पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३३

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उछारना ५४७ उजड विस्तार --विश्राम ( झुक्द०)। ४ उछलता हुआ कण । उछोड़--संज्ञा पुं० [हिं० छीर - फिरि ] जगह। छेद । छोटा । उ०—ाई खेलि होरी ब्रजगोरी वा किसोरी संग अग अनावृत स्थान । । अग रगीन अनग सरसाइगो। कुकुम की मार वाप रगिनि उछीनना--क्रि० स० [सं० उच्छिन्न उच्छिन्न करना। उखाडना । उछार उड़े वुक्की औ गुलाल लाल लाल वरसाइगो। नष्ट करना । उ०पने मीर बनवीर उठीने । पेलि मतग घाट रसखान ( शब्द०)। ५ वमन । के । उन लीने ।---नाल (शब्द॰) । उछारना—क्रि० स० [हिं० उछरना' का ४० रूप 3 दे० उछीर -सज्ञा पुं० [हिं० छोर= किनारा ] अवकाश । जुगह । | उछालना' ।। रछ । अनावृत स्थान । उ०--देखि द्वार भीर पगदासी कटि उछाल-सच्चा नी० [ स० उच्छाल ] २ सहसा ऊपर उठने की वाँधी धीर कर न उछीर करि चा पद गाइए। देखि लीना क्रिया २ फ्लाँग । चौकड़ी । कुदान् । जैसे, हिरन की उछाल वैई, काहू दीन पाँच सात चोट, कोनी धकाधकी, रिस मन में सबसे अधिक होती है । न आइए ti---प्रियादास (शब्द॰) । क्रि० प्र०-भरना । मारना । लेना ।। | उछेद -सच्चा पुं०, [ स० उच्छेद ] दे० 'उच्छेद' । उ०-निराकार | ३ ऊपर उठने की हद या ऊँचाई ! ते वेद आदि भेद जाने नहीं, पडित करत उछेद, मते वेद के उछाल-सज्ञा पुं॰ [ सै० छंद, प्रा० छडि ] उलटी । कै । वमन । जग चले ---कवीर सा०, पृ० १४।। उछलछक्का-वि० [हिउछाल +छक्का व्यभिचारिणीं । छिनाल । उछेदना -क्रि० स० [ स० उच्छेदन ] उच्छेद करना । नष्ट उछालना-क्रि० स० [ स ० उच्छालन ] १ ऊपर की ओर फेंकना। करना । प्रभावित करना । उ॰—-सत्य शब्द मन देइ उच्छेदी । उचकानी । २ प्रकट करना } प्रकाशित करना । उजागर मन चीन्हे कोई विरले भेदी ।—कवीर सा०, पृ० २१६ । करना । जैसे, तुम अपनी करनी से अपने पुरखों का खूब नाम उछोह -सज्ञा पुं० [सं० उत्सव उत्सव । उछाह । शानद । उ०—- उछाल रहे हो। ३, कलकित करना। बदनाम करने की बाबा मगलदास का रामचद्र पर मोह, पधराए गुरु पादुका चेष्टा करना । (अन्य ) । कीये बहुत उछोह । सु दर ग्र ०, मा० १, पृ० १२३ । उछाला—सा पुं० [ प्रा० उच्छाल, हि० उछाल 1 जोश । उबाल ।। उछछ –वि० [ १० उच्छ, पाउछ = हीन ] दे॰ छा। हे उछाल' ।। उछ।व--सज्ञ। पुं० [ से उत्साह, प्रा० उच्छाहे ] उत्सव । उछाह। उ०-देहु दिवस सोम नृप हुञ सुपग । किम उठ्छ वत्त कढी उ०-देश मालगिर हुवउ हो उछाव राजमती कउ रच मुपंग ।—पृ० रा ० ८।