पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३१८

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कर्मचडलिं कर्मत्र, कर्मगृहीत--वि० [सं०] जो चोरी अदि अनुचित और दंडनीय कार्य कर्मधारय समाम -संज्ञा स्त्री० [सं०] वह समास जिसमे विज्ञपण | करते हुए पकड़ा जाय [को०] । और विशेष्य का समान अधिकरण हो, जैसे, कचलहू, नवट, कर्मघात–संज्ञा पुं० [सं०] कर्मक्षय ! काय स्थगन को । नवयुवक, नवाकुर चिरायु । कर्मचाडाल सुज्ञा पुं० [स० कर्मचाण्डल] नीच कार्य करनेवाला विशेप-हिदी में कर्मधारय समास बहुत कम होता है क्योंकि व्यक्ति । नीच कार्य करने के कारण चाडाल माना जाने इसमें विशेष्य के साथ विशेषण में भी विभक्ति लगाने का वाला व्यक्ति । साधारणत नियम नहीं है। विशेष-~-वशिष्ठ के अनुसार कर्मचाडोल ये हैं--असूयक, पिशुन, । कर्मना'G --- क्रि० वि० [स० कर्मणा दे० 'कर्मणा' ।। कृतघ्न और दीर्घरोपक (बहुत समय तक रोष मानने वाला !) । कर्मना' ---क्रि० स० [स० कर्म + हिं० ना (प्रत्य॰)] कर्म करना । कर्मचारी-- संज्ञा पुं० [सं० कर्मचारिन्]१. काम करनेवाला। कार्यकर्ता क्रिया करना । उ०--जुग जुग भमिया कर्भ बहू कमिया - २ वह जिम्के अधीन राज्यप्रबंध या और किसी कार्य य से कवीर रे, पृ० १८ । संवंध रखने वाला कोई कार्य करता हो । कर्मचारीसघ–सुझा पुं० [सं०] कर्मचारियों का ऐसा सघटन जो उनके . कर्मनाशा-- संज्ञा स्त्री॰ [सं०] एक नदी जो शाहाबाद जिले के कैमोर हितों की रक्षा के लिये कार्य करता है। | पहाड़ से निकलकर चौसा के पास गग) में मिलती है । कर्मचेष्टा - सच्चा स्त्री० [सं०] कायं । कर्म किो०) । विशप-लोगों का विश्वास है कि इसके जल के स्पर्श से पुण्य कमंचोदना - संज्ञा पुं० [सं०] कर्म की प्रेरणा करनेवाला हेतु। कर्म का क्षय होता है। कोई इसका कारण यह वदलाते हैं कि की प्रेरणा । यह नदी शिकु राजा की लार से उत्पन्न हुई है, कोई कहते कर्मज'- वि० [सं०] कर्म से उत्पन्न । २. जन्मांतर में किए हुए। हैं कि रावण के मूत्र से निकली है । पर कुछ लोगों का यह | पुण्यपाप से उत्पन्न । मत है कि प्राचीन काल में कर्मनिष्ठ प्रायं प्राह्मण इस नदी कमंज-सज्ञा पुं० [सं०] १ कलयुग । २ वट वृक्ष । ३ वह रोग जो को पार करके कीकट (मगध) और बंग देश में भी नहीं जाते जन्मातर के कर्मों का फल हो । जैसे,—क्षयो। थे ! इसी से यह अपवित्र मानी गई है। कर्म जित्--संज्ञा पुं० [सं०] १ मगध का जरासंघवशी एक राजा । कर्मनिष्ठ--वि०स०]शास्त्रविहित कर्मों में निष्ठा रखनेवाला । सघ्या, २ उड़ीसा का एक राजा । अग्निहोत्र आदि कर्तव्य करनेवाला । क्रियावान् । कर्मजीवन-सज्ञा पुं० [सं०] कर्ममय जीवन । वह जीवन जो कर्म से कर्मनिष्पत्तिवेतन--संज्ञा पुं० [सं०] १ काम की अच्छाई चुराई के परिपूर्ण या सकुल हो। उ०--मैदकर कर्मजीवन के दुस्तर। अनुसार वैन । ३ वह वेतन जो काम पूरा होने पर दिया कले श सुपम अाई ऊपर !