पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३५३

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कॅसाना ६६६ कसौदा ' कने के योग से खट्टी चीज का विगड जाना । जैसे,—इस कृसिप–संज्ञा पुं० [सं० हिरण्यकशिपु] दे० 'हिरण्यकशिपु । उ०— बरतन में दही कसा गया है। कसिया कहै पहलाद को मार डालें 1-कवीर सा०, विशेप--जर्व बट्टी चीज काँसे के बरतन में देर तक रखी जाती पृ० १० ।। है तब उत्तका स्वाद बिगडकर कसैला हो जाता है । ऐसी कसिपु-सच्चा पुं० [सं०] १. भोजन । २. पका चावल। भात [को०] । | बिगड़ी हुई चीज के खाने से वमन होता या जी मचलाती है। कुसिया-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] भूरे रंग की एक चिडिया जो राजपूताने २ स्वाद में कसला लगना । जैसे,--- कच्चा अमरूद कसाता है । और पजाव को छोड सारे भारतवर्ष में पाई जाती है। कसुनारे-क्रि० सं० [हिं० कसना की प्रे० रूप ] दे॰ 'कसवाना' । विशेष—यह पेडों की डालियो में बहुत ऊँचाई पर घोसला बनाती कसाना -क्रि०अ० [ हि० कैसना या कपापित ] कप्टयुक्त हैं और पीले रंग के अंडे देती है। होना। पीड़ित होना। उ०—-अपडिया प्रेम कसाइयां, लोग कसियाना-क्रि० अ० [हिं० कस = फसाव कसाब से युक्त होना । जाँणे दुखडियो । -कबीर ग्र० पृ० ६ ।। ताँबे या पीतल के बरतन में रहने के कारण कसैला कसाफत—सच्चा स्त्री० [अ० कलाफत ] १. मैलापन ! गंदगी । होना 1 कसाना । २. गाढापन । २. मोटाई । स्थूलता । कसी संज्ञा स्त्री० [सं० कशी = रस्मी] १. पृथ्वी नापने की एक रस्सी कसाब-संज्ञा पुं० [ अ० कसावे ] दे॰ 'कत्ताई' । उ०-दरिया जो दो कदम यी ४६३ इंच की होती है । छुरी कसाव की, पारस परसे आप -सतवाणी, १० कसीसच्चा सी० [सं० कषण = खरोचना, खोदना हल की कुसी। १२६ । तागूल 1 फाले । कसार' संज्ञा पुं० [सं० कृसर] चीनी मिला हुआ भुना ग्राटा तथा कसी.-सच्चा सौ० [सं० शुक] एक पौधा जिसे संस्कृत में गवेधुक सूजी । पंजीरी । कसार -सङ्ग्य पु० [सकासार ३० कासार । उ ०–निरविं | और कुशुक कहते हैं। मलिन मुख नलिन कह, फूले कमल कसार ।-नद००,१० विशेष---वैदिक काल में यज्ञो मे इसके चरु का प्रयोग होता था। १३४।। उस समय इसकी खेती भी होती थी । यद्यपि अाजकल' मध्ये कसालत--संज्ञा स्त्री० [अ० ]१. आलस्य । शैथिल्य । २. थकावट । प्रदेश, सिक्किम, आसाम और बरमा की जगली जातियो के ३ काहिली। अतिरिक्त इसकी खेती कोई नहीं करता, फिर भी यह समस्त केसाजा'चा पु० [ स० कष= पीड़ा, दु ख अथवा अ० सालत ] भारत, चीन, जापान, बरमा, मलाया अादि देशो में वन्य १ कष्ट । तकलीफ। उ०—कह ठाकुर कासो कहा कहिये हमें अवस्था में मिलती है। इसकी कई जातियां हैं, पर रंग के प्रीति करे के काले परे ।-ठाकुर (शब्द॰) । विचार से इसके प्राय दो भेद होते हैं। एक सफेद रंगे को, क्रि० प्र० उठाना ।-फरना ।—र्वीचना ।-हेलना --- दुसरी मटमैली या स्याही लिए हुए होती है। यह वर्षा ऋतु में पड़ना ।-सहना ।। उगती है । इसकी जड़ में दो तीन बार डालियां निकलती २ कठिन परिश्रम । श्रम ! मेहनत उ०-करत सुतप बीते बहु हैं। इसके फूल गोल, लवोतरे और एक ओर नुकीले काला । पुत्र होन हित कियो कसाला 1-रघुराज (शब्द॰) । होते हैं। इनके बीच सुगमता से छेद हो सकता है । छिलका केसाला-सा पु० [ हि० फसाव ] बटाई जिसमें सोनार गहना साफ, इनका कड़ा और चिकना होता है । छिलके के भीतर करते हैं । सफेद रंग की गिरी होती है जिसके अाटे को रोटी गरीब लगि कसाव'----सुज्ञा पुं० [सं० कषाय] कसैलापन । जैसे,--कढ़ी में कसाव खाते हैं । इसे भूनकर सत्त, भी बनाते हैं । छिलका उतर जाने आ गया है । पर इसकी गिरा के टुकड़ो को चावल के साथ मिलाकर माते क्रि० प्र०- मना ।—पड़ना ।—होना । की तरह उबालकर खाते हैं। यह खाने में स्वादिष्ट और साव--संज्ञा पुं० [हिं० कसना 1 कसने झा भाव । खिंचाव । स्वास्थ्यवर्धक होती है। जापान अादि में इसके मावे से एक तनाव । प्रकार का मद्य भी बनाया जाता है। इसका वीज ओपध के कसावट-सा स्त्री० [हिं० कसना ] १. कसने का,भाव । तनाव । काम अतिा है । इसके दानो को गूंथकर माला बनाई जाती है। खिचावट । उ०—इसकी कसावट से कितनी ही मेमे दम घुट नेपाल के पास इसके बीज को गूंथकर टोरों की झावर घुटकर मर गई । प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ॰ २६२ । ३. अच्छी बनाते हैं। गठन, विशेषत शरीर की । पर्या०—कोहिल्ला । केस्सी । सेई । कसविड़ा-मेवा पुं० [हिं० कसाई | काई ।। केसीदासज्ञा पुं॰ [ फा कशीवडू 1 ३० ‘कुशीवा' । फुसावर--सुथा पुं० [हिं० कोसा कांसे की थाली की तरह कसीदा-सा पुं० [अ० कशी उर्दू या फारसी भाषा की सि का बाजा जिसे लकड़ी से वजाते हैं । काँसे को घटा । उ०— प्रकार की कविता, जिसमें प्राय किसी की स्तुति या निंदा की उनका केसविर रहा इनाउन, थिर चमारिन डी छनछिन। जाती है । इस कविता में १७ पक्ति से कम न हो, अधिक का -स्पिा , १० । कोई नियम वहीं हैं।