पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३४८

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कष्टकर ' कश्मल'- सच्चा पुं० [सं०] १ मोह । मूच्र्छा । वेहोशी । २ पाप । कपट्ट -सा पुं० [सं० सप्ट] दे॰ 'कप्ट' । उ०——जग जतु उनम्म मेघ । ३ अवरदारी । अनत कपट्टय महा दुपट्टय ह्वाल हुआ ।—राम० धर्म, कुश्मल-वि० [सं०] [० कश्मला] पापयुक्त । मैला । गंदा । पृ० ३०० ।। कश्मीर-सज्ञा पुं॰ [सं०] पजावे के उत्तर मे हिमालय से घिरा हुम्रा पपट्टिका-सज्ञा स्त्री० [सं०] कसौटी (को॰] । एक पहाडी प्रदेश जो प्राकृतिक सौंदर्य सौर उर्वरता के लिये कपा-संज्ञा पुं० [सं०]दे० 'कशा' । संसार में प्रसिद्ध हैं । कपाइए—आज्ञा स्त्री० [सं० कृपाय] दे० 'कपाय' । उ०—जाके रचक विशेष—यहाँ अगूर, सेव, नाशपाती, अनार, वादाम आदि फल सुनत सद, कर्म कपाइ नसाइ । —नद० ग्र २, पृ॰ २२३। वहुतायत से होते हैं। यह बहुत से झीलें हैं जिनमें डेल कृपाकु- सच्चा पुं० [सं०] १ अग्नि । २ सूर्य (०] । प्रसिद्ध है। यहाँ के निवासी भी बहुत भोले और सुदर होते कषय-वि० [सं०] १ कसैला । वाकठ। हैं। केसर इसी देश में होता है। यहाँ के शाल, दुशाले और विशेप---यह छह रसों में है। कोइयाँ बहुत काल से प्रसिद्ध हैं। प्राचीन काल में यह सस्कृत २ सुगधित । खुशबूदार । ३ रंगा हुआ । गेरू के रंग का । विद्यापीठ था। झेलम कश्मीर से होकर ही पजाब की अोर वही गरिक । है। ऐसा प्रसिद्ध है कि यहां पहने जल ही जल था, कश्यप यौ०-- पायर्वस्त्र । ऋपि ने बारामूला के मार्ग से सारा जल झेलम में निकाल ५ मधुर स्वरवाला (को०)। ६. अनुपयुक्त । अनुचित (को०)। दिया और यह अनूठा प्रदेश निकल आया। इसकी राजधानी ७ गदा (को०)। श्रीनगर है जो समतल भूमि पर वसा हुआ है। कृपाय...-सज्ञा पु० [सं०] १. कसैली वस्तु । २. गोद । वृक्ष को कश्मीरज-सज्ञा पु० [सं०] केसर ! नियसि । ३ क्वाथ । गाढ़ा रस । ४ सोनापाठा का पेड़ । कश्मीरीवि० [हिं० कश्मीर+ई (प्रत्य॰)] कश्मीर का । कश्मीर श्योनाक वृक्ष । ५ क्रोध लोभादि विचार (जैन), जैसेदेश में उत्पन्न ।। कपाय दोष । ६ कलियुग । ७ अगरागलेपन (को०) ! ६ कश्मीरी-सज्ञा स्त्री० १ कश्मीर देश की भाप । २ एक प्रकार ११. उत्तेजना | भावावेश (को०) । १२. मदता । मूर्खता(को०)। की चटनी । १३. सांसारिक पदार्थों के प्रति अनुरक्ति (को॰) । विशेप----इसके बनाने की विधियाँ हैं—अदरक को छीनकर युल (को०)। ६. गंदगी (को०) । १०. विनाश । ध्वस (को०)। छोटे छोटे टुकड़े कर लेते हैं । तदनंतर शक्कर, मिर्च, शीतल- कपायित–वि० [सं०] १ गेरू के रग की । २. प्रभावित (को॰) । चीनी, केसर, इलायची, जावित्री, सौंफ और जीरा अादि मिला कृपायी-[सं० कपापिन्] १ जिस से गोद जैसा पदार्थ निकले । २. देते हैं । फिर अदाज से नमक और सिरका डालकर रख कसैला । ३. गेरुए रंग का। ४ भौतिकतावादी । "दुनिया देते हैं । । । । दार [२] । काश्मोरी–सज्ञा पुं० [हिं० कश्मीर [स्त्री० कश्मीरिन] १ कश्मीर कपायी—सधा पुं० खजूर, शाल अादि वृक्ष को०)। देश का निवासी । २ कश्मीर देश का घोडा । कृषि–वि० [सं०] हानिकारक । नुकसानदेह [को०] । , कश्य–सच्चा स्त्री० [सं०]१ शराव । मदिरा । २. घोड़े का पुठ्ठा(को०)। कोषका सञ्चा बी० [सं०] पक्षी [को०] । कश्य--पुं० चावुक मारने के योग्य [को०] । कषित- वि० [सं०] १ रगड़ा हुआ । कसौटी पर कसा हुआ। २० । कश्यप-सच्ची पुं० [सं०] १ एक वैदिककालीन ऋषि का नाम हैं, जिसे अघात लगा हो [ये । विशेष---ऋग्वेद में इनके बनाए हुए अनेक मत्र हैं । । । । कपीका- संज्ञा स्त्री॰ [सं०] एक प्रकार का पक्षी [को०] । २ एक प्रजापति का नाम । ३ क । कच्छप । ४ एक प्रकार कषेरुका--सा स्त्री० [सं०] रीढ़ [को॰] । की मछली । ५ एक प्रकार का भुग। ६. सप्तपिमडल के एक कुष्कष--सच्चा पु० [सं०] एक प्रकार का जहरीला कीडा (को॰] । तारे का नाम । कृष्ट--सज्ञा पुं० [सं०] १. क्लेश । पौड़ा। वेदना । तकलीफ । कश्यप-वि० [सं०] १ काले दाँतवाला । २ मद्यप । शरावी । | व्यया । दुःख । कश्यपनंदन--संज्ञा पुं॰ [सं० कश्यपनन्दन] गरुड [को॰] । क्रि० प्र०--उठाना ।—करना ।-झेलना । देना--भोगना।-सहना । कुष-सच्चा पुं० [सं०] १. सान । २ कसौटी (पत्थर)। यौ०-- फषपट्टिका । । २ सकट ! मापत्ति। मुसीवत । ३. पाप। दोप (को॰) । ।। ३ परीक्षा । जाँच । ४ रगडने की क्रिया (को॰) । दुष्टता । शैतानी (को०)। ५ प्रयत्न । उद्योग (को०)। ६. कषण-वि० [सं०] विना पका हुआ । कृचा [को॰] । परिश्रम। श्रम (को०) ।। कपण--सज्ञा पुं० १ रगड़ना ।२. चिह्न वनाना । ३. खरोंचना १४, कष्ट'-वि० १. बुरा । सदाप। २ हानिकारक । ३ जो क्रमश बुरी । कसौटी पर सोने को कसना (को॰] । हालत को पहुवा हो । ४ बदतर । कष्टकर। दु खदायक । ५. षटसा पुं० [सं० कष्ट]३• 'कष्ट' । उ०—मन वचन ऋम भ्रम चितापूण । ६. कठिन । दुस्साध्य । ५० घातक [को०] । अपर सत बन् ।चुदर अ', भा० २, पृ० १५६ । कष्टकर--वि० [सं०] कष्ट देनेवाला । तकलीफदेह ।