पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३२९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कलशी ६४३ कलहासे | केली -सा • [सं०] १. गगरी ! छोटा कलसा । २. मंदिर का ३०–ग्रोपितुतिका अरु बडिव । कलहंतरिता उत्कंठिती । | छोटा गूरा । ३. पृष्ठ । पिठदन ! ४. एक प्रकार का ---नंद० ग्न ०, पृ० १३९।। . वाडा, जिसे काशीमुख भी कहते थे । कलहस--संज्ञा पुं० [सं०]१ हुने ! २ राजन । उ०---कुंजत कहूँ कन- कॅलशीसुत--संज्ञा पु०सं०] कुलशी से उत्पन्न अगस्त्य ऋपि। हस कहूँ मज्जत पारावत 1-मारतेंदु ग्र ०, भा०२,१०४५६। ३. कोत--संज्ञा पुं० [स०] ३० ‘कलश' । ३०-कीरति कुल कलस अलस श्रेष्ठ राजा। परमात्मा । ब्रह्म । ५ एक वर्णवृत्त का नाम । तर्षि खेच सुनाम असेच सिविले गनि है ।-धनानद, पृ० ६०६। विप–इसमें प्रत्येक चरण में १३ अक्षर प्रवत् एक सगण, एक प्लसजोनि-संज्ञा पुं० [हिं० कलस+जोनि] दे० 'कलशयोनि' । जगण, फिर दो सगण और अंत में एक गुरु होता हैं। ३०-~-कलमुजोनि जिय जानेर नाम प्रतापु ।—तुरसी ग्र ०, सज ची सिगार कलहंस गति सी । अनि अाई राम छत्रि पृ० २४ । मडए दीठी । । कल सभव--संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'क्लशम' । उ०—अकनि कटु वानी ६. सकर जाति की एक रागिनी जो मधु, करविजय और कुटिल की शोध दिघ्य बढ़ाई। संकुचि सम भयो ईस अयम् भाभी के योग से बनती है ! ७ राजपूतो की एक जाति । कसनव जिव कोइ !-तुलसी (शब्द॰) । ३०-गहबार परिहार जो कुरे । ग्रौ कलहंस जो ठाकुर कलसरी'-सा मी० [हि० कलाई+सर] कुश्ती का एक पेंच । जुरे ।—जायसी (शब्द॰) । विशेप-इतमै विपक्षी को नोचे लाकर उसके मुंह की तरफ कलह-इश पुं० [३०] १. विवाद [ झगड़ा । उ०कलह कलपना बैठकर अपना दाहिना हाथ सामने से उसकी बाँह में डालकर । दुवै घना रहै भन भग ।-सहजो०, पृ० १९ । पीठ पर ले जाते हैं और दूवरे हाथ की कलाई पकड कर वाई यौ कलहप्तिये । शोर जोर करके चित कर देते हैं। २. ल हाई । युद्ध । ३. तलवार की म्यान ।४. पथ । रास्ता । नसरी–ज्ञा श्री० [हिं० फलसिरी दे० 'कलवरो” । उ०- कलहकार-वि० [सं०] झगड़ालू } झगड़ा करनेवाला। बीक। सो काल है फलसरी सी लपेट ले है ।—मनक०, कलहकारी - वि० [स० कलाहकारिन्] [वि॰ स्त्री० कलहकारिण] पृ० ३१ । । झगड़ा करनेवाला । झगडालू ।। केननवंदाना-क्रि ० अ० [सुं० लदा + वन्दन] विवाह में एक रीति कराहनी--वि॰ स्त्री० [सं० फाहिनी] ३० कलहिनी' । जिसमें त्रियां पानी भरे पड़े सिर पर रखकर शुभार्य ले जाती कलहप्रिय-~-सज्ञा पुं० [२०] नारद । हैं। ३०-प्रणव चाल्यो वसुलराव ! पच सुखी मित्रि कलहप्रिय’- वि० [वि० स्त्री॰ कलहप्रिया] जिसे लड़ाई मली लगे । कस वदावि ।----वी० रासो, पृ० १२ । | लडाका । झगडालू ।। कला-संज्ञा पुं० [३० फलसक] [छौ अल्पा० कासी] १ पानी कलहप्रिया-वि० चौ० [सं०] झगडालू । रखने का वरतुन । गगरा । घडा । उ०—जस पनिहारी कलस काहप्रिया--संज्ञा स्त्री० मैना । भरे भाग में आवै । कर छोड़े मुख वचन चित्त कलसा में कोहर-- सुज्ञा पु० [देश०] वनियो की एक जाति जो मध्य प्रदेश में लाव पलटू०, पृ० ४२ । २. मंदिर का शिखर ।। पाई जाती है। सार--संज्ञा पुं॰ [सं० कलाशा, हि० कलता] प्रवीन । उ०--- काही---सन्ना स्त्री० [हिं० फलार> कारो] दे० 'कलवारिन', सागर कोट जाके कनसार । छपन कोट जाके पनिहार !--- उ०—तव सुखसागर के बीच, फलहरी वं रह री --चरण० दरिया० बानी०, पृ० ४३ । वानी, पृ० १३७ ।। कासि - ज्ञा स्त्री॰ [सं०] दे० 'कनसी' क्वेि] । लहाना--क्रि० प्र० [स० कलाकलाय, प्रा० कलकल? या सं० कलसिया--सच्चा स्वी० [हिं० फलसोइय! (प्रत्य॰)] ६० 'कलुस । कोलाहल अर्यवा अनुध्व] कोलाहने या शोरगुल करना । ३०-- तश्तरी, प्याले, कनसिया, सिंगारदानी, डिदियौं : - उ०—एही भली न, करहला, कृनहलिया कइकाण !---ठोला० हिंदु० सभ्यता, पृ० २० । पृ० ६२७ । क्रमावि री-- ० [हिं० फाला+सिर] एक चिडिया जिचका कलहातरिता--संज्ञा स्त्री० [३० काहान्तरिता] अवश्यानुसार यिर काला होता है। नायिका के दम भेदों में से एक । वह नायिका जो नायक या कासिरी–वि० ख० हि० कलह +fसरी लड़की (स्त्री)। पति का अपमान कर पीछे पछताती है। ड़िा (स्त्री)। फलहारी-वि० सी० [३० फाहकार, हि० कलहार+ई (प्रत्य॰)] कैलास-सा सी० [चं०] १. छोटी गगरा। २. छोटे छोटे गुरे । कह करनेवाली । लडाको । झगडालू । कर्कयो । मदिर का छोटा शिखर या कॅगूरी। कलहास--सी पुं० [सं०] केशवदास के अनुसार हास के चार भेदों में भासुन-सुज्ञा पुं० [नु०] नई से उत्पन्न, अगम्त्य ऋषि । से एक जिसमें वोडो वोडो कोनुल और मधुर ध्वनि निकलती केलहरिता-संवा स्त्री० [सुं० केहान्तरिता]६० कलहातरित' । है जैसे,--बेहि सुनिए कनधुनि कछु कोमल विमल विलास । केशव तन नन नोहिए वरनत कृवि कलहाच (शब्द॰) ।