पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३५१

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समाकसमों तृतकार ---कवीर (शब्द०)। ५. परीक्षा । परख । जांच। उतारने को वे हमारे यहाँ भी होते गए थे। फसम देना, उ०—(क) या में कमनी भक्तन केरी । लेहु न नाथ अरज यह दिलना, रवाना--किसी को शपथ द्वारा वाध्य करना । मेरी–विश्राम (शब्द॰) । (क) साह सिकंदर कसनी लीन्हा जैसे-हमारे सिर की कसम, तुम हमारे यहाँ आज आयो । वरत अगिन मे डारी । मस्ता हायी अनि झुकाए कठिन (इन उदाहरण में कसम दी गई है।) कसम लेना = फसम कला भइ भारी ।-कवीर (शब्द॰) । खिलाना । शपथ उठाने के उिये वाध्य करना । प्रतिज्ञा क्रि० प्र०-लेना —देना । करना । जैसे,—तुम अपने सिर की फसम खाम्रो कि वहाँ न कसनी- सच्चा बी० [सं० कर्षण] एक प्रकार की हुयी जिससे जायेंगे । (इस उदाहरण में कसम दी गई है।) किसी बात कसेरे बर्तन का गला बनाते हैं । हथौड़ी। को कसम खाना-(१) किसी बात के करने की प्रतिज्ञा कसनी- सच्चा लौ० सृ० कसाना ] कसाव का पुट । कसैली वस्तु करना । (२) किसी बात के न करने की प्रतिज्ञा करना । में डुवाने की क्रिया। जैसे,—-मैंने अाज से वह जाने की तो कसम खाई है । कसम के सपत-सी पु० दिश०] १. काले रंग की कूट। काला फाफर । तोड़ना = शपय पाकर किसी कार्य को पूरा न करना। प्रतिज्ञा २ कूटू का पौधा । भंग करना। कसम खाने को= नाममात्र को । जैसे,—-(क) केसव सझा पु० [अ० कस] १ परिश्रम । मेहनत । पेशा : हमारे पास कसम खाने को एक पैसा नहीं है । (क) कसम उ०—जाति मी ओछी हरम भी अोछा अोछा कसव खाने को तुम भी पुस्तक हाथ में ले लो। फेसन खाने ३ हमारा ।-रेवानी, पृ० ७२ । लिये == दे० 'कसम खाने को' । उ०—तो कसम खाने के लिये क्रि० प्र०-उठाना । बेशक एक जगह है ।—प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० ४३६ । २ छिनाला । व्यभिचार। उ०बेहुर कुमार अवस्था आई। यो०--कसमाकसमी = परस्पर प्रतिज्ञा । कसब करन लाग्यों हरखाई रघुनाथ (शब्द॰) । कसमर---सज्ञा पुं० [सं० कश्मल दे० 'कमल'। उ०—नमी क्रि० प्र०—करना ।---कराना |-- फमोना ।---कमवाना। -कमवाना। रिपि निमी जिन्हि भखेव र कसे काम कसमर दुरि भगेव ।कसवल- सच्चा पुं० [हिं० कसे झवल ] १. शक्ति । सामर्थ्य । बल । सं० दरिया, पृ० ८६ । जोर । ताकत । २. साहस 1 हिम्मत । कममस'--वि० [हिं० कम + मस (अनुध्व॰)] कसा हुअए । कठोर । कसवा-सुवा पु० [अ० फस्बहू] [वि० कसबाती] वडा गाँव । उ०—खीचती उदहुनी वह, बरबस चोली से उभर उभर साधारण गाँव से वडी और शहर से छोटी बस्ती । कसमस खिचत्रे संग युग रसभरे कलश ।--ग्राम्या, पृ० १८ । कैसवाती–वि० [अ० फसवह] [वि० सी० फसवातिन] १ फसवे का। कसमस सज्ञा पुं॰ स्त्री० दे० 'कसमसाहट' । । जो कसर्वे मे हो। जैसे-कस्वाती मदरसी । २ फसवे का कृसमसक –क्रि० वि० [हिं० कसमसाना कसमसाते हुए । उ०—| रहनेवाली। मुजन सो ४ ज बँधे अग प्रति अग सधै कसमसक कुम्हिलात कसविन-सज्ञा सी० [ अ० कुसव हिं० इन (प्रत्य॰)] दे॰ सेज कुसुमन कली ।-भारतेंदु ग्र०, मा० २, पृ० ४७२। 'कसवी' । कसमसना -मि० अ० [हिं० फसमसीना] ३० 'कसमसाना' । कसबी-- सच्चा बी० [अ० कसब हिं- ई (प्रत्य॰)] १. वेश्या । उ०—भए ऋद्व युद्ध विरुद्ध रघुपति त्रोण शायक कसमसे । रढी । पतुरिया 1१ . व्यभिचारिणी स्त्री । छिनान औरत । —तुलसी (शब्द०) । यौ०- कसवीवाना ।। कसमसाना--क्रि० अ० [अनु०] १ एक ही स्थान पर वहुत सी कसवीखाना--सच्ची पु० [ हि० कसबी +फा० खान (प्रत्य॰)] वस्तु या व्यक्तियों का एक दूसरे से रगड खाते हुए हिलना वेश्यालय।। डोलना । खलबलाना। कुलबुलाना । जैसे,—भीड के मारे लोग कसम-सच्चा जी०अ० कसम] शपथ । सौगधे । उ०—चल्लाहू मेरे कसमसा रहे हैं। उ०—-यहि के बीच निसाचर अनी । सिर की कसम जो न पी जाम्रो ।-भारतेंदु ग्र०, भाग १ कसमसाति अाई अति घनी —तुलसी (शब्द॰) । २ उफता१० ५४५। कर हिनना बोलना । ऊब ऊबकर इधर से उधर होना । क्रि० प्र०—उठाना ।—-खोना !-खिलाना। जैसे,—-ये बडी देर से यहाँ बैठे हैं, इसी से अब चलने के लिये कसमसा रहे हैं । ३ विचलित होना । धृवराना। बेचैन होना। महा० --- कसम उतारना * (१) शपय का प्रभाव दूर करना । ४, गिा पीछा करना। हिचकना । दाई या दिनाई हुई शपथ के अनुसार न चलने पर उसके दोप का परिहार करना । कसमसाहट-सा खौ० [हिं० कसमसाना+हिट (प्रत्ये)] १. विशेप-वैन में किसी लड़के पर जव दुसरा लडको शपय या कुलबुलाहट । जुविश । डोलाव । हिलाव । २ बेचैनी । कसम रख देता है तब वह कुछ वाक्य कहता है जिससे यह व्याकुलता । घबराहट । समझता है कि शपथ फार प्रेमाव दूर हो जायेगा। कसमसी-सच्चा स्त्री० [हिं० फसमस+ई (प्रत्य॰)] दे० 'कसमसाहट' । (२) किसी काम को नाममात्र के लिये करना । जैसे,—सम केसमाकसमी-सच्चा श्री० [हिं० फसम दोनों पक्षों का परस्पर २-४३ कसम खाना ।