पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३३८

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कलुषचेती ८५२ कलेजा कलुषचेता- वि० [सं० कलुषवेस्] १ जिसके मन में कलुष हो । २ जो कलुपिन कार्य करने में प्रवृत्त हो (को०) । कलुषता- सच्चा स्त्री० [सं०] कल्मष । पाप । उ०—प्रेम भक्ति यह मैं कहीं जाने बिरला कोई । हृदय कलुपता क्यों रहै, जा घट जैसी होइ -सुदर ग्रं॰, भा॰ १, पृ० २७ ।। कलुषमानस- वि० [सं०] कलुषित मनवाना । दुष्ट । पापी (को०] । कलुषयोनि-सा ५० [सं०] वर्णसकर । दोगला । यौ०-कलुषयोनिज = वर्णस कर । दोगला । कलुपाई- सद्या स्त्री० [सं० फलुप+हि० प्राई (प्रन्य०)] १ बुद्धि की मलिनता। चिर का विकार था दोष । उ०-- भए सच साधु किरात किरातिनि रामदरस मिटिगं कलुपाई ।—तुलसी (शब्द॰) । २ अपवित्रता । मलिनता । उ०- तीये सिरोमणि सीय तज जिन पावक की कलुपाई दही है । तुलसी (शः५०)। कलुपत- वि० [सं०] १ दूपित । उ० - कलुपित कैसे शुद्ध सलिल को अाज करू' मैं 1-साकेत, पृ० ४०२ । २ मलिन । भै ना। ३ पापी । ४ दुखित । ५ व्ध । ६ असमयं । ७ काला । ६. रुष्ट (को०)। ६ दुष्ट (को॰) । कुलुपी--वि० सी० [सं०] १ पापिनी । दोप) । २ मलिन । गदी । | ३ कुद्धा (को०)। ४ दुप्टा (को०। । । कलुपी - वि० पुं० [सं० कलुपिन] १ मलिन । मैला । गदा । २ | पाप । दोपो । ३ ऋद्ध (को०) । ४ दुष्ट (को०) ।। कलू -सच्चा पु० [सं० फलियुग, (किलऊ] दे० 'कलियुग' 1 उ०-- शाया है कल का दौर घरो घर काँगारौल ।-पोद्दार प्रमि० ग्र ०/ १०५३३ । कलूटा--वि० [हिं० फाला+दे (प्रत्य॰] [स्त्री० फलटी] काले | रंग का । काला । य०-- काला । फलूटा। कलूना-सा पुं० [देश०] एक प्रकार का मोटा धान जो पजाब में । उत्पन्न होता है। कलूव--- सज्ञा पुं० [अ० कल्व हृदय। अंत करण । उ०—दादू पसु पिरनि के, पेही मझि कलेव ।—दादू०, १० ६० ।। कलंडर- सज्ञा पुं० [अ०] तिथिपत्र । पचाग । ईसवी सन का तिथिपत्र । कलेऊ1- सज्ञा पुं॰ [हिं॰ कलेवा] प्रातकाल का लघु भोजन । जलपान । कलेवा। उ० - प्रात काल उठ देहू कलेऊ वदन चपरि अरू चोट । को ठाकुर ठाढो हथि लकुट लिए छोटी। —सूर (शब्द०)। कलेक्टर-- बच्चों पु० [अ०] दे॰ कलक्टर' ।। च लेजई-सच्चा पुं० [हिं० कलेजो एक रग का नाम । विशेप-गह छिबुला, हु, कमीस और मजीठ या पतग के मेल से बनता है । इसे चुनौटिया रग भी कहते हैं। कलेजई-वि० कलेजई रग का। चुनौटिया । कलेजा--सज्ञा पुं० [सं० यकृत, (विपर्यय ) फूत्य, कृज्ज] १. प्राणियो का एक भीतर) अवयव । विशेष----१ह छाती के भीतर बाई मोर को फै रा ३१ हो ।

  • इसमें नापि के सारे शरीर में रक्त का । ॥र होता है । यह पान के प्रकार की मामू की वैली की तरह होता है जिसके भीतर धिर बनकर जाना है और फिर उसके ऊपरी परदे की गति पा घडू न से दबकर नाड़ियों में पता पौर

सारे शरीर में फंत्रता है। मा०-फलेजा उछलना=(१)दिल धडकना । घपहुट होना। (२)हृदय प्रफुल्पित होना । कलेजा उदल उछत पड़ना = मनः विभोर होना । उ०—६ उमगे छलग सी भरनी. है कजा उछल उछल पड़ता ।--चो०, १० ८ | कनेश उड़ना= हो जाता रहना । पराइट होना। लेजा उनना = (१) के करते करते २ में वल पढ़ना । वमन करते करते जी घबराना । (२) हर का जाना रहना । कलेजा फटना=(१) हीरे की कनी प्रो र हिमी वि7 के याने से अंतडिया में थेदन देना । (२) मन के साये रक्त गिरना । चुनी दम्त माना। (३) दिल पर चोट पहुँचना। अत्यत है।दिक कष्ट पचनी, जैसे उनकी दशा दे किका कने जा नही कटवा । (४) चुरा लगा । नागवार लगना । जी मालूम होना, जैसे ---मैना घचं करते उमका कनेजर काटता है। (५)दिन जनना । डाहू होना । हमद होना । जैसे---उतै चार पैसा पात देय तुम्हारा कने जा 7 फटता है। कर्ता कांपना = जी दहनना । र मना, जैमे--नाव पर चढ़े हमारा कने जा फपिता है । कतैना फाटकर रखना = दे०'का निकालेपार रेवना' । फलेजा फाइना = (१) दिन -िकालना। अत्यत वेदना पहुँचाना । उ०-मधि तो अाप फाउते ही ये। अव लगे काढ़ने कलेजा स्यों ।–३, १० १२ । (१) किसी को प्रत्यत प्रिय वस्तु ले लेना । किती का सर्वस्व हरण करना । फलेज का लेना=(१) हृदय में बेदना पहुँचाने।। अत्यत कष्ट देना । (२) मोहित करना। रिझाना । (:) चोट की चीज निकाल लेना। सबसे अच्छी वस्तु को छीट लेना । सार वस्तु ले लेना । (४) किसी का सर्वच हुग्ण कर लेन । कलेज फाई के देना (१)अपनी अत्यत प्यारी वस्तु देना । (२) मुन का किमी को पनी वस्तु दैना (जिससे उने बहुत कष्ट हो) | फनेजा खाना = (१) बहुत तेग करना । दिक करना । (२) वीर बार ताजा फेरना । जैसे -“वह चार दिन से कलेजा खा रहा है. उनका रूप आज दे देंगे । फलेजा खिलना = किसी को अत्यंत प्रिय वस्तु देना । किसी का पोपण या सरकार करने में कोई वात ३ न रखनः, जैसे- उसने कलेजा विला पिनाकर उसे पाली है । फलेजो खुरचना=(१) इन अन्य लगना, जैसे--मारे "भूख के कले जा सूरच रहा है । (२) किमो विवे के जाने पर उमरै लिये चितित गैर व्याकुल हौना, जैसे-जब से वह गया है, तप से उसके लिये वलजा स्वर में रही हैं। कलेज गोदना = दे० कलेजा छेदना या वीघना' । पोलेजा छिदना या विधना=कड़ी वातो से ज़' देखना । ताने मैहने से हृदय व्यथित होना, जैसे,--अब तो सुनते, सुनते कलेवा छिद गया, कहाँ तक सुनें। कलेजा वेदना या बॉघना= कुई