पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३४५

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मल्ला ६५९ कल्हार कला-संवा पुं० [फा] १. गाल के भीतर का अंश । उवढ़ा। कलश-संज्ञा पुं०प्र० कल्लास]बढ़ी हुई नदी । वह नदी जिसमे बाढ़ ०---त्यों बोले उमेराउनि हुल्ला । जम के भये कटीले कल्ला । प्राई हो । उ०—फल्नाश जो शाही गदा असहान वही के नमः -लाला (शब्द०)। निदा १-कुबीर मं०, पृ० ३७१ ।। यौ॰—कल्लातौड़ । कल्लादराज । कृत्लि--क्रि० वि० [सं०] कल । ग्रानेबाना दिन । अगला दिन[वै] । मुहा०—केल्ली चलाना= मुंह चलाना । खाना । जैसे,—कल्ला केल्लू-वि० [हिं० फाला] काला कलूटा। चत्रे बला टले । कल्ली दवाना=(१) गला दबाना । बोलने कलेदराज---वि० [फा० फल्लादराज] दे० 'कल्लादराज' । में रोकना। मूह पकड़ना । (२) अपने सामने दूसरे को न कस्लेदराजी-संज्ञा [फा० कल्लादराज़ी] जी० दे० 'कल्नादराजी'। वोलने देना । कल्ला फुलाना=(१) गाल फुलाना । खफगी कल्लोल-सज्ञा पुं० [सं०] १ पानी की लहर। तरग । २. मौज । या रजे से मुंह फुलाना या किसी से बोलचाल बंद कर देना । उमग । मामद प्रमोद । क्रीडा । ३. शत्रु । दुश्मन (को०)। रिसाना) रूठना । (२) घमंड से मुहै फुताना या वनाना। कल्लोलनाक्र० अ० [स० कल्लोल] कलोलना। घमंड करना । कल्लोलित--वि० [सं०] लहराता हुआ । वरगित । ३. जबड़े के नीचे गले तक का स्यान; जैसे, खसी का कल्ला । कल्लोलिनी'--संज्ञा जी० [सं०] कत्रोल करनेवाली नदो ! बहुत | कृन्ले का मास । हुई नदी । मुहा०—कल्ले पाए= विर और पैर का मास । कल्ला मारना= कल्लोलिनी-वि० कल्लोल करनेवाली । कन कले करनेवाली । | गान बजाना या मारना। डीग होकना। शेखी बघारना । कल्व—संज्ञा पुं० [सं०] वास्तु या भवननिर्माण शिल्प में द्वार के वे कृल्ली-सच्चा पु० [हिं० कलह झगड़ा। तकरार । वादविवाद ।, किनारे जो नुकीले बनाए जाते हैं । यौ०-झगड़ा कल्ला- वादविवाद ।। कल्हा- क्रि० वि० [सं० कल्य, कल्लि] दे० 'कल'। उ०—ोन्ह संध्या क्रि० प्र०—करना ।—मचाना । | को ऐसी बदली छाई कि मेरे सिर में पीडा प्राई ।—यमा०, कल्ला--संज्ञा पुं० [हिं० फा) लप का वह ऊपरी भाग जिसमे बत्ती जन्न है। दर्नर ।। कल्हक-ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एच चिडिया जो कबूतर के वरावर कल्ला सज्ञा पुं० [० कलाचि, हि० केलाई] कलाई । | होती है । कल्लाठला--संज्ञा पु० [हिं० कल्ला+अनु० ठल्ल] मजबूते कैलाई । विशेष—इसका रग ईंट का सा लाल होता है, केवल कंठ काला । उ०—ऐसा पहलवान था कि वैसे मैं क्या कहू! इधर देखो, | होता है, अाँखें मोतीचूर होती हैं और पैर लाल होते हैं । यह वपचे (हाथ में दिखाकर) यह कुल्ला ठल्ला ।-फियाना०, कुल्हूण-सच्चा पु० [सं०] संस्कृत के एक प्रसिद्ध पंडित और भ० ३, पृ० १७१ । इतिहासकार । । कल्लातों-वि० [हिं० कल्ला + तोड़] १. मुहबोड़। प्रवल । २. विशेष—ये कश्मीर के राजमश्री चंपक प्रतु के पुत्र और राजजोड़ तोड़ का । वरावरी का । तरंगिणी के कत थे। इनका समय ईसवी १२वीं शताब्दी का कल्लादराज-वि० [फा०][चच्चा फल्तावजी, कल्लेदराजी वढ बेतु | मध्य है। कर वात बोलनेवाला1 दुवंचन कहनेवाला । जिसकी ववन कृल्हG—सज्ञा पुं० [हिं० कल्लर] दे॰ 'कल्लर'। में लगाम न हो। मुहुजोर। जैसे,—वह बडी कल्लेदराज कोल्हरना--क्रि० स० [हिं० कड़ाह+ना (प्रत्य॰)] भुनना । औरत है। कडाही में तला जाना। कल्लादराजी-सुवा स्त्री॰ फा०]वद बढ़कर बातें करना । मुहैजोरी । कल्हरनारे-क्रि० अ० [प्रा० फल्हार] पुष्पित होना। पल्लवित कुल्लाना'-क्रि० अ० [सं० फड़ या कल्= असा होना] १ शरीर में होना । विकसित होना । उ०—कामलता कल्हरी पैम मारुत चमड़े के ऊपर ही ऊपर कुछ जलन लिए हुए एक प्रकार की झकझोरी ।-पृ० रा०, २५) ३८१ । पीड़ा होना, जैसे थप्पड लगने से । २. असह्य होना । दु'- कहा -सज्ञा पुं॰ [देश॰] करघे की वह लकड़ी जिने चक कहतें दायी होना । | हैं। विशेष दे० 'चक' । मुहा०--जी कल्ताना = चित्त को दुख पहुचना । उ०—ाज कल्हाना -क्रि० स० [हिं० कहलाना] ३० 'कहलाना' । उ०वे विना बोए गए हैं, वह भला काहे को खाने पीने को पूछेगी। खबर सुन सानमन ने मिलके सारे फल्हा भेजे हैं उम।-- 'जैसा हमारा वी कलाता है, वैसा ही उसका भी थोड़े कलायना -सौ अजान० (शब्द०)। दक्खिनी॰, पृ० १६० । फुल्लाना--किं० अ० [हिं० कन्ना] १. कल्ले निकलना । पल्लवित कल्हारसा पुं० [हि० फल्हारन] कल्हारने की क्रिया या भाव। होना । २. विकसित होना । समृद्ध होना । उ॰—वै पुरानै कल्हार'ची पुं० [मु०] सफेद कोई । श्वेत कमलिनी। उ०-- परिवार वृक्ष की कलम के रूप में नई भूमि पा, नए परिवार की लइन्नहाती शाखा के रूप में कल्ला उठे --भस्मावत, पृ० हैं। मुक्ताप्ने कल्हार कमल तहाँ कुदन से मणुिन स जरी पाल २-२ चहू और सोकरी ---राम० घमं०, पृ० ६७ ।