पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३४९

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कष्टकल्पना कसकनि कृष्टकल्पना- सुज्ञा सौ० [सं०] वहूत वीचच की और कठिनता से , गर्दन पर इस प्रकार चतता है कि दोनों की कधिं मिल जाती ठीक घटनेवाली युक्ति। विचारों का घुमाव फिराद । हैं । फिर वह दूसरे हाथ से विपक्षी का आगे बढा हुआ पैर कृप्टकारक, वि० [सं०] दु खदायी 1 तकलीफदेह [को॰] । अौर (उसी अोर का) हाथ खीचकर गर्दन की ओर ले जाता कष्टकारक- संज्ञा पुं॰ से सार (को॰) । हैं और झा देकर चित करता है । कप्टमागिनेय-संज्ञा पुं० [सं०] पत्नी की बहन का लडका (को०] । ३ रोक । अवरोध । कष्टमातुल-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] सौतेली माँ का भाई [को॰] । मुहा०-- कस मे कर रखना =रोक रखना । दवाना। उ०—परकष्टमोचन-वि० [सं०] कृप्ट से उबारनेवाला । ढिय दीप पुराण सुनि हेसि मुलको सुखदानि । कस करि राखी कष्टलम्य--वि० [सं०] कष्ट से प्राप्त । कठिनाई से प्राप्त होनेवाला । । मिश्रहू मुख अाई मुसवे नि - विहारी (शब्द॰) । कष्टसाध्य–वि० [सं०] जिसका साधन या करना कठिन हो । मुश्किन केस-- सुब्बा पुं० [सं० एघीय, हि० फसाव] १ 'कसाव' का सक्षिप्त से होनेवाला । जैसे,—कष्टसाध्य कार्य ।। रूप । २ निकाला हुआ सकें। ३ सार । तत्व । कष्टस्यान--संज्ञा पुं० [सं०] अरुचिकर स्थान [को०] । कस""--क्रि० वि० १. कैसे । क्योकर। २. वयों। उ०—सो काशी कष्टाजित--वि० [सं०]कप्ट से कमाया हुआ । अत्यत परिश्रम से प्राप्त सैइये कस न }--तुलसी (शब्द॰) । | किया हुआ (को॰) । कसई-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं॰] दे॰ 'कसी' या 'केसई'। कष्टार्तव-सा पुं० [स०] स्त्री को कष्ट से रजोधर्म का होना कि०] । कसऊटी---संज्ञा स्त्री० [हिं० कसौटी] दे॰ 'कसौटी' । उ०——तव की कष्टार्य---सज्ञा पुं० [सं०] खींचतान कर लगाया हुअा अर्थ [को॰] । बात रहित भई, अव कसटी अदल चलाई ।--कवीर सा०, कष्टि-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ परीक्षा। २ कष्ट । ३ अाधात [को०] । पृ० ६२० ।। कप्टित-वि० [सं०] [स्त्री० कष्टता] दुखित । दुबी । उ०—मैं कसक-सज्ञा चौ० [न० फष = अाघात, चोट}१. वह पीड़ा जो किसी ऐसी हू' न निज टू खे से कष्टिता शोकमग्ना –प्रिय, चोट के कारण उसके अच्छे हो जाने पर भी रह रहकर उठे । पृ० २५९. ! मीठा मीठा दर्द। साल । टीस । उ०—–कसक वनी तब हो रहे कप्टी-वि० बी० [सं० कप्ट] १. प्रसववेदना से पीडित (स्त्री) । २. वैघत न ऊपर वोट । दृग मनियारन को लगी जव ते हिय मे जिमे कष्ट हो। दुःखी । पीडित । दरशनारत दास । चोट ।—रसनिधि (शब्द०)। त्रसित माया पाच त्राहि त्राहि दास कष्टी --तुलसी (शब्द०)। क्रि० प्र० –आना । होना । केस--सच्चा पु० [सं० कष] १. परीक्षा 1 के तौटी । जाँच । उ०—जो २ दद्दत दिन का मन में हुअा द्वेष । पुरानी वैर । मन लागै रामचरन अस । देह, गेह, सुत, वित, कलत्र महें म्हा०--कसक निकालना या फाढना = पुराने वैर का मगन होत विनु जतन किए जस । हुद-हत, गत मान, ज्ञान वेदला लेना । रत, विपय-विरत खटाइ नानी कस -तुलसी ग्र०,१०५६१। ३ हौसला । अरमान । अभिलाषा । क्रि० प्र०--पर खींचना या रखना। महा०-- कसक मिटाना या निकालना = हौसला पूरी करना। २ तलवार की लचक जिससे उसकी उत्तमता की परख । ४. हमदर्दी । सहानुभूति । परपीडा का दु ख । उ०--तिन सौं होती है। चाहत दादि ते मन पशु कौन हिसाव । छुरी चलावत हैं गरे जे कस-सज्ञा स्त्री० [हिं० फसना] १. वह रस्सी भिसे कोई वस्तु | वेकसक कसाव ---रसनिधि (शब्द०) । कसकर बॉबी जाय, जैसे,—गाड़ी की कस । भोट या पुग्वट | " विशेष—इस अयं में यह संवर्धकारक के साय आता है। फी कुस । २ बघ । बद । उ०—खेल कि धौं सतभाव लाडिले कसकन-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० कसकना कसक । टीस । पीडा । उ०-- कंचुकि के कस खोली 1-धनानद, पृ० ५६६ । कुछ कसकन और कराह लिए । कुछ दर्द लिए कुछ दाह लिए । कस--संवा पुं० [हिं० फसना] १ दल ! जोर । उ०—रहि न-सक्यो हिल्लोल , पृ० १७ ।। कस करि यो दस करि लीनी मार। भेद दुसार कियो हियो कसकना-क्रि० अ० [हिं० फसक] ददं करना। सालना 1 टीसना । तन दुति भेदी सार ।—बिहारी (शब्द॰) । उ०---(क) कमठ कटिन पीठ घट्टा परो मदर को ग्रयो सोई यौ--कसवले । काम पे करेजो कसकते है ।—तुलसी (ब्द॰) । (ख) काहे २ दवाव । वश । काबू । इख्तियार। जैसे,--(क) वह आदमी को कलह नाघ्यो, दारुण दांवर वाँध्यो, कठिन लकुट ले स्यो हमारे कस का नहीं है। (ख) यह वात हमारे कस की होती मेरो भैया। नही कसक मन निरखि कोमल तन तनिक दधि तव तो ? के राज मली री तु मैया |--सूर (शब्द॰) (ग) नासा मोरि मुहा०---कत का वश का। अधीन । जिसपर अपना इनियार हो । फल मे फरना यी रखना =वन में रखुन । ‘नचाइ ग करीव को को सौंह। कोटे ल कस कत हिए डी अधीन रखना । कस की गोदी = कुश्ती का पेंच । कटीली भौंह !-—बिहारि (शब्द॰) । (घ) नंदकुमारहि देखि विशेप--जब विपक्षी पेट मे घुस अाता है, तत्र खिलाड़ी दुखी छतिया कसकी न कसाइन तेरी !-पद्माकर (शब्द०)। अपना एक हाथ उसकी बगल के नीचे से ले जाकर उसकी कसकानि--सा क्षी० [हिं० कसकना] ३० 'कसक' । ३०