पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३२४

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कलकान - कलकान--सच्चा सी[हिं० फलकानि] दे० 'कलुकालि' Nउ०-घर की कल घोष—सा पु० [सं०] कोयल (को]। * - श्रिया विमुख हो वेठी, पुत्र कियो कलकान - कवीर श०, कलचाला--वि० [सं० फलह+ हि० चीतयुद्ध में छेड़छाड़ करनेमा० १, पृ० ७ । । वाला । उ॰—हरिद तणा दल हाताल, ' कमॅधी दल कलकानि--सच्चा स्त्री० [म० कलक= रज] दिक्कत । हैरानी । । अगिल कृलचाला !--रा० रू०, पृ० १४१ । । दु ख । उ०—(क) नारी विनु नहि वोले पूत कुरै कलकानी । कलचिड़ी-सच्चा स्त्री० [हिं० काली= सुन्दर+चिड़िया][पु० कलचिड़ा घर में प्रदर कादर कोसो सीझत रैनि बिहानी ।--सूर एक चिडिया जिसका पेट काला, पीठ मटमैली और चोंच लाल (शब्द॰) । (ख) भूपाल पालन भूमिपति वदनेस नद सुजान। होती है। इसकी बोली सुरीली होती है । । । है। जाने दिली दल दक्खिनी कीन्हें महा कलकानि है ।- कुलची-सच्चा सी० [हिं० कंबा] कंजा नाम की केटीली झाड़ी ! सूदन (शब्द॰) । कलच-वि० दे० 'कजा । कलकी--सझा पुं॰ [सं० फल्कि] दे॰ 'कल्कि। उ०—अग्निकुड सों । कलचुरि- सच्चा पुं० [सं०] दक्षिण का एक प्राचीन राजवशं जिसके बुध भये जिन मुख निदा फोन । कलेकी असि सो जानिर्य अधिकार में कर्णाट, चेदि, दाल, मंडल मादि देश थे । म्लेच्छ हरन परवीन }---भारतेंदु ग्र०, 'मा० २, पृ० २३ । कलचोची--सबा पुं० [सं० काला+धोंच एक प्रकार का कुबूतर कलकीट-सज्ञा पुं० [सं०] १ एक कीडा । *. सगीत में एक ग्राम । जिसका सारा शरीर सृफेद और चोच काली होती है ? कलकूजिका--वि०, सी० [सं०] १ मधुर ध्वनि करनेवाली ! २ कलछा-सज्ञा पुं॰ [स० कर+रका, हि० करछा[ली अल्म कलछी] कुलटा । पुश्चली [को०] । | वडी डाँडी का चम्मच या वडी कलछी। कलकुणिका-वि० सी० [सं०] १ मधुर बोलनेवाली 13 पुश्चली [को०)। । कलछी--सच्ची सी[सं० कर+रक्षा चम्मच के प्रकार का लबी डॉ) कृलक्खि, लक्खी -सज्ञा पुं० [सं० कलक्षिक] मुर्गा । उ०—कृजन | का एक प्रकार का पात्र जिसका अगला भाग गोल कटो) अलि गुजन लगे कि य कलक्खिन सोर। सृजनी गत रजनी मई नीरजनी छवि अौर।स० सप्तक, पृ० ३८८ । के प्रकार का होता है और जिस पकाते समय ब्राउन हाल, कलक्टर'- सच्चा पु० [अ० कलेक्टर] माल का वडा हाकिम जिसके । तरकारी आदि चलाते या परोसते हैं । अधिकार में जिले का प्रबंध होता है। यह सरकारी मालगुजारी कलचुला–संज्ञा स्त्री० [हिं० कलछी] दे० 'कल छी'। वसूल करता है और माल के मुकदमो का फैसला करता है। कलचुला–सज्ञा पुं॰ [हिं॰ कला] लोहे का लुवा छह जिसके सिरे यौ–प्टिी कलक्टर। | पर एक कटोरा सा लगा रहता है। कलक्टर--वि० वसूल करनेवाला । जैसे—-टिकट कलक्टर, विल विशेष—इससे भारी में से गरम बालू निकालकर भभुबै चर्वना कलक्टर भूनते हैं। -- -. : कलक्टरी'-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० कलक्टर] १ जिले में माल के मुकदमो कृलुछली–सुज्ञा स्त्री० [हिं० कलछल] दे०-'कुनछी' -

६ | की कचहरी । २ कलक्टर का पद । कलक्टरी–वि० कलक्टर से सवध रखनेवाला । कलजिब्भा-वि० [हिं० फाला+जिल्ला या जीभ [ची कलजिब्भी] | २१ जिसकी जीभ काली हो । २. जिसके मुंह से निकली हुई कलख-- संज्ञा पुं० [अ० कलुष कलुपता । कालापन । उ०—मानो - कुछ भीतर कलखे हो रहा है !-सुनीता, पृ० १८५ ।। । अशुभ बातें प्रायः ठीक घढे -- .. : - कलगट-सझा पुं० [देश०] कुल्हाड़ी । । कृलजिभी-वि०सी० [हिं०काला> कले+जीभ> जिन+६(प्रत्य॰)] कला -संज्ञा पुं० [तु० कलगी] मरसे की तरह का एक पौधा । ३ ‘कुलजिमा। उ०--अब्बासी मेहरी ने सुन लिया तो । मुकेश । जटाधारी। ।।।। • माहिस्ते से मुंह पर एक थप्पड़ दिया क्यों हैं कुलजिमी । विशेष—यह बरसात में उगता है और क्वार कार्तिक में इसके फिसाना०, मा० ३, पृ० ४२७ । * * सिरे पर कलगी की तरह गुच्छेदार लाल, लाल फूल निकलते कलजीहा'---वि० [हिं० काला+प्रा० शी] दे० 'कलजिब्मा' ।। हैं । फूल चौड़ा चपटा होता है, जिसपर लाल लाल, रोएँ होते कलजीहा-सा पु० काली जीभ का हाथी जो दूषित सुमझा २ . २ ऊपर को जाते हैं, अधिक लाल होते हैं। यह । | जाता है। है, जोय. घोटी की तरह दिखाई देता है। कलजुग--सज्ञा पुं० [सं० कलियुग] दे॰ 'कलियुग । उ०—दिवस न । - देखने ३ वन में मुर्गे के । । } १. शुतुरमुर्ग आदि चिडियो के सुदर पंख , भूख न नहीं सुख है, जैसे कलजुग जाम - कबीर : °ि [फा० ठिी या ताज पर लगाते हैं और जिसमें , भा० १, पृ०७४। जो लोग भी पिरोए जाते हैं । २. मोती या कलझंवा-वि० [हिं० काला+मई] काले मुंह का । साँवला । जैसे, भी छोटे •• का एक गहना । ३ चिडियो के सिर, इस कलझुवै मुह पर यह लेसदार टोपी । । । नी दुआ ' या मुर्गे के सिर पर होती है। ४ कृलट-सज्ञा पुं० [सं०] मकान की छाजन (को०] । टो, जैसी मोर ,नेवाला तु । ५. किसी कैची कलटोरा--सच्चा , पुं० [सं० कात= काला + हि० ठोर= चोव]बहु । _ f का एक ढग । : कबूतर जिसका सारा शरीर सफेद हो, पर वोचः काली हो । कट्टर --सा पुं० [अ० तेक्टर] दे० 'अवक्र '। ५। कलगी-सा भी० [फा० हिंी या सोने का बना हुआ fat 1 }) पर की चोटी, जैसी मोर टोपी था पगड़ी में लगाया ज इमारत का शिखर । ६. यो०-फसगीवाद ।