पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३३४

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कलावाजी ६४६ कलावादी कुलाबाजो-सज्ञा स्त्री० [हिं० कली +फा० वाजी] १. सिर नीचे कलार---सज्ञा पुं० [हिं० कलवार] ३० ‘कलवार' । उ०—चलो करके उलट जाना । ढेकली । २ लोटनिया । कलार की हाट में मदिरा को प्रथम प्रकृति का साक्षी बनावें ।क्रि० प्र०——करना ।--खाना । |शक तला, पृ० १०४। मुहा०— फलाबाजी खाना = लोटनिया लेना । उइते उडते सिर कलारी-सज्ञा स्त्री० [हिं० कलवार] १ कलवार जाति की स्त्री । | नीचे करके पलटा ख ना (गिरहबाज कबूतर का} । कनवारिन । उ०--सुरत कलारी भइ मतवारी मदवा पी गई २ नाचकूद । विन तोले --संत वाणी, भा॰ २, पृ० १७ । २ शराब कलावीन--सज्ञा पुं॰ [देश॰] एक वृक्ष । वे चने या बनाने का स्थान । कलवरिया । विशेष—यह सि नहट, चटगाँव और वर्षा में होता है। वह ४०-५० कलाल-सज्ञा पुं० [सं० फत्प्रपाल] [बी० कलाली] कल वार। फुट ऊचा होता है। इसके फल के बीज को मंगर चावल या मद्य बेचनेवाला । उ०—मुरख लोक नू जाणही चोर जुवारि कलौथी कहते हैं, जिसका तेल चर्मरोगो पर लगाया जाता है। अन ई कलाल । वो ० रासो, पृ० ५३ ।। कलाभूत्--सूज्ञा पुं० [सं०] चद्रमा । यौ ०... फलालखाना = शराबखाना। मद्य विकने का स्थान ।। कलम--संज्ञा पुं० [अ०] १. वाक्य 1 वचन । उक्ति । २ बातचीत । कलाली--सज्ञानी० [हिं० कलारी] दे॰ 'कला' । उ०---आगे कयने । वात् । ३ वादा 1 प्रतिज्ञा । उ०--पुनि नैन लगाइ | कलाली की हाट हैं रे चोरना फूल चूनत ।—कबीर म० वढाइ के प्रीति निवाहन को वयो कलाम किया है --हरिश्चंद्र पृ० १७५ ।। (शब्द॰) । कलावत--संज्ञा पुं० [सं० छलावान्] १ सहीत कला में निपुण क्रि० प्र० -- करना। व्यक्ति । वह पुरुप जिसे गाने बजाने की पूरी शिक्षा मिली २. उज्ज । वक्तव्य । एतराज । उ०-- दहन पर हैं उनके गुम हो । गवैया । उ०—-विनकु' राग सुनने को सुन वहुत हुनो सो | कैसे कैसे । काम अाते हैं दमय कसे के से |--प्रेमघन॰, भा० गान सुनायवे के लिये देश देश के कलावत गवैया उहाँ प्रावते २, पृ० ४०७ । हते ।--अकवरी०, पृ० ३६ । २ फल विजी करनेवाला । मुहा०-कलाम होना = सदेह होना। शुका होना । जैसे,—तुम्हारी नट । ३ वाजीगर । जादूगर । उ०—कथनी कथा तो क्या सचाई में कोई कलाम नही हैं । हुअा करनी ना ठहराय । कलावत का कोट ज्यो देखते ही कलामक--सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] जाहे में पकनेवाला एक घान [को०)। ढहि जाय }---कवोर सा० ऋ०, १० ८८ । कलामपाक-सच्चा पु० [अ० कलाम + फा० पाक कुरान शरीफ । कलावत-.-वि॰ कलाओं का जाननेवाला ।। कलाममजोद—सच्चा पुं० [अ० कलाम + मजीद] कुरान शरीफ । कलावत -संज्ञा पुं० [हिं० कलावत]दे० 'कलावत' । उ०—-जहाँई कलमल -सज्ञा पुं० [हिं० कलिमल] दे० 'कल्मिन'। उ०-~ कलावत अला, मधुर स्वर ।—भूपण ग्र०, पृ० ५४ । काया धरि हम घर घर आए, काया नाम कलामल पाए ।--- कलाव-- सच्चा पुं० [हिं० कलावा दे० 'कलावा' । कवीर सा०, पृ० २५३ । कलावत -सज्ञा पुं० [हिं० कलावत] दे॰ 'कुलावतं'। उ०—भाट कलामल्लाह-सच्चा पुं० [अ०] कुरानशरीफ । उ० –मगर जब कलावत बसे सुजाना । जिन्ह पिगल सगीत वखाना |--- उसको किसी की तरफ से एतकद आ जाता है तो वो उसके चित्रा०, पृ० ११ ।। कलाम को कलामुल्लाह समझता है ---श्रीनिवास० ग्र०, पृ० कलावती'---वि० ब्री[सं०]१. जिसमे कला हो। २. शोभावाली। छविवाली । कलामेमजीद--सज्ञा पुं० [हिं० फलाममजीद] दे० 'कलाममजीद’। कलावतो-सज्ञा स्त्री० १ तुबुरु नामक गधर्व को वीणा । २ दुनिल ३०----खवाजा-कलामेमजीद की कसम, जब तक अहल्या का राजा की पत्नी । ३ एक अप्सरा का नाम ।। गगी (काशी पता न लगा लगा, मुझे दाना पानी हराम है ।-काया, पृ० खंड) । ५ तत्र की एक प्रकार की दीक्षा । ३३५ ।। कलावली- सझा पुं० [हिं० कलवल] दे० 'कलवल' । उ०--अबला कलामोचा--सज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का घान जो वगाल में कहत भला को मरा कैसे यह याकी कलावली वीर विपुल विनासे हैं - दीन० अ०, पृ० १३६ ।। होता है । कलाबासज्ञा पुं० [सं० कलापक, प्रा० कलाव, तुलनीय फा० कलाय-संज्ञा पुं० [सं०] मटर 1 कलबह] [स्त्री॰ अल्पा कलाई] १. सूत का लच्छा जो कलायखज-सज्ञा पुं० [सं० फलामखन्ज] एक रोग जिसमें रोगी के । टेकुए पर लिपटा रहता है । २ लाल पीले सूत के तागो का जोडो की नसें ढीली पड़ जाती हैं। और उसके अगो मे लुच्छा जिसे विवाह आदि शुभ अवसरो पर हाथ, घड़ो त्या कँपकँपीं होती है । वह चलने में लगाती है । और और वस्तुप्रो पर भी वववे हैं । ३ हाथी के गले में पडी कुलायन--सज्ञा पुं॰ [सं०] नर्तक कि ।

  • हुई कई लड़ो की रस्सो जिमैं पैर फैसाकर महावत हाथी कलाया--सम्रा ,बी० [हिं० कलाई] दे० 'कलाई । उ० --वादीला । होकते हैं । ४. हाथी की गरदन ।।

बनराव रे, जिते कलाय जोर --बॉफी० अ०, भा० १, कलावादी-वि०--[सं० फला+वाद +हिं० ई(प्रत्य॰)]१. कला के पु० २। । दृष्टिकोण से संबधित । कक्षा के विचार से युवा । उ०—-शुद्ध