पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३५२

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कसमिया कसाना कसमिया—क्रि० वि० [हिं० कसम] कसम खाकर । शपथपूर्वक । कसरहट्टा-• सपा पुं० [हिं० फसेरा + हट्ट या हाट] कसैरो का बाजार कसमीर —संज्ञा स्त्री० [सं० कश्मीर] केशर । उ०—गोर शरीर जहाँ वरतने बनते और बिकते हैं। अधीर से लोचन मस्तक में कसमीर लगाएँ ।—पोद्दार अभि०, कसरि --सा धी० [अ० कसर] 'दे० 'कसर' । उ०—करनी करत पृ० ४६० ।। कसरि होय आई, वहीं कानघर वाजु वैधाई--कवीर सा०, कसर'-.-सी खौ• [अ० ]१ कमी । न्यूनता । अटि । उ०—-कसर न १० ६०७ ।। मुझमें कुछ रही असर ने अब तक तोहि । अाइ भावते दीजिए कसली--ना झीसं०५/कुपे या कप = खोदना+हिं० ली(प्रत्य॰)] वेगि सुदरमन मोहि —रसनिधि (शब्द०)। | छोटा फावडा जिसकी घार पतली होती है। क्रि० प्र०----माना ।—करना ।—पड़ना ।—रखना।-रहना । कसवटी--सम भी० [सं० फपपट्टिका, प्र० कसपट्टीदे० 'कसौटी'। --होना। | कसवाई-सद्मा औ० [हिं० फसवाना] १ क्सवाने की क्रिया ! २. महा०--कसर करना, छोड़ना, रखना = गुटि करना । कुछ वाकी कसने की मजदूरी । छोडना । जैसे,—उन्होंने मेरी बुराई करने में कोई कसर न केसवाना-क्रि० स० [हिं० फतना का प्रे० रुप] कसने में प्रवत्त की । कसर निकलना = कमी पूरी होना । फसर निकालना = | परना। कसने फा काम करना । जैसे बड़ा सवा लाग्न । कमी पूरी करना । कसवार--संज्ञा पुं० [सं० कोशकार मया देशा०] एक प्रकार की २. द्वैप । वैर। अकम । मनमुटाव । जैसे,—-वे हमसे मन में कुछ | ई जो डेढ़ इंच मोटी होती है और जिसका छिलका बादामी | कमर रखते हैं। | और कडा होता है । क्रि० प्र०—रखना। विशेप----इमके भोवर के गूदे में रस अधिक और रेशे कम होते महा०—फसर निकालना या फढ़िना= बदला लेना। (दो हैं । यह अधिकतर चूमने के काम में आती हैं। इसे कुमियार आदमियो के बीच) फसर पड़ना=(दो आदमियों के बीच) भी कहते हैं । मनमोटाव होना । कसहँड--संज्ञा पुं० [सं० फास्यभाउ प्रयदा हि कसा+है] ३. टोटा । घाटा । हानि । जैसे,--इस माल के बेचने में हमे दो टूटे फूटे कसे के वरतनों के टकडे । | सौ की कसर पड़ती है। कसहँडा---सा पुं० [सं० कास्यभाण्ड] दे० 'कन डी' । क्रि० प्र०-पडना । —होना । कसहँडी-सा स्त्री० [सं० हरियभण्ड अथवा हि० फाँसा + हो] मुहा०--फसर खाना या सहना= हानि उठाना । घाटा सहना। | काँसे या पोतल का एक बरतन जिनका मुह चौडा होता है । कप्तर देना या भरना= घाटा पूरा करना । विशेप--यह पाना पकाने या पानी रखने के काम में आता है। ४ नुक्ल । दपि । विकार । जैसे,—उनके पेट में कुछ कसर है। कसा इन--सा बी० [हिं० फसाई फी स्यो] कसाई की स्त्री । क्रि० प्र०—करना ।—होना । ५ किसी वस्तु के सूखने या उसमे से कूडा करकट निकलने से कसाइन-- वि० सी० क्रूरतावाली । निठुर । उ०—-नदकुमारहि देख | जो कमी हो । जैसे,—१० सेर गेहूं में से १ सेर तो कसर गई । दुखी छतिया कसको न के साइन तेरी ।—पद्माकर (शब्द॰) । क्रि० प्र०—जाना। कसाई-सज्ञा पुं० [अ० फल्साव [स्त्री० फसादन] १ वधिक । कसर--सा पुं० [देश॰] कुसुम या बरें का पौधा । घातक ! २ गोधातृक । बुचड । केसरकोर-सज्ञा स्त्री० [हिं० कसर+कोर] दे० 'कोरकसर' । उ० मुहा०—-कसाई के खूटे बँधना= निष्ठुर के पाले पड़ना । कसाई यद्यपि कसरकोर किसी में नही है ।--प्रेमघन॰, भा॰ २, फा फाठ = क्रूरता । कुत्सागुणं निर्दयता। उ०—कई बार पृ० २१३ । उसने निश्चय किया कि अपने आप को कमाई के इस कार्ड कसरत'—संज्ञा स्त्री० [अ० कसरत [वि० कसरती] १ शरीर को पुष्ट से हटाकर ससार के भंवर में डाल दे । अभिशप्त, पु० ६५ । और बलवान बनाने के लिये दस, वैठक अादि परिश्रम का यौ॰—फसाईबाड़ा। फा कम । व्यायाम । मेहनत । कसाई–वि० निर्दय । बेरहम । निष्ठुर । क्रि० प्र०—करना । कसाईसच्चा स्त्री० [हिं० फसाना+माई (प्रत्य०)] दे० 'कसवाई' । कसूरत-सी स्त्री० [अ०] अधिकता । वहुतायत । ज्यादती । यौ॰—फसरतराय = वमत । कसाईखाना–सज्ञा पुं० [हिं० फसना = फा० सनहू ] वह स्थान कसरती-[अ० कसरत + हिं० ई (प्रत्य०)] १ कसरत करनेवाला । जहाँ पशुयों का वध किया जाता है। जानवरों के काटने जैसे--कसरती जवान। २ कसरत से पुष्ट और बलवान् का स्थान ।। बनाया हुआ । जैसे--कसरती वदन। कसकस-क्रि० वि० [हिं० कसना] अच्छी तरह कसकर । ठसाठस । केसरवा-संज्ञा पुं॰ [देश॰]सालपान नाम का क्षुप। वि० दे०सालपान'। कसाकसी--सज्ञा स्त्री० [हिं० कसना] मनमुटाव । वर । विरोध । साकसा-राधा आ [हि° कसना] मनमुटाव । १ कसरवानी-सज्ञा पुं० [सं० फास्यवणफ, हि० केसरवानी] वनियो की तनातनी । । एक जाति । कसाना..--क्रि० अ० [हिं० फांसी पा फसाद] १ कसैला हो जाना ।