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उजाड़

जड़ उवा पुडा हुन्न । ध्वस्त । २ जिसकी घरवार सज गयी उजलत-सच्चा खौ० [ अ० ] उतावली 1 जल्दी । हो । ३ नष्ट । निकम्मा ( स्त्रि०)। यौ०-- उजलत प्रसद, उजलतबाज = उतावली करनेवाला। उजलतबाजी : शीघ्रता । उतावली । उजड्ड़--वि० [सं० उत् ( = बहुत ) + जड (= मूर्ख) १ व भूम्वं । | उजलवाना-क्रि० स० [हिं० उजालना का प्रे० रूप ] १ गहने या अशिप्ट । असभ्य । जग नौ । गवाँर । १ उद्द छ । निरकुश ।। अस्त्र प्रादि को साफ करवाना। मैल निकलवाना । निखर- | जिसे बुरा काम करने में कुछ अागा पीछा न हो । वाना । २ उज्वलित करना ! जलाना। उजड्डुपन—सग पुं० [हिं० उजड+पन ( प्रत्य॰)] उद्द डता । उजुला'---वि० [ स० उज्ज्वल, प्रा० उज्जल ] [ स्त्री० उजली ] | अशिष्टता । असभ्यता 1 बेहूदापन। १ श्वेव । घना सफेद । ३ स्वच्छ 1 साफ । निर्मल । अजवक'—सा पुं० [ तु० उजवेक 1 ततिारियों की एक जाति । झक 1 दिव्य । उजवक–वि० उजड्ड । वेवकूफ । अनाडी । मूर्ख । मुहा०—-उजला मुह करना= गौरवान्वित करना । महत्व बढ़ाना । उजवकपन-सी पुं० [ तु० उजवैक+हि० पन (प्रत्य॰)] जैसे, उसने अपने कुल भर का मुहै उजला किया। वेवकूफी । मूर्ख। उ० --वौद्धिक उजवकपन ( इंटेलेक्चुअल उजला मुह होना=(१) गौरवान्वित होना । जैसे, उनके वल्गेरिज्म ) भी एक वड़ा बुरा दोष है ।-कुकुम ( भू० ), इस कार्य से सारे भारतवासियो का मुह उजना हुआ ।(२) पृ० १८ । । निलक होना । जैसे, लाख करो, तुम्हारा मुह उजना नहीं। उजवेग-वि० [ तु० उजबेक ] तातरियो की जाति से स्वधित । हो सकता । उजली समझ = उज्वल बुद्धि, स्वच्छ विचार। त'तारियो की जाति का । उ०-"तैमूरों और उजवेग बादशाही उजला-सच्चा पुं० [ हि० उजली = घोविन | धोबी। के साथ इतने युद्ध किए और सुकट झेले --द्वेमयू । पृ० १। उजुलापन--संज्ञा पुं० [हिं० उजला+पन ( प्रत्य० }] सफेदी । उजम्मत- संज्ञा स्त्री० [अ० ] बड़ाई। प्रतिष्ठा । समान । उ०— स्वच्छता । निर्मलता । मनमानी अपनी उजम्मत और तारीफ लिखी ।= प्रेमघन० उजलो-- सच्चा स्त्री० [हिं० उजला ] विन { जी० ) । भ० २, पृ० १५७ । विशेष-मुमन मान स्त्रियाँ रात को धोविन का नाम लेना उजर -वि० [स० उज्ज्वल, प्रा०उज्जल] दे० 'उज्ज्वल' । उ॰-- बुरा समझती हैं, इसे वे उसे ‘उजली' कहती हैं। उजर नयन नलिना काजरे न कर मलिना।--विद्यापति, उजवना —क्रि० अ० [ स ० उद्यत, प्रा० उज्जम, स०, उद् + पृ० ७७। येत्, ५० उज्जव ] प्रयत्न करना । उद्यत होना। उद्यम उजरत--सा खौ० [अ० 1 १ मजदूरी । ३ किराया । भाडा। करना । उ०—हौं उजऊ सू अज्ज़, करौ राजन अकथ क्रम । उ०-अच्छा, तो क्या आप समझठे हैं कि अपनी उजरत । --पृ० रा०, ६। १३३ । छोड दूगी।