पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३४७

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६. २ ।। * इर ३३३ ३९ ५३ । ६ २. नई ३. 5. ॐ ३ ।। ३३ र ६३९ मा ६६९।।

इ ई -६ । इ . इ इ ई ६ +ए इ G}} र ३ शारि–फे - [६] को अनि इजाज, ३ ६ झै ३३* St६९ दो ५६ ६ ६६ अनिः६३ ५ ५३३-t -- - [ कनौश] । ३३ । ७०-- शिक- ० [सं०] तेल ।। | ई ३ दिया है। इसे नई किरण धनै कशिपु-- ६० [३०] १. हो । २ ।। १३५३ । ३. बैङ, सचिो पण ब्य।- १०, पृ० १३ । | पहना । कपड़ा। ५, ६ । ५. भक । ६५ ६ (७) । व –२ [२] हर रन । गुनगुनी ३०] । | हरियकशिपु । व्य-ॐ ॐ]वह अझ जो पितरों को दिया था। वह इब्ध शिश-सय ९० [फा०] १, अकर्षण । । । ३. २१६६ । जिसमें पिह, पितृयज्ञादि किंए जाये । उ---विधिवत न्य रुझान । प्रवृत्ति । ३ रोचकता है। | वैवइ नित हुनें तपिठ करे।-शकुंतला पृ० १२५ । केशोदा-संज्ञा पुं० [फा० को-सौरनt+पै] ht विशेष-कुत्र्य अन्न घोत्रिय को देना चाहिए। एक पेंग जिसमें विपी की गरदन पर भF KI +९ युवाह, कन्यवाहन--संज्ञा पुं० [सं०] वह अग्नि जिसमे पिंड से बाएँ पजे से उसका दाहिना भोज अप उर को पौ। पितृयज्ञ में आहुति दी जाती है। उसके दाहिने हाथ से पाकर गिर ३ है ।। कन्वq--होश पुं० [इं० काव्य, प्रा० फच्च दे० 'काव्य' । उ०—ते कशीदास पुं० [फा० का कपड़े पर सुई और सारे मोझे भलो निरूड़ि गए, जइसओ इसमो केव्व कीर्ति, निकाला हुमा काम । तागे भरकर कपड़े में फिर ए मे</ पृ० ४] बुटे । गुलकारी का काम । कृब्वाण--सच्चा छौ० [सं० कृपाण प्रा० किवाण] दे॰ 'कुपाण' । विशेष-कशीदा कई प्रकार का होता है। शरार, उ०—काल कव्वाण कसी सिर ऊपरे मारसी जोय नहि कोय बारीदार,तिनकगि,कोदार, मुर,परर, भीतर, जाडा ।—राम घर्म० १० १३६। गुलदार इत्यादि । कव्वाल-सझा पुं० [हिं० कौवाल] दे॰ 'कौवाल । क्रि० प्र०-फाढ़ना ।—निकालना। केश-संज्ञा पुं० [] [स्त्री० कशा] चावुक । कशीदा-२० [फा० फीवह,] १. घिरा हुआ । उar j{।। २. कश-सज्ञा पुं० [फा०] १. खिंचाव अप्रसन्न । यौ॰—कशमकश । घुमौकश (स्टीमर) । यौ--कशोदा कीमत में शीशोनाSIT । २ हुक्के या चिलम को देम । फूक। जैसे,दो कृश हुक्का पी लें कशेरु–ससा पु० [सं०]१, रीढ़ की ४४ छ । ३. एक •ir९ १ १ ।। | वव चले। ३ जंबू-वीप के नौ पो भे से ए" । ४, ६ [v] । क्रि० प्र०-खचना --मारना 1-लगाना ।—लेना है। कशेरुक-सा पुं० [सं०] ६० करू' । । कश -वि० खीचनेवाला, 1 क़रनेवाला । जैसे,--आराकण, मेहनतकश, कशेरुका-सया भी० [सं०] पीठ की fift itी । रीढ़। कद्द कश । कशेरू-संज्ञा पुं० [सं० कोय] ६० ' ए' । विशेष-- इस अर्थ में इसका प्रयोग केवल।समस्त पदो के अंत में कश्चित् --वि० [सं०] कोई 1 कोई एकः । होता है । । कश्चित्--रावं० [सं०] गहोई (fr) । कुशकु--सज्ञा पुं० [सं०] गवेधुक् । कसी। कश्ती--सा १० [फा०] १. ॥ । •ji । १७•••५ ॥१७६ केशकोल- सज्ञा पुं० [हिं० कजकोल] दे॰ 'कजकोल' । वाहन है, पर fair ।--•(1१०, १७ १७ । ५, कशमकश–सझा स्त्री॰ [फा० कश्मकश] १ खींचातानी । २ भी।।। पनि, मिठाई या मा•r 4 5 hrir tuti ।। ४ ।। १।। घवकमधक्का । ३ अागापीछा। सोचविचार । असमजस । sur k fau । air । दुविधा। कशा--सज्ञा स्त्री० [सं०] १. रस्सी । २. कोडा । चावुक । यो०-कशत्रिय= कोडा मारने के तीन प्रकार । विशेप-चावुक मारने के तीन प्रकार कहे गए हैं-मृदु, मध्य शीर। निष्ठुर 1 साधारण नटखट्टी पर मृदु भाघात होता हैं पौर पद्ध