग फा। मुश्की । कस्तुरी--सच्चा स्त्री० [सं०] एक सुगधित द्रव्य । क्रि० प्र०—पर कसना |-- चढ़ाना ।—रखना --लगना । विशेष--यह एक प्रकार के मृग से निकलता है जो हिमालय पर मुहा०- कसौटी पर कसना=(१) जाँचना । (२) खरा सिद्ध गिलगित से अासाम तक ६००० से १२००० फुट की ऊँचाई होना । उ०—निज विचारों की कसौटी पर कस चले हैं । तक के स्थान तथा तिव्वत और मध्य एशिया में साइवेरिया प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० ३७३ । तक अर्थात वृहत ठडे स्थानों में पाया जाता है । यह भृग बहुत २. परीक्षा । जाँच } परखें । जैसे,—विपत्ति ही वैये की कसौटी चंचल और छलाँग मारनेवाला होता है । डीन डौल में यह है। ३. जाँच या परीक्षा का अाधार । साधारण कुत के वैराबर होता है और रात को चरता कसौली - संज्ञा पुं॰ [देश॰] शिमले के पास ६००० फुट की ऊँचाई पर है। नर मुग की नाभि के पास एक गाँठ होती है, जिसमें भूरे पहाड़ में एक स्थान जहाँ कुत्त, स्यार अरदि के विर्य की दवा रग का चिकना सुगधित द्रव्य सचित रहता है। यह मृग की जाती है। जनवरी में जोड़ा खाता है और इसी समय इसकी नाभि में कस्टम कस्टम्स-संज्ञा पुं० [अ०] दे॰ 'कस्टम ड्यटी' । अधिक मात्रा से सुगधित द्रव्य मिलता है। शिकारी लोग इस कस्टम ड्यूटी--सूज्ञा स्त्री० [अं॰] वह कर या महसूल जो विदेश मृग का शिकार कस्तुरी के लिये करते हैं । शिकार लेने पर से आने जानेवाले माल पर लगता है। कर | महसूल । चुगी । इसकी नाभि काट ली जाती है, फिर शिकारी लोग इसमें परमट । रक्त अदि मिलाकर उसे सुखाते हैं । अच्छी से अच्छी कस्तूरी कस्टमहाउस--सच्या पुं० [अ॰] वह स्थान या मकान जहाँ विदेश में भी मिलावट पाई जाती है। कस्तूरी का नाफा भुर्गी क अड़े के सै अाने जानेवाले माल पर महसुल देना पड़ता है। परमट वरवर होता है । एक नाफे में लगभग अधिो छटक कस्तुरी | हाउस ।। निकलती है । कस्तुरी के समान सुगधित पदार्थ कई एक अन्य कस्तQसज्ञा पुं० [अ० करद] दृढ़ निश्चय । उ०----यह कुस्त कर जंतुओ की नाभियों से भी निकलता है । वैद्यक में तीन प्रकार | अाए यहाँ रन हुथ्यारन के मैटवी ----पद्माकर ग्र०, पृ० १४। की कस्तूरी मानी गई है, कपिल (सफेद), पिल और कृष्ण । कृस्तरी--संज्ञा स्त्री॰ [फा० कास] मिट्टी की चौड़े मुह का एक बर्तन जिसमें दूध पकाया या रखा जाता हैं। नेपाल की कस्तूरी कपिल, कश्मीर की पिगले और कामरूप कस्तीर--संज्ञा पुं० [सं०] टान (को॰] । (सिकिम, भुटान आदि) की कृष्ण होती है। कस्तूरी स्वाद कस्तूर--सबा पुं० [सं० इस्तूरी] १. झस्तुरी मृ । वद्द मुग जिसकी में कवी सौर बहुत गरम होती है। यह वाव पिचर, शीव,