पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३१५

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कणिकाचल ४२९ कर्तृक 11 पैड । ६ मेढासीगी। 5. कैलम् । लेखनी । १० इठले जिनमे एक । इसमें करण स्वस्विक रेवकर फिर उसे खोलते हुए फुल लगा रहता है। उछन् कर तिरछे गिरते हैं । कणिकाचल-सच्चा पु० [सं०] सुमेरु पर्वत [को०] । कतरी-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ केची । कतरनी। २ (सुनारो की) कणकार-संज्ञा पुं० [सं०] १ कनियार या कनकनपा का पेड । वाती । ३ छोटी तलवार। छुरी। कटारी । ४. तान देने का उ०— सहज मातृगुण गघ यो कसकर का भाग । विगुण रूप एक वाजा । ५. फलित ज्योतिष का एक योग । जव दो क्रूर दृष्ट्रात के अर्थ न हो यह त्याग ।-साकेत, पृ० २६१। २. ग्रहो के बीच में चंद्रमा या कोई लग्न हो, तब कनंरी योग एक प्रकार का अमलतास जिसका पेड़ बड़ा होता है। इसमें होता है। इससे कन्या को मृत्यु और अपना वजन होता है। भी अमलतास ही की तरह की लव लवी फलियाँ लगती हैं ६. वाण का वह भाग जहाँ पख लगाया जाता है (फो०] । जिनके गुदे का जुलाव दिया जाता है। वैद्यक मे यह सारक कर्तरीफल- सज्ञा पुं० [सं०] के ची या छुरी का फल (को०] । और गरम तथा कफ, शूल, उदर रोग, प्रमेह, व्रण और गुल्म कर्तव्य-वि० [सं०] करने के योग । करणीय । को दूर करनेवाला माना जाता है। कर्तव्य-सज्ञा पुं० करने योग्य कायं । करणीय कमं । उचित कर्म । कणकारप्रिय-संज्ञा स्त्री० [सं०] शिव को०] 1 | घमं । फर्ज । जैसे,—वडो की सेवा करना छोटो का कर्तव्य है। क'-- सज्ञा स्त्री॰ [स०] १. एक प्रकार का वाण । २. चौर्य शास्त्र क्रि० प्र०-फरना - पालन करना ।-7लिन । के कर्ता की माता (को०) । ३ कस की माता का नाम (को॰) । यौ॰—कर्तव्याकर्तव्य = करने और न करने योग्य कर्म । उचित कम । कर्णी, राज्ञा मुं० [सं० कणिन्] १ वाण । तीर । २ सप्तवर्ष पर्वतो। और अनुचित कर्म । योग्य अयोग्य कार्य । जैसे,—बहुत से में से एक । सप्तवर्ष पर्वत ये कहलाते हैं-हिमवान, हेमकूट, अधिकारियों को अपने कर्तव्याकर्तव्य का ज्ञान नहीं होता। निपद, मैरु, चैत्र, कf, शृी । ३. गधा (को०)। ४, गर्भाशय कर्तव्यता--संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ कर्तव्य का भाव । का एक रोग (को०) । ५ कर्णधार (को०)। यौ०-इतिकतव्यता= उद्योग या प्रयत्न की पराकाष्ठा। कोशिश कण..