पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३४४

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कल्माषकंठ कल्ला कल्मापकठ- सच्चा पुं० [सं० फल्मापकण्ठ] शिव । कल्याणकृत्-- वि० [सं०] १ कल्याणपूर्ण या मंगलमय कार्य करने कल्मापपाद—सज्ञा पुं० [सं०] एक राजा का नाम । वाला । २. भाग्यशाली [को०] । कल्मापी संज्ञा स्त्री॰ [सं०] यमुना नदी का नाम (को०] । कल्याणधार) --वि० [भ० कल्याणधार कल्याणकार । उ०उस कल्य---सज्ञा पुं० [सं०] १ सवेरा । भोर। प्रात काल । २ आनेवाला। कृल्य णधार एकमात्र छप्पर को जिसके नीचे असूख्य आये। कल । उ०—आएँगे फिर ये इसी विश्व कल्य ।--साकेत, पृ० सतानो को सुख छाया की अाशा है।--प्रेमघन॰, भा॰ २, १६६ । ३ मछु । शराब । ४. बधाई । शुभकामना (को०)। पृ० २६० । । ५ शुभ समाचार । सुसवाद (को०)। ६. स्वास्थ्य (को०)। ७ कल्याणनट-सज्ञा पुं० [सं०] संपूर्ण जाति का एक संकर राग जो वीता हुमा कल (को॰] । ६ प्रशसा (को०)। ६. उपाय । | कल्याण और नट के सुयोग से बनता है। साधन (को०)। १० क्षेपण (को०)। १ ल्याणवीज--संज्ञा पुं० [सं०] मसूर (को०)। कल्य–वि. १. स्वस्थ । निरोग । २ तैयार । प्रस्तुत। ३. कल्याणभायं--सच्चा पुं० [सं०] वह पुरुष जो बार बार विवाह करे, | चतुर । ४ शुम । मगलकारक 1 ५. वहर और गूगा । ६ पर जिसकी स्त्री मर जाय । | उपदेषात्मक । शं सिक । ७ कुशल । दक्ष [को०] । कल्याणिका--सज्ञा स्त्री० [सं०] मैनसिल किये। कल्यता--सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] स्वास्थ्य (को०] । कल्याणी–वि० स्त्री० [सं०] १ कल्याण करनेवाली । सुदरी। २ कल्यपाल, कल्यपालक--संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री॰ कल्यपाली] कलवार । कल्याणवर। मंगलकारक। उ०-विधाता की कल्याणी सृष्टि, कल्यवत--सज्ञा पुं० [सं०] सवेरे का भोजन । कलेवा [को०] । सफल हो इस भूतल पर पूण |--कामायनी, पृ० ५८ । कल्यन - संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'कल्याण'। उ०—कुम्मैत कुमद कल्याणी--सज्ञा स्त्री० १ मापपर्णी । जगली उद। २ गाये । कल्याँन । मोती सु मगसी अन ।—हम्मीर रा०, पृ० १२५ ।। ३ प्रयाग तीर्थं की एक प्रसिद्ध देवी । ४ पवित्र गाय । कल्या-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ वह बछिया जो वरदाने के योग्य हो। | (को०)। ५ वछिया (को०)। ६ एक रागिनी (को॰) । गई हो। कलोर । २ मदिरा । भाव । ३ हरीतकी । कल्याणीय–वि० [सं० कल्याणी] कल्याणकारी । उ०---है, परम । ४ बधाई । शुभकामना किो०] । कल्याणमय, तेरी कल्याणीय लीला को मैं नहीं जानता हूँ। कल्याण'---संज्ञा पुं० [सं०] १. मगल 1 शुभ । भलाई । त्याग०, पृ० ४५ ।। यौ०-कल्याणकारी । कल्याँन(+---संज्ञा पुं० [सं० कल्याण] दे० 'कल्याण' । २ सोना । ३ मण जाति का एक शुद्ध राग ।। कल्यानकर --वि० [सं० कल्याणकर] दे० 'कल्याणकर' । उ०— विशेष—यह धीराग का सातव पुत्र माना जाता है। इसके । ‘हरिचद' सीस राजत सदा कलिमलहर कल्यानकर ।गाने का समय रात का पहला पहर है। कोई कोई इसे मेघ भारतेंदु० ग्र०, भा० ३, पृ० ६६० । राग का पुत्र मानते हैं। इसके मिश्र और शुद्ध मिलकर यमन कल्याश-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] सवेरे का भोजन । कलेवा [को०] । कल्याण, शुद्ध कल्याण, जयंत कल्याण, श्रावणी कल्याण, कल्योना–सज्ञा पुं० [सं० कल्य] कलेवा । पूरिया कल्याण, कल्याण वराली, कल्याण कामोद, नट कल्ल--वि० [सं०] बहरा [को०)। कल्याण, श्याम कल्याण, हेम कल्याण, क्षेम कल्याण, भूपाली । कल्लता--सच्चा सौ० [सं०] बहरापन [को०] 1 कल्याण ये बारह भेद हैं। इसका सरगम यह है—'ग, म, घ, रि, स, नि, ध, प, म, स, रि, ग । कर-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] १ नोनी मिट्टी । क्रि० प्र०—लगना। ४ एक प्रकार का घृत (वैद्यक) । ५ सौभाग्य (को०)। ६. २. रेह। ऊसर । वदर । उ०-सैकडो क्लेशो के साथ एक प्रसन्नता । सुख (को०)। ७. सपन्नता (को०)। ८. त्यौहार (को०)। ६ स्वर्ग (को०)। एक पैसा इकट्ठा करना और फिर विवाह के समय अधे होकर कल्याण-वि० [ली० कल्याणी] १. शुभ । अच्छी ! भला। कल्लर में वखेर देना।---भाग्यवती (शब्द॰) । मगलप्रद ।। कल्लर- वि० नमकीन । उ०-.-के हुल्लर फल्लर करे, पावै कल्लर यौ०-- फल्याणमार्य । | राव !-वकी ग्र०, भा० ३ १० ८१ । २ सुदर (को०)। ३. प्रामाणिक । यथार्थ (को॰) । केल्लाँच–वि० [तु० कल्च ] १ लुच्चा । शोहदा । गुडा । चाँई । कल्याणक, कल्याणकर--वि० [सं०] शुभ या कल्याण करनेवाला । २. दरिद्र 1 कगाल । अनाथ । कल्ला-सञ्ज्ञा पुं० [म० करीर = वाँस फी करेल] १ अकुर । के वफा ।। कल्याणकारक (को॰] । किल्ला । गोफा । कल्याणकारी वि०स० फल्याणकारिन्] [वि॰ स्त्री कल्याणकारिणी] क्रि० प्र०=-उठना ---निकलनी --- फटना । दे" कल्याणकर' ०१ । यौ--करम फल्ला । कल्याणकामोद-सचा पुं० [सं०] सपूण जाति का एक संकर राग करा--सज्ञा पुं० [सं० कुल्पा]वह गड्ढा या कृय जिसे पान के माद | जो रात के पहले पहर में गाया जाता है । पर पान सोचने के लिये खोदते हैं ।