४ । वीवाह --वी० रासो, पृ० १५।। उछछप -सज्ञा पुं० [ स० उत्सव, प्रा० उच्छव] ३५ 'उत्सव' । उद्यावा.- सच्चा पुं० [हिं० उछाव] उत्साह । हर्ष । मानद । ३०-- उछ्छरना--क्रि० अ० [ हि ] दे० 'उछलना' । उ०—मनो तरक्क देवि दरश होय अधिक उछोव | कवीर सा०, पृ० ५६१ । । | विछ्छुरे मिलत चद उछ्छ्रे । पृ० ० २५१४५।। उछाह---सच्चा पुं० [सं० उत्साह प्रा० उत्साह][वि० उछाही]१ उत्साह उछारना--क्रि० स० [हिं॰] दे॰ 'उछारना', । उ०---वीर मंत्र उमग । हर्ष ! प्रसन्नता । शानद । उ० ( क ) | उच्चार लोह ऊछ्छिन उछार ।-पृ० ० २४॥ १८१ । छइहि कुवर मन करहि उछाहू । अागे घाल जिने नहि उजक–सच्चा पुं० [ तु० उजुक ] शाही जमाने की बड़ी मुहर। काहू 11-जायसी ( याब्द०)।( ख ) और सबै हरखी हँसति उजका–सच्चा पुं० [हिं० उसकना ] चिथड़े और घास फूस गावति भरी उछाह । तुम्ही वढू विलखी फिर क्यो देवर के का पुतला जो खेत मे चिडियों को दूर रखने के लिये रखा व्याह ।--विहारो र० ६०२।( ग ) नाह के व्याह की चाह जाता है ? विजया । सूनी हिय माहि उछाह छबीली के छायो । पौढि रही पट उजुग्गी---वि० [ उज्जागृत } जग हुई। जागती रहनेवाली । शोड़ि अदा दुख को मिस के मुख वाल छिपायो। मतिराम उ०—-बच उच्चर वेंन निसि की 3जग्गी। मनो कोकिला ( शब्द०)। २ उत्सव । अनद की धूम । ३. जैन लोगों भाप संगीत लग्गी ।—पृ० ० ६११४२८ । की रथयात्रा । उत्कंठा । इच्छा। उ०—नकादाह दल ने उजट -सज्ञा पुं० [ स ० उटज़ ] झोपडा। पर्णश ला । उछाह रह्यो कहिन को कहैं सर्व सचिव पुकारे पाँव उजडनी-f० अ० [ स० अव-= रोपिएँ ।—तुलसी ग्र० पृ० १६० । । अथवा देशी उज्जड ] [ वि० उजाड़ ] १ उखडना पुडेना । उछाहित–वि० [ स० उत्सहित, प्रा० उच्छाहिय, हि० उछाह उच्छिन्न होना । ध्वस्त होना । २ गिर पड़े जाना। विख- उछाह+इत ( प्रत्य० ) ] उत्साही । उछाह से युक्त । उछाह रना । तितर बितर होना । जैसे,—यह घर एक ही बरसात मरा। उत्साह करनेवाला । उ०—-बीर विजय दिन वीर भूमि मे उजड़ जायगा । ४ वरवाद होना । तबाह होना । नष्ट के वीर उछाहित । प्रेमचन० मा १, पृ० ३४६।। होना । वीरान होना । उ०—(क) कई प्राणियों के मर जाने उछाहो—वि० [हिं० उछाह ] उत्साह करनेवाला । अनद से उनका घर उजड़ गया । ( व ) यह गाँव उजड़े गया । | मनानेवाला। उछिन्न --वि० [ से उच्छिन्न ! दे० 'उच्छिन्न' । उजड़वाना–क्रि० स० [ हि० उजडना की प्रे० का ] किन्नी को उछिष्ट -वि० [ स० उच्छिष्ट-दे० 'उच्छिष्ट्र' । उजाड़ने में प्रवृत्त करना । उजड़ा--वि० [हिं० उजड़ना] [वि० ख० उजड़ी] १. उजड़ा हुयी।