-वि० १ कानवाला । २ बड़े बड़े कानवाला। ३. जिसमे या कार्रवाई की हद । दौड । जैसे,—उनकी इनिफतव्यता पतवार लगी हो । यहीं तक यी ।। करिय-- संज्ञा पुं० [सं०] स्त्रियों की सवारी में काम आनेवाली | २ कर्तव्य कराने की दक्षिणा । कमकाड को दक्षिणा । | हो । पालकी ]ि ।। कर्तव्यमूढ, कतृ विमूढ-वि० [स० कर्तव्यमूढ़, कर्तव्यविमूढ़| कसुत-सज्ञा पुं० [सं०] चौयं शास्त्र के प्रवर्तक मूलदेव [को०] । [संज्ञा कर्तव्यमढ़ता, कर्तव्यविमूढ़ता] १ जिस यह न सुझाई कर्णजप'- सञ्च पु० [स०] पीठ पीछे लोगो की निंदा करनेवाला दे कि क्या करना चाहिए। जो कतृव्य स्थिर न कर सके । २. व्यक्ति । धीरे धीरे कान में लोगो की चुगली खानेवाला व्यक्ति। घबराहट के कारण जिससे कुछ करते धरते न बने । चुगुलखोर । पिशुन । भौचक्का ।। कणजप-वि० निदक। चुगलखोर । पिशुन (को०]। क'–सस पुं० [सं० ‘कतृ] को प्रयमा का एक०] [स्त्री० कत्र कर्णोपकणिका-सज्ञा स्त्री० [सं०] एक कान से दूसरे कान में बात का १ करनेवाला । काम करनेवाला । २ रचनेवाला । बनाने| जाना । कर्णपरपरा । अफवाह ) जनश्रुति [को॰] । वाला । ३. विघाता। ईश्वर। उ०—मेरे मन कछ और है। कण्यंगण-सज्ञा पुं० [सं०] कानो के लिये हितकारी पधियो का कत के कछु यौर (शब्द॰) । ४ परिवार का, विशेषत सयुक्त समूह, जिसके अंतर्गत तिलपण, समुद्रफेन, कई समुद्री कीडो परिवार का वह व्यक्ति जो घर का सब उत्तरदायित्व वहन की हड्डियाँ प्रादि हैं। करता है और परिवार की ओर से वैधानिक रूप से भी कार्य कर्तन--संज्ञा पुं० [सं०] काटना । कतरना । जैसे, केशकर्तन । कर सकता है। परिवार का प्रबंधक व्यक्ति । ५. व्याकरण के २ (सूत इत्यादि) कातना । छह कारकों में पहला जिससे क्रिया के करनेवाले का ग्रहण कर्तनी- सच्चा श्री० [सं०] कतरनी । कैची। होता है। जैसे --यज्ञदत्ता मारता है। यह मारने की क्रिया को करनेवाली यज्ञदत कर्ता हुआ । कर्तव –सुझा पु०स० कर्तव्य]दे० 'करतब । उ०—जिस समय वह कर्ना.-- वि० करनेवाला । क्रिया का करनेवाला । जिससे क्रिया का अपने 'वनवेग’ घोडे को किले के मैदान में फेरकर अपना कर्तब संबंध हो । दिखाता है, उस समय और राजकुमार-""चकित हो, चित्रे कतवर्ता-सा पुं० [सं०] १ सब कुछ करने घरनेवाला व्यक्ति । वह वन जाते हैं ।-श्रीनिवास में २, पृ० ७ । व्यक्ति जिसे सब कुछ करने धरने का अधिकार हो (ले०] । तंरि--सच्चा श्री० [सं०] दे॰ 'कर्तरी । कर-ज्ञा पुं० [सं० ‘क’ का प्रयनी का बहु०] १. करनेवाला। कतंरिअचित-सज्ञा पुं० [सं० कर्तरिमञ्चित] नृत्य में उत्प्लुतकरण के बनानेवाला। २ विघाता। ईश्वर । १६ भेदों में से एक जिममें चरण स्वस्तिक रचकर उछलते हैं। कुतृ-सज्ञा पुं० [सं०] [वी० फत्र]१ करनेवाला । १ वनानेवाला । कतंरिका-सच्ची स्क्री० [सं०] दे० 'कर्तरी । कता। कतंरिप्रयोग- सूझा पुं० [सं०] व्याकरण में कर्ता के पुरुष, लिंग और कतृक-वि० [सं०]१ किया हुआ । संपादित । बनाया हुआ । जैसेवचन के अनुसार क्रिया का प्रयोग किये। हुपंक क य माघकतृक । २. किसी की ओर से कुछ करने करोड़ी-सा भी० [सं०] उस्लुतकरण । ३६ भेदों में से वाला (को०)।