-अनामिका, पृ० ८७ । जाय [को०] । कर्मठ:--वि० [सं०]१ काम मे चतुर । २ धर्म सवधी कृत्य करनेवाला । कर्मनिष्पाक-सच्चा पुं० [सं०] मेहनती मजदुरो से काम को अंत तक नाक कर्मनिष्ठ । | पूरा करवाना। कर्मठ:--सङ्ख्या पुं० १. शास्त्रविहित अग्निहोत्र, सध्या श्रादि नित्य कर्मों | कर्मनी –वि० सं० फर्मस्य कर्मवाली। कर्म से सवध उ०-- को विधिपूर्वक करनेवाला व्यक्ति । २ कर्मकाडी । उ०---- कर्मनी नदी पै मर्मनी ताल है, ताल के बीच में रहूत अरना । कर्मठ कठमलिया कहैं, ज्ञानी ज्ञानविहीन ।--तुलसी (शब्द०)। कर्मणा---क्रि० वि० [सं० कर्मन् का तृतीया एफ०] कम से । कर्म । --पलटू॰, भा॰ २, पृ० ३१। द्वारा । जैसे,----मनसा, वाचा, कर्मणा मैं तुम्हारी से । कर्मन्यास -सञ्ज्ञा पुं० [सं०] धर्मकृत्यों के फल का परित्याग (को०] । के गा। उ०—-जव मनसा होगा तव न कर्मण होगा? -- कुमंपच्मी -सच्चो वी० [सं० कर्मपञ्चमी] ललित, वसत, हिडन अर साकेत, पृ० २१६ । देशकार के संयोग से बनी हुई एक रागिनी । कर्मण्य'--वि० [सं०] काम करनेवाला । कायं मे कुशन । उद्योगी । कर्मपाक-सा पु० [सं०] १ पूर्व जन्म में किए गए कम, का फल । प्रयत्नशील ।। २, कर्मों की पूर्णता (को०] । कर्मण्य'- सज्ञा पुं० कर्मण्यता । कार्यनिष्ठा 1 सक्रियता को०] । कर्मप्रधान—वि०स०]१ जिसमे कर्म की प्रधानता हो । २ वहिदूष्टि कर्मण्यता-संज्ञा स्त्री० [सं०] कार्यकुशलता। तत्परता । रखनेवाला (को०] ।। कर्मण्या सच्चा श्री० [सं०] पारिश्रमिक ! मजदूरी [को॰] । कर्मप्रधान क्रिया-सच्चा स्त्री० [सं०] व्याकरण में वह क्रिया जिसमें कमत -- क्रि० वि० सं०] कर्म से । कुर्म द्वारा [को॰] । कम ही मुख्य होकर कर्ता के समान आता है और जिसका लिगकमदेव - सय पुं० [सं०] १ ऐतरेय और वृहदारण्यक उपनिषदों के वचन उसी कर्म के अनुसार होता है । जैसे, वह पुस्तके अनुसार देवताओं का एक भेद ।। पढ़ी गई । विशेष—इसमे तैतीस देवता हैं---अष्टावसु, एकादश रुद्ध, द्वादश सूर्य, कर्मप्रधान वाक्य--संज्ञा पुं० [सं०] वह वाकये जिसमे कमें मुख्य रूप तथा इद्र प्रजापति। इनका राजा इद्र और प्राचार्य बृहस्पति से कत की वह माया हो । जैसे,—गुस्तक पढ़ी जाता है । हैं। ये लोग अग्निहोत्र आदि वैदिक कर्म करके देवता हुए थे। कर्मफल--सज्ञा पुं० [सं०] पूर्वजन्म मे किए हुए कर्मों का फल २७ पुण्य कामों से देवपद प्राप्ति । दुःख सुख आदि ।