पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३४२

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कल्प कल्पवयनै ३ प्रात काल ।४ वैद्य के के अनुसार रोग निवृत्ति का एक उपाय विशेप-काव्य, उपन्याम, चित्र अादि इसी शक्ति के द्वार या युक्ति । जैसे,---के गर्क। कायाकल्प । ५ प्रकरण ।। | बनते हैं। एक विभाग । जैसे,-औपघकल्प । श्राद्धकल्प इत्यादि । ६ एक क्रि० प्र०——करना ।—होना । प्रकार का नृत्य । ७ काल का एक विभाग जिसे ब्रह्मा का एक यौ०—कल्पनाप्रसूत । कल्पनाशक्ति । दिन में हते हैं और जिसमे १४ मन्चतर या ४३६००००००० ३. किसी एक वस्तु मे अन्य वस्तु का आरोप । अध्यारोप ।। वर्ष होते हैं। जैसे, रस्सी में साँप की भावना । ४ 'भावना। मान लेना ।। विशेष---पुराणनुसार ब्रह्मा के तीस दिनों के नाम ये हैं—(१) फर्ज । जैसे----कल्पना करो कि अ ब एक सुन ल रेखा है । ५. अवेत (वाराह), (२) नीललोहित, (३) वामदेव, (४) रथतर, मनगढ़ते वात । जैसे—यह सब तुम्हारी कल्पना है । (५) रौरव, (६) प्राण, (७) वृहत्कल्प, (८) कंदर्प, (६) सत्य क्रि० प्र०—करना । या सद्य, (१३) ईशान, (११) व्यान (१२) सारस्वत, (१३) ६ पाश्चात्य साहित्यालोचन और सौंदर्यशास्त्र के अनुसार क नात्मक उदान, (१४) गरुड, (१५) कौम (ब्रह्म की पूर्णमासी), सजना की शक्ति । ७ सवारी के लिए हायी की सजावट । (१६) नारसिंह, (१७) समान (१८) आग्नेय, (१६) सौम, कल्पना –क्रि० अ० [हिं० कल्पना] दे० 'कलपना'। (२०) मान्व, (२१) पुमान्, (२२) वैकुठ, (२३) लक्ष्मी, कल्पनाचित्र-सज्ञा पु०सं० घल्पना + चित्र]कल्पना से निमित चित्रे ।। (२४) सावित्री, (२५) घोर, (२६) वाराह, (२७) वैरज, ऐसा चि। जिसकी रचयिता ने स्वयं उद्भावना को हो । (२८) गौरी, (२६) महेश्वर, (३०) पितृ (ब्रह्मा की जिसके नि मणि में वाह्य जगत् का अाधार न लिया हो। अमावस्या) । कल्पनातीत--वि० [सं०] १ कल्पना से भरे। जो कल्पना में भी न ८ प्रलय (को०)। ६ मदिरा । शरीव (को०)। १० देह को आ सके। उ०—कल्पनातन काल की घटना । हृदय को । नवीन और नीरोग करने की क्रिया या उपाय (को०) । ११. लगी अचानक रटना ।——झरना, पृ० १।। स्वर्ग का वृक्षविशेष (को०)। कल्पनाप्रसूत-वि० [सं०] १ कल्पना से उत्पन्न । १ मनगढंत । यौ०-कल्पवृक्ष । कल्पतरु । कल्पलता। कल्पनावाद संज्ञा पुं० [सं० फल्पना+वाद १. कल्पना पर वत्त कल्प-वि० २ तुल्य 1 समान । जसे-ऋपिकल्प । देवकर । देनेवाला सिद्धात । यह सिद्धात कि कला अनुभव की विशेष—इस अर्थ में यह शब्द समास के अत में आता हैं । कल्पना है । | पाणिनि ने इसे प्रत्यय माना है। कल्पनाशक्ति–संज्ञा स्त्री० [सं० कल्पना-शक्ति] कल्पना करने की २ योग्य (को०) । ३ उचित (को०) । ४ शत्ति मान (को०)। ५ । समता । उदभावना शक्ति । स भव (को०) । ६ व्याहारिक (को०)। कल्पना सृष्टि-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ कल्पनाप्रसुत रचना । २ कल्पना । कल्पक–सच्चा पुं० [सं०] १ नाई । नापित । २ कचर। व लायुक्त का राज्य ।। बाल काटनेवाला ।। कल्पनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] कतैनी । कतरनी । कैंची। कल्पक:--वि० १ कल्पना करनेवाला । रचनेवाला । २ काटनेवाला। कल्पनीय - वि० [स०] जिसकी कल्पना १ जा सके। कल्पकार--सच्चा पुं० [सं०] १ कप शास्त्र का रचनेवाला व्यक्ति । कल्पपादप सच्ची पुं० [सं०] कवि क्ष । गुह्म या श्रौत सूत्र का रचयिता । २ नाई (को०) । ३ शराब यौ॰—कल्पपादप वान = एक महादान जिसमें सोने के पेड़, फूल । बनानेवाला (को०) । | आदि बनाकर दान किए जाते हैं। कल्पकार-वि० १. कल्पशास्त्र रचनेवाला जिसने गृह्य या श्रोत सूत्र कल्पपाल-मज्ञा पुं० [सं०] शराब बेचनेवाला (को०] । रचे हो । जैसे—-कल्पकार ऋपियो ने कहा है। २ सजाने कल्पभव-सज्ञा पुं० [सं०] जैन शास्त्रानुसार एक प्रकार के सँवारनेवाला (को॰) । कल्पक्षय-सज्ञा पुं० [सं०] कल्पात [को०] । देव गण । । कल्पतरु–संज्ञा पुं॰ [सं०] कल्पवृक्ष । विशेष—ये वैमानिक के अंतर्गत माने जाते हैं और संख्या में १२ हैं, अर्थात् सौधर्म, ईशान, सुनकुमार, माहेंद्र, ब्रह्मा, कल्पन—सज्ञा पुं० ]सं०] १ निमोण । रचना। २ सजाना। साज । कालातक, शुक्र, सहस्रार, अनित, प्रणत, अारण और अच्युत । ३ सज्जा के लिये एक वस्तु का दुसरी वस्तु पर रखना। ४ जैनियो का विश्वास है कि ये लोग तीर्थंकरों के जन्मदि धोखा । जालसाजी । ५ कल्पना करना। ६ काटना । सस्कारो में आते हैं। कतरना को०)। कल्पलता-सज्ञा स्त्री० [सं०] कल्पवृक्ष । कल्पना सच्चा बी० [सं०] १ रचना । बनावट । सजावट । यौ०---कल्पलता दान = जिसमें सोने की दश ले आएँ तथा सिद्धि, यौ॰—प्रवर्धकल्पना । मुनि, पक्षी अादि बनाकर दान किए जाते हैं । २. वह शक्ति जो अत करण में ऐसी वस्तुओं के स्वरूप उपस्थित कल्पवयन-सा पुं० [सं०] सोचविचार । उधे इधुन । उ०—मु दै कल्पवयन-संज्ञा पु° [स] करती है जो उस समय इद्रियों के समुख उपस्थित पलक जब निशा शमन में लगे प्रबल मन कल्प वपन में । नहीं होती। चद्भावना। अनुमान । संकल्पनशीलता की शक्ति। गीतिका, पृ० १८ । दम–सज्ञा पुं॰ निर्माण 1 रचनास्त पर रखना। ४.