पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३२६

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कैलपवैलि झान' कालपक्षेति-.-सच्चा स्त्री० [सं० कंल्प +हि० वैलि] कल्पनता। कलबल- वि० अनु॰] अस्पष्ट (स्वर) । (शब्द॰) यो उ०—(क) कलपवेलि जिमि घडू विधि लाल। सीचि सनेह अन् ग अलग न मालूम से 1 गिलबिल । चु०-कलबल वर सलिल प्रतिपाली ।—मानस, २ । ५९ । (ख) सत्ता के सपूत अघर अरुनारे । दुई दुइ दसन विसद वर वारे |--तुलसी ते जगाई ‘मतिराम' हैं, लहलही कीरति कलपवेलि बाग हैं। १ (शब्द॰) । –मुति० ग्र २, पृ० ३८६ । । कुलवोर--संज्ञा पुं० [हिं० अकलवीर] ३० अकलबीर'। कुलपात--सी पुं० [सं० कल्पान्त) ३० 'कल्पात'। उ०---लघु कलबुद्ध –सझा पुं० [हिं० कलबूत दे० 'कबूत"। उ०—-हाई | जीवन सवते पचवसा । अलपात न नास गुमानु असा |-- मासे रुधिर की मोटरी एह कलबुद्ध बनायो । सं० दरिया, मानस, ७ । १० २। । पृ० १०० ।। कपाना–क्रि० स० [हिं० कलपना] दुखी करना । जी दुखाना। कुलवृत–सच्चा पै० [फा० कलबुद] १. ढाँचा । साँचा। उ०—-पूत | बरसाना। रुलाना । कलबुत से रहूँगे सर्व ठाले तर कछु न चलेगी जब दूत घरि कापून--संज्ञा पुं० [देश॰] एक सदावहार पेड़ जो उत्तरीय और पावैगो ।—दीन ग्रं, पृ० २४१ । ३ लकड़ी का ढाँचा पूर्वीय वगाल में होता है । जिसपर चढ़ाकर जुता सिया जाता है । फुरमा । ३ मिट्टी, विशेष—इसकी लकड़ी लाल रंग की और मजबूत होती हैं। यह लकडी या टीन का गुबदनुमा कडा जिसपर रखकर चौशिया घर बनाने में काम, अाती हैं और बड़ो कीमती समझी | या अठगोशिया टोप) या पगडी आदि बनाई जाती है । जाती है। गोलवर । कालिद ।। कुलपोटिया--सपा औ॰ [हिं॰ काला+पोटा] एक चिड़िया जिसका कलवृद —सच्चा पुं० [फा०,हालकुद या हि० कलबूत] ३० ‘कलबु' । पोटा काला होता है । उ०-पोच की तृत्त पचीस प्रीति है तीन गुन वध कलचूद फलप्प---सवा पुं० [सं० कल्पन, प्रा० कप्पण] काटना । काटने का दन्हिा |--से दरिया, पृ० ८३ । कायं । खडन । स०--साधन्ह सिद्धि न पाइअ जौ लहि क़लभ--सल्ला पुं० [सं०] [ी० कलमी] १.हाथी का बच्चा। उ०साध न सप्प । सोई जानहिं बापुरे जो सिर करहि कनप्प ।। उर मनि माल कवु कलग्रीवा । काम कलभ कर 'भुज बल •—जायसी ग्रं० (गुप्त), पृ० २०३ । सीवी ।—तुलसी (शब्द॰) । ३ हायी । ३. ऊँट का बच्चा। कलप्पासा पुं०[मल० कपी = नारियल] नीपिन लिए हुए सफेद -नायितीपत लिए हुए सफेद ४ धतूरा। रग की कडी वस्तु । नारियल का मोतीं । पालभक-सज्ञा पुं० [सं०] हाथी का बच्चा धे] । विशेष—यह भी कमी नारियल के भीतर मिलती है। चीन के कलभवल्लभ–सा पुं० [सं०] पीलू का पेङ । लोग इसे बड़े मूल्य की समझते हैं। कभी—सच्चा स्त्री० [सं०] १ हाथ या कैंट का बच्चा (मादा) । कुलफ-सुद्धा पुं० [सं० कल्प] पके चावल या आरारोट अादि की २ चेंच का पौधा । चनु । पतली ले ई जिसे कपड़ों पर उनकी तह की और बराबर कमल-सज्ञा पुं० सं० बी० [अ० कलम,, तुलतीय] १. सरक) की करने के लिये लगाते हैं। माँड़ी । कटी हुई छोटी छह या लोहे की जीभ लगी हुई लकड़ी का क्रि० प्र०--करना ।-वेना ।—लगाना । टुकडा जिसे स्याही मे डुवाकर कागज पर लिखते हैं । लेखनी । काफ-सा पुं० [देश॰] चेहरे पर का काला धब्बा । झाई । उ०—लिए हाथ मे कलम कुलम सिर करत अनेकन । कफदार—वि० [हिं० फलफ +फा० बार '(प्रत्य॰)] फुलफ या प्रेमघन, भा० १, पृ० १५ । मी लगा हुआ। कि० प्र०—चलना --चलाना - बन्ना बनाना । कलफा'---सा स्त्री॰ [देश॰] देशी दारचीनी की छाल । मुहा०-कलम चना, फेरना या मारना = लिखे हुए को काटना ‘विशेष—यह मलबार से माती है और चीन की दारचीनी में, कलम चलना=(१) लिखाई होनी " (२) कलम की का उसे सस्ता करने के लिये, मिलाई जाती है। पर अच्छी तरह खिसकना । जैसे,——यह कलम अच्छी नहीं कवफा–सा पुं० विश०] कल्ली। कोपल 1 नया अंकुर । 'चलती, दूसरी लाओ! कलम चलाना लिखना। इसमें कलव-सच्चा पुं० [देश॰] टेसू के फूलों को उबालकर निकाला है। तोना= लिखने की हद कर देना। अनूठी उक्ति हुन । ग। कलमबंद करना= लेखबद्ध करना। अलमबद =पूरा पूरा विशेष-+--इसमें कस्या, लोध और चूना मिलाकर अगरई 'रंग ठीक ठीका । जैसे,—कलमद सौ जूते लगेंगे। बनाते हैं । । यौ०-कलम कसाई। कलमखराश कलमदान । । । । २ किसी पेड़ की टहनी जो दूसरी जगह बैठाने या दूसरे पेड़ में केबिल'--:पुं० [सं० कला+अल] उपाय । दाँव पॅव जुगुत । पैवेदःलगाने के लिये काटी जाय । कुलाबल–सम पुं० [अनु॰] हल्ला गुल्ला । योर गुन । उ० कि० प्र०--करना ,-कराना -काटनाः।---लगाना । सखिने सहित सो नितु प्रति भावे । कलवल मुनि. के निकट । महा--कलम करना=काटा। उ०—लिए हाथ में कलम मादै ।--विषम (शब्द०)। । अवम् सिर - अनेक :-मन, १, ५५ १५ ।