---मान० भा०, पृ० ३६ ।। उजवालना -क्रि० स० [ स० उज्ज्वल ] उज्वलित करना । मुहा०—उजरत पर देना= किराये पर देना । भाड़े पर देना। प्रकाशित करता । जलाना ! ३०—( क ) पैखौ घर मैं पवण उजरना - क्रि० अ० [हिं० उजेडन ] ३ ‘उजडना' । उ०---- सु, बचे दीप दुतिवत। घर मै उजवालौ घणी दीप हूत नारद वचन न मै परिहरॐ । वसो भवनु उज़रौ नहि डरऊँ । दरसत ।—बाँकी० ग्र०, भा० १, पृ॰ ६८। ( ख ) लवा —मानस, १६० । भाग अचमा भारी श्वास वैग ततकालू । प्रकट इकीस मणिया उजरनि ---सज्ञा स्त्री० [हिं० उजरना ] उजड़ने का भाव । छेद्या सुरति शब्द उजवालू ।-राम०, धर्म०, पृ० ३६८ । वीरानापन । उ०--उजरनि बसी है हमारी अँखियानि देखी, उजवास–सच्चा पुं० [सं० उद्यास= 9यत्न]। प्रयत्न । चेष्टा । तैयारी । सुवस सुदेस जहाँ भावते वसत हो।--धनानद, पृ० ७१।। उजागर–वि० [ उद् = ऊपर, अच्छी तरह+जागर = जागना, उजुरा --वि० [हिं० ] दे॰ 'उजला' । जलना, प्रकाशित होना । जैसे, उदृवृद्घ्य स्वाग्ने प्रति जागे हीथ । प्रा० उज्जागर= जागरण अथवा स ० उद्योतकर, प्रा० उजराई –सा जी० [ हिउज्जर ] १ उज्बनता। सफेदी । उज्जोअगर । मो० उजागरी ] १ प्रकाशित । जाज्वल्यमान्। २ ६५च्छतः । सफाई। काति । दीप्ति । उ०---कहा कुसुमु, दीप्तिमान् । जगमगाता हुआ ।२ प्रसिद्ध । विख्यात । उ० - कह कौमुदी, किंतक अारसी जोति । जाकी उजराई लखें अखि ( क ) जाववान जो वली उजागर सिंह मारि मणि लीन्ही । ऊजरी होति ।-विहारो र०, दो० १२। पर्वत गुफा वैठि अपने गृह जाय सुता को दीन्ही ।।- सूर उजराना -क्रि० स० [सं० उज्वलन ] उज्वल कराना। ( शब्द० ) ( ख ) सोई विजई विनई गुनसागर । तास सुजस उजलवाना । साफ करना । उ०--( क ) अजन दे नैननि, उजागर ॥ -तुलसी ( शब्द०)। (ग) क्यो गुन रूप उजागरि अवर मुचे मन कैं, नीन्हें उजाइ कर गजरा जराइ के --- श्रयलोक नागरि भूद्धन घारि उतारने लागी ॥--मतिराम दे ( शब्द०)।( ख ) तन कचन, हीरा मनि विद्रुम अधर ( शब्द०)। उ०—वधु वस तें कीन्ह उजागर। भजेहु राम बनाय, दिन मनि स्याम जड़े तहाँ विधि जरिया उजराय ।- सोभा सुखसागर ।--मानस ! ६ । ३३ । क्रि० प्र०—करना होना। मुबारक ( शब्द०)। उजाड'समा पु०[स० उतू जेड या जर अयथा उज्ज्वाल> उजार) उजल -वि० [सं० उज्वल, प्रा० उज्जल ] दे॰ 'उज्वल' । ३० उजाट ] १. उजडा हुअा स्थान | ध्वस्त स्थान । गिरी पही -मृदुल उजा गगा जन पहिरें उठन जु तृन ते छवि की जगह । २ निर्जन स्यान । शून्य स्थान। वह स्थान जूही नहीं ननद० ग्र २, पृ०२३३। वस्ती न हो। ३. जगल। वियावान । उa'वडा