पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३१६

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फतृत्व कर्म कतृत्व--सज्ञा पुं॰ [सं०] कर्ता का भाव । कर्ता का धर्म । दक्षिण का एक पर्वत । ३ कपडे का टुकड़ा या पट्टी(को०) । | यौ०-..-कर्तृत्वशक्ति= करने का सामर्थ्य । कार्य करने की शक्ति । ४ मटीला या लाल रंग का परिधान(को०) । ५ कपडा(को०)। कृतृप्रधान क्रिया-सज्ञा सी० [भ] वह कि जिसमे कर्ता प्रधान कपैटिक--सज्ञा पुं० [सं०] [ी० कपंडिका चिथडे गुदद्देवाला हो, जैसे,—खाना, पींना, करना अादि । भिखारी। भिखमंगा ।। विशेप---खाया जाना, पीया जाना, किया जाना आदि कर्मप्रधान कर्पटी-सज्ञा पुं० [स० कर्पटिन्] [स्त्री० फपटिनी चियडे गुद? क्रियाएँ हैं। | पहनने वाला, भिखारी । कर्पण-मझा पुं० [सं०] एक प्रकार का शस्त्र । कतृप्रधान वाक्य- -सज्ञा पुं० [सं०] वह वाक्य जिसमे कई प्रधान रूप । कर्पर--सज्ञा पु०[सं०]१ कपाल । खोपड़ी। २. खप्पर । ३. कछुए । | से आया हो, जैसे,—यज्ञदत्त रोटी खाता है । की खोपडी । ४ एक शस्त्र ] ५ कडाह। ६ गूनर। फतृवाचक-वि० [सं०] कर्ता का बोध करानेवाला । कर्पराल संज्ञा पुं० [सं०] पीलू का पेड़ । कर्तृवाची--वि० [सं०] जिससे कत का वोध हो। कर्परी-सच्चा स्त्री० [सं०] दारुहलदी के क्वार्थ से निकला हुआ कर्तृवाच्य क्रिया-सज्ञा पुं० [सं०] वह क्रिया जिसमें कत का वोध | तुतिया। खपरिया।। प्रधान रूप से हो, जैसे, खाना, पीना, मारना। कर्पास--सज्ञा पुं० [सं०] कपास । विशेष-- खाया जाना, पीया जाना, मारा जाना आदि कर्मप्रधान । कपसी--सच्चा सी० [सं०] कपास का पौध' । कियाएँ हैं। कपूर-संज्ञा पुं॰ [सं०] कपूर । कृत्रिका, कत्र--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ चाकू । २ केची [को०] । कपूरक - सच्चा पुं० [सं०] कचूरक । कपूर कचरी । कर्द-सज्ञा पुं० [सं०] १ कर्दम । कीचड। २. मिट्टी (को०)। ३ । कपूरगौर--वि० [सं०] कपूर की तरह सफेद । कमल की जड़ (को०)। ४ जल की लताविशेष (को०)। रगौरा-सज्ञा स्त्री० [सं०] सकर जाति की एक रागिनी जो ज्योति, कट---सज्ञा पुं॰ [सं०] १ कलम की जड़ । पद्मकंद । २. कीचडे । कर्दम (को०)। ३ मिट्टी (को०)। ४ जल में होनेवाली लता खवावती, जयती, टक और वाटी के योग से बनी है। विशेष (को॰) । कपूरनालिका-सच्चा पुं० [सं०] एक पकवान । कर्दट-वि० कीचड़ में चलनेवाला। विशेष—यह मोयनदार मैदे की लवी नली के आकार की लोई में कर्दन--सज्ञा पुं० [स०] पेट का शब्द । पेट की गुड़गुड़ाहट । लौंग, मिर्च, कपूर, चीनी अादि भरकर उसे घी में चलने से वनता हैं। कर्दम--संज्ञा