पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३४०

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कलेजा ६५४ कलेवा कलेजा मलना = दिल दुखानी । कष्ट पहुंचाना । कलेजा मसोस हृदय से लगाकर रखना । जैसे,—जी चाहता है कि उसे कर रह जाना= कलेजा थामकर रह जाना । दु ख के वेग को कलेजे में डाल ल। फलेजे मे डाल लेना = दे० 'कलेजे में रोककर रह जाना । कलेजा मुह को यो मुंह सक आना = डालना' उ०~-मनचलें नौनिहाल हैं जितने । हम उन्हें डाल लें। (१) जी घबराना 1 जी उकताना । ठयाकुलता होना । उ० कलेजे मे --चोखे०, पृ० १३ । कलेजे मे पैठना या धसना= क्षुधा के सताप से कलेजा मुह को अाता है ।—अयोध्या किसी का भेद लेने या किसी से अपना कोई मतलब निकालने । (शब्द०)। (२) सताप होना । दुख से व्याकुल होना। के लिये उससे खुद ऊपरी हेल मेंले बढ़ाना । जैसे—वह ३०—इस दुनिया की इन बातों से बटोही का कलेजा मुह को इस ढव से कलेजे मे पैठकर बातें करता है कि सारी भेद ले आ रहा था 1-अयोध्या (शब्द॰) । कलेजा सुलगना = दिल लेता है। कलेजे में लगना= कलेजे में अटकना । कलेजे पर जुलना । अत्यत दुख पहुचना । संताप होना । उ०—-कवि भारी मालूम होता है कलेजे या पेट में विकार उत्पन्न करना।। सिवा कौन लग सका उसके है। कलेजा सुलग रहा जिसका । जैसे,--(क) पानी धीरे धीरे पीग्रो नहीं तो कलेजे में लगेगा --चोखे०, पृ० ११ । कलेजा सुलगना=बहुत सताना । (ख) देखना यह कई दिनो का भूखा है, वहुत सा छा जायेगा। अत्यत कष्ट देना । दिल जलाना। कलेजा हिलना = कलेज तो अन्न कलेजे में लगेगा। कलेने में लगाकर रखना=(१) । काँपना । अत्यतं भय होना । कलेजे का टुकड़ा=(१) किसी प्रिय वस्तु को अपने अत्यंत निकट रखना या गास से लडका बेटा । स तान । (२) अत्यंत प्रिय व्यक्ति । जुदा न होने देना । वहुत प्रिय करके रखना । (२) बहुत । कलेजे की कोर= (१) सुतान। लडका लडकी । (२) यत्न से रखना । अत्यंत प्रिय व्यक्ति । कलेजे खाई डाइन । बच्चो पर २ छाती वक्षस्यल । टोना करनेवाली । कलेजे पर चोट खाना = दु ख होना । क्लेश मुहुर--कलेजे से लगाना =छाती से लगना । अलिगन। होना । उ०—-अव तो जान पर बन गई । कलेजे पर चोट करना 1 प्यार करना । गले लगाना । ज०-~-दुख कृलेजा खाई है तवीब बेचारी नब्ज क्या देखेगा ?—फिसाना, गया जिन्हें देखे। क्यों लगाएँ उन्हे कलेजे से 1--नौवे, भा० १, पृ० ११ । कलेजे पर चोट लगना =सदमा पहुँचना । पृ० ६२ ।। अत्यत क्लेश होना । कलेजे पर छुरी चल जनाः= दिल २. जीवट 1 साहस । हिम्मत । पर चोट पहुँचना । अत्यत क्लेश पहुँचना । कलेजे पर चना । अंत्यत कलेज पक्षनr | कलेजे पर क्रि० प्र०—करना ।—बढ़ना। साँप लौटना = चित्त में किसी बात का स्मरण | जाने से कलेजी-- सज्ञा स्त्री० [हिं० कलेजा] कलेजे का मास । एक बारगी शोक छा जाना । जैसे,--जब वह अपने मरे कुलेटा-सुज्ञा पुं० [देश॰] एक प्रकार की वक) जिसके ऊन केवल लडके फी कोई चीज देखता हैं, वव उसके कलेजे पर आदि बुने जाते हैं। साँप लोट जाता है । (ख) जव वह अपने पुराने मकान कलेव--सज्ञा पुं० [सं० फलेवर] कलेवर । शरीर। उ०-तव 'हामने को दूसरो के अधिकार में देखता है, तब उसके कलेजे सु कलेव सुर करे सेव सुचि सच ।-पृ० रा०, २५ । १७६ । पर सौप लोट जाता है। कलेजे पर हाथ घरना या रखना= कृलेवर-अज्ञा पुं० [सं०] शरीर । देह । चोला । अपने दिल से पूछना । अपनी आत्मा से पूछना। चित्र में जैसा मुहा०- फलेवर चढ़ाना = महावीर, भैरव, गणेश आदि देवतामों विश्वास हो, ठीक वैसा ही कहना। जैसे,--तुम कहते हो कि तुमने रुपया नहीं लिया, जरा कलेजे पर तो हाथ रखो। की भूत पर घी या तेल में मिले सेंदुर का लेप करना । विशेष-यदि कोई मनुष्य कोई दोष या अपराध करता है तो कलेवर बदलना=(१) एक शरीर त्यागकर दूसरा शरीर उसकी छाती धक धक करती है। इसी से जव कोई मनुष्य धारण करना । चोला बदलना । (२) एक रूप से दूसरे रूप झठ बोलता है या अपना अपराध स्वीकार करता है, तब मह में जान।। (३) जगन्नाय जी की पुरानो मूत्ति के स्थान पर नई मुहावरा बोला जाता है । मूर्ति स्थापित होना । फलेने पर हाथ धरकर या रखकर देखना = अपनी आत्मा से पूछ विशेष—यह एक प्रधान उत्सव है, जो जगन्नाथ पुरी में जब कर देख, । अपने चित्र का जो यथार्थ विश्वास हो, उसपर ध्यान देना। उ० देखना हो अगर दहल दिल की । देखिए मलमास असाढ़ में पहता है, तब होता है । इसमें हाथ रख कलेजे पर चोखे०, पृ० ६१ । कलेजे मे अगि लकड़ी की नई मूति मदिर में स्थापित की जाती है और लगना=(१)\ अत्यंत दुख या शोक होना । (३) हाह पुरानी फेंक दी जाती है। होना । द्वैप की जलन होना । (३) बहुत प्यास लगनः । (४) कायाकल्प होना । रोग के पीछे शरीर पर नई रगत फलेजे में गठि' पइना = मन में भेद पैदा होना । उ॰ चढ़ना। (५) पुराना कपड़ा उतारकर नया और साफ तब सके गाँठ हम कहीं मतलव ! पड गई गाँठ जब कलेजे कपडा पहनना । में चोखे०, पृ० ३६ । कलेजे में छेद करना=अत्यधिक क्लेश पहचाना । मामिक पीडा देनी । उ०—बात से छेद छेद २ ढाँचा । अाकार । डोल डौल । करके कमो । छेद करदे किसी कलेजे मे ।—चोखे०, पृ० २२ । कुलेवा-सज्ञा पुं० [सं० फल्यबर्त, प्रा० कल्ल बट्ट] १ वह हलेका भोजने । मलैजे में डालना=प्यार से सदा अपने वईत पास रखना। जो सवेरे वाँसी मुहू किया जाता है। नहारी । जलपान ।