पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३१२

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कर्कदा ८२६ कर्कटा-सच्चा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की लता जिसमें करेले की तरह कक-सया पुं० [सं०] कर्क राशि ।। के छोटे छोटे फल लगते हैं, जिनकी तरकारी बनती है। कर्केतन–सा पुं० [सं०] एक रत्न या बहुमूल्य पत्थर। जमुरंद । ककोडा । खेखसा । विशेप---कर्केनन या जमुरंद हरे या नीले रग का होता है। अच्छा ककटी-सच्चा स्त्री० [सं०] १ कछुई । २ ककडी । ३. सेमल का फल जमुरंद दूर के रग का और विना सूत का स्वच्छ होता है। ४ सपि । ५ घडा । ६ बँदाल की लता । ७. तरोई । ८, जमुरंद से बिल्लौर कट जाता है। जमुरंद को काटने के लिये काक है सीगी । नीलम और मानिक की आवश्यकता होती है। इसको घिसने कर्क-सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार के सारसे (को०] । से इसमें से एक प्रकार की चमक निक नती है । दक्षिण भारत कर्कर'--संज्ञा पुं० [सं०] १ ककडे । २ कुरज पत्थर जिसके चूर्ण में कोयम्बटर के पास इसकी खान है । यह और जगह भी की सान' बनती है । ३ दर्पण । ४ नीलम का एक भेद । ५. नीलम और पन्ने के साथ मिलता है। भारतवर्ष के अतिरिक्त हथौडा (को०) । ६ खोपडी का टुकड़ा (को०) । ७ चमड़े की सिंहूल, उत्तर अमेरिका, मिस्र रूम (यूराल पर्वत), ब्राजिल पट्टी (को॰) । आदि स्थानों में भी यह होता है। जिस कर्केतन में सूत होती कर्कर - वि० १ का १ करो।। २ खुरखुरा । है अयत जो बहुत स्वच्छ नहीं होता और मटमैले रंग का होता कर्कराग-संज्ञा पुं० [सं० कर्कराङ्ग] ख जनपक्षी [को०] । हैं, उसे लसुनिया कहते हैं। कर्कराचुक-सज्ञा पुं० [सं० कर्करान्धुक] अघकूप । अधा कु । सूखा कर्कतर--संज्ञा पुं० [सं०] कर्केतन या रत्न । जमुरंद । । हुअा कुअाँ [को॰] । कर्कोट, कर्कोटक-सज्ञा पुं० [सं०]१ देलु को पेड । २ खेसा । कर्करा - सज्ञा पुं० [भं०] तिरछी चितवन । कडा (को॰] । ककोडा । ३ एक राजा का नाम । ४ काश्मीर का एक कर्कराल–सुशा पुं० [सं०] वानो का जूडा (को०] । राजवश । ५. पुराण के अनुसार अाठ नागो में से एक नाग का कर्करो सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ पानी का एक घडा, जिसके पद से छेद नाम । ६ ईख । हो । २ एक प्रकार की वसुरी । ३ । एक प्रकार का कुर्कोटी--सा स्त्री० [सं०] १ घनतोरई । २. खेबसी । ककोड़ा । ३ पौवा [को०] । देवदाली । वेदाल ! कर्करे--संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का सारस । करकरा । चरिका-सुज्ञ मी० [सं०] कचौडी । वेढई । वेढ़वौ । कर कटिया । । कच- सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की चिडिया । कर्कश'--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ कमीले का पेड । २. ऊख । ईख । ३ कचूर----सा पुं० [सं०] १ सोना । सुवर्ण । २. कपूर । नरकचूर । खग । तलवार। कचे रक-- सवा पुं० [सं०] हल्दी [क्वे) ।। कर्कश... वि० [सञ्चा कर्कशता, कर्कशत्व, फार्कश्य] १. कठोर । कट्टा । कर्ज-सज्ञा पुं० [अ० कर्ज ] ऋण । उधार। यौ०–ककश स्वर = क ही आवाज । कानों को अच्छा न लगने क्रि० प्र०---अदा करना ।—करना ।--कढ़ना ।—खाना ।:वाला शब्द । चुकना --चुकाना ।—देना ।—पटना [-पटना ।२ खुरखुरा । काँटेदार । ३ तेज 1 तीव्र 1 प्रकड । ४. अधिक । लेना ।—होना । ५ कठोरहृदय । क्रूर । ६. दुराचारी (को०) । ७. बलिष्ठ । मुहा०--कर्ज उतारना = कर्ज देना या चकाना। उधार वेबाक हट्टा कट्टा (को०)। ६ दुश्चरित्र (को॰) । करना । कर्ज उठाना= ऋण लेना 1 ऋण का वोझ ऊपर कर्कशता- सज्ञा स्त्री० [सं०]१. कठोरता । कडापन । २ खुरखुरापन । लेना । कजं खाना=(१) कर्ज लेना । (२) उपकृत होना । कर्कशत्व--संज्ञा पुं० [सं०] १ कडापन । २ खुरखुरापन । ददायल होना । वश में होना । जैसे,—क्या हमने तुम्हारा कर्कशा'- सी सी० [सं०] वृश्चिकाली का पौधा । कर्ज खाया है, जो अखि दिखाते हो ? फर्ज खाए बैठना= दे० कर्कश'--'व० सी० झगडालु । झझटी । झगड़ा करनेवाली । ‘उच्चार खाए वैठना' । | लडाकी । कटुभाषिणी ।। यौ--कर्जदार। कर्कशिका--सृज्ञा स्त्री० [सं०] जगली वेर (को०] । कर्जखाह--सञ्ज्ञा पुं० [अ० कज' +फा० स्वाह= चाहनेवाला] वह कर्कशी--सच्ची चौ० [सं०] दे० 'कर्क शिका'। जो किसी से कर्ज लेना चाहता हो । ऋण लेने की इच्छा कर्कस -- वि० [सं० कर्कश] कठोर । असह्य । उ०—ककैश पवन । रखनेवाला । | गुहा ते ऐसो । अति अजगर मुख ते जैसो ।-नद० अ०, पृ० कर्जदार- वि० [अ० कज'+ फा० दार] उधार लेनेवाला । ऋणी । २६१ । कर्जा-संज्ञा पुं० [अ० कर्ज दे० 'कर्ज'। कर्कटकशृग--सच्चा पुं० [सं० फर्काटकङ्गिन्] वह असहत व्यूह कर्जी–वि० [अ० कज़ +हि० ई (प्रत्य॰)] ऋणी । कर्जदार । जिसमे तीन भाग अर्धचंद्राकार असहत हो। ऋणग्रस्त । कर्करु-सज्ञा पुं० [सं०] भरा कुम्हूडा। रसवा कुम्हड़ा। पेठ । । कर्ण--सूझा पुं० [सं०] १. कान । श्रवणेंद्विय । २. कुती का सव से कर्कारुक-सज्ञा पुं० [सं०] वरवूज । हिनृवाना । । बडा पुत्र । 11*