पुं० [सं०] १ कीचड़। कीच । चला । २ मास । रमणि-सच्ची पुं० [सं०]१. एक प्रकार का पत्थर जो दवा के काम ३ पाप 1४ छाया । ५. स्वायंभुव मन्वंतर के एक प्रजापति । | अता है । यह वातनाशक है । २. एक रत्न (को०) । विशेष –इनकी पत्नी का नाम देवहूति और पुत्र का नाम वति, कपूरवतका--सज्ञा स्त्री० [सं०]प्राचीन समय में घी और कपिलदेव था । ये छाया से उत्पन्न, सूर्य के पुत्र थे, इसी से कपूर का चूर्ण मिलाकर कपडे मे रखकर और लपेटकर बनाई इनका नाम कदम पड़ा था। हुई वत्ती जिसे जलाने पर कपूर की सुगध निकला करती थी। कर्दमक–सुज्ञा पुं० [सं०] १ एक प्रकार का चावल । २ साँप का । कपूर की बत्ती। उ-बँधकर घलना अथवा, जल पल दीप दाने एक भेद [को०] । कर खुलना, तुझको सभी सहज है मुझको करवत, असे कर्दमाटक-संज्ञा पुं० [सं०] मल फेंकने का स्थान [को०] । घुलना ।—साकेत, पृ० ३१६ । कर्दमित–वि० [सं०] कीचड्युक्त । कीचड़ से लथपथ [को॰] । कपूरश्वेत–वि० [सं०] कपूर की भाँति सफेद । अस्पत उज्वल । कर्दमिनी-सच्चा लो० [सं०] कीचडवाली घरती । दलदली जमीन । उ०—कपूरश्वेत मधु की किन्नर देश में वडो महिमा हैं - कर्दमी–सच्चा स्त्री० [सं०] चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि [को०] । किन्नर, पृ० ७८ । कर्न --सञ्ज्ञा पुं० [सं० कर्ण] दे॰ कर्ण' । उ०—-हरि कल्याण कर्न कर्फर---सज्ञा पुं० [सं०] दर्पण । अरसी । शीशा । अाईना । कुदन विद से सुजान०, पृ० १ ।। कफ्यू --संज्ञा पुं० [अ० कप यू] ६० 'करफ्यू' । कबुदार--सज्ञा पुं० [सं०] १ लिसोडा । २ सफेद कचनार । ३ तेदू कैफूिली–सझा जी० [स० कणं + हिं० फूल] पूर्वी बगाल की | का पेड़ जिससे मानूस निकलता है । एक नदी । कबर'- सी पुं० [सं०] १ सोना ! स्वर्ण । २. धतुरा । ३ जल । विशेष- यह अासाम के पहाड़ों से निकलकर बगाल की खाड़ी। ४ पाप 1 ५ राक्षस । ६ जड़हन धान । ७ फचूर । मे गिरती हैं। चटगाँव नगर इसी के किनारे धसा है ।। कबूर-वि० नाना वण का । रगबिरंगा । चितकबरा । कर्नल-सज्ञा पुं॰ [अ॰] एक फौजी अफसर । कबुरा सच्चा सी० [सं०] १. वननुलसी । बबरी । २ कृष्णतुलसी । क्वता (करनेता)-सज्ञा पु०[देश॰] रग के अनुसार घोड़े का एक भेद । कब री--सज्ञा स्त्री० [सं०] गई। । उ०—कारूमीसदली स्याह करनेता रूना ।—सूदन (शब्द॰) । कर्म द—सज्ञा पुं० [सं० कर्मन्व] भिक्षु सूत्रकार एक ऋपि । कर्पट–सुझा पुं० [सं०] \१ पुराना चिथडा। गूदढ़ । लत्ता । २. कर्म-सा पुं० [सं० कर्मन् का प्रयमा रूप] १ वह जो किया जाये ।। कालिकापुराण के अनुसार नाभिमडल के पूर्व और भस्मकूट के । झिया । कार्य । काम । करनी । करतूत।