पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

! १ फवक । इच्छिन्नसंधि ५४५ उच्छवासित जैसे-यहाँ के पौधे सव उच्छिन्न कर दिए गए। ३ निमूल । उच्छ खलता-सज्ञा स्त्री० [सं० उच्छृङ्खलता] उच्छृखल होने का नष्ट । जैसे----चार पीठ के पीछे वह वश ही उच्छिन्न हो । भाव । निरकुशता । उ०—वह अविकार गहन-सुख-दुग्ध-गृह, गया । उ०—यदि नियम न हो, उच्छिन्न सभी हो कवके । वह उच्छृखलता उद्दाम ।--अपरा, पृ० ११० । - साकेत, पृ० २१३ ।। उच्छतप--वि० [सं०] उच्छेद के योग्य । उखाडने के योग्य । निमू ल उच्छिन्नमधि-सवा स्त्री॰ [H० उच्छिन्नसन्धि] वह सधि जो उपजाऊ करने के योग्य । या खनिज पदायाँ से परिपूर्ण भूमि का दान करके की जाय । विशेप-राजनीति और धर्मशास्त्र में राजा के चार प्रकार के उच्छिलीध-संज्ञा पुं० [सं० उच्छिलीघ्र] कुकुरमुता या रामछाता जो शत्रु माने गए हैं। उनमें से अच्छेतव्य वह है जो व्यसनी और बरसात में भूमि फोड़कर निकलता है। छत्रक । सेना दुर्ग से रहित हो तथा जिसके वश में न हो । उच्छिष्ट-वि० [सं०] १ किसी के खाने से बचा हुआ। जिसमें खाने उच्छेत्ता-वि ०[रा० उच्छेत्त] उच्छेद करनेवाला। नाशक । विध्वंसक । के ये किसी ने मुह लगा दिया हो। किसी के आगे का वचा उच्छेद- संज्ञा पुं० [सं०] १ उखाड़ पाई। विश्लेपण ! खडन । हुश्रा (भोजन)। जूठी । जैसे--- वह किसी का उच्छिष्ट भोजन १ नाश । नहीं खा सकता। क्रि० प्र०—करना ।- होना। विशेप-धर्म शास्त्र में उच्छिष्ट भोजन का निषेध है। यौ०--लोच्छेद ।। २ दुनरे का बत हुग्रा । जिसे दूसरा व्यवहार कर चुका हो । उच्छेदन-सज्ञा पुं० [सं०] ३० ‘उच्छेद' । ३ जुठे मुहवा । जिसके मुख में जूठन लगी हो (को०) । ४ उच्छेदवाद---संज्ञा पुं० [सं० उच्छेद+वाद = सिद्धात] [वि॰ उच्छेद- परित्यक्त । छोडा हुप्रा (को०) । ४. एक दिन पूर्व का । वादी] अात्मा के अस्तित्व को न माननेवा न दार्शनिक सिद्धात । वासी (को०)। उच्छेदित-- वि० [सं० उच्छेद+इत (प्रत्य॰)] १ खडित । २ उत्पा- उच्छिष्ट-सच्चा पुं० १ जूठी वस्तु । २ मधु । शहद ।। टित । ३ विनाशित। उ०- हम उन्मूलित हैं, उच्छेदित इम उच्छिष्ट गणेश- सज्ञा पुं० [सं०] गणपति का एक तत्रोक्त रूप [को०)। जगती के रजत०, पृ० ३२ । उच्छिष्ट चाडालिनी-सच्चा ली० [म०] मातगी देवी (को०] । उच्छेदी-वि० [सं० उच्छेदिन् | उच्छेद या विनाश करनेवाला । उच्छिष्ट भौका-वि० [मृ० छिटभोक्त] उच्छिष्ट या परित्यक्त वस्ने उच्छेप-ज्ञा पुं० [सं०] १. अवशिष्ट । वना हुमा । २ भोजन का खानेवाला । नीच (व्यक्ति) [को०] । बचा हुआ अश किो] । उच्छिष्ट भोजन - सज्ञा पुं० [सं०] १ जूठी वस्तु का भक्षण । जूठन उच्छेपण--संज्ञा पुं॰ [सं॰] दे॰ 'उच्छेप'। खाना । २. देवपित प्रसाद या पचमहायज्ञ से बचे हुए अन्न का छोप_-वि० [सं०] पाक ३ रनेवाल। संतानेवाल।। ग्रोप्रक भोजन को०] । [को०] । उच्छिष्ट भोजी--वि० [सं० उच्छिष्ट भोजिन्] [वि० सी० उच्छिष्टः उच्छोपण-ज्ञा पुं० [सं०] सुखाना । रस खीचना [को०] । माजिनी ] उचिठप्ट खानेवाला। जूठन खानेवाला । उन्छ,य उच्छ, यि-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ उदय । उगना। २ उन्नयन । उच्छिष्टमोदन--सज्ञा पुं० [स] मोम [को॰] ।' उत्थान । ३ उच्चता । ऊँचाई । प्रकर्ष । उत्कएँ । ४ विकास उच्छोर्पक'.-.-वि० [सं०] उन्नत यो उठे हुए सिरवाला (को॰] । बुद्धि । ५ घमइ । गर्व । ६ एक प्रकार का स्तन (को॰] । उच्छोपक-मज्ञा पुं० [सं०] १ शिरोपवान । तकिया । २. उत्तमाग उच्छवसन-संज्ञा पु० [सं०] १ साँस लेना । गहरी साँस लेना । अह - सिर [को०] । भरना । ३ शिथिलीकरण (को॰) । उच्छुल्क-वि० [स० उत् + शुल्क कोटिल्य के अनुसार विना चुगी उच्छवसित-वि० [सं०] १ उच्छ्वासयुक्त । २ जिसपर उच्छ्वास |" या महसून का (माल, वस्तु) । का प्रभाव पड़ा हो । ३ विकसित । प्रफुल्लित । फूला हुआ । उच्छ ल्क-क्रि० वि० विना चुगी या महसुन दिए। ४ जीवित । ५. बाहर गया हुशा। ६. अशा या भरोसे से उच्छष्क-वि० [सं०] शुल्क । सूखा हुआ (को०] । भरा हुग्रा । ढाढ़स बंधाया हुझा (को०) । ७ निश्चित । सतुष्ट। उच्छ---सज्ञा स्त्री॰ [सं० उत्+श्वस्> उच्छ्वस्> उच्छ, उच्छ्व प० (को॰) । उत्थ ] एक प्रकार की खाँसी जो गले में पानी इत्यादि के उच्छवास--संज्ञा पुं० [सं०] [वि॰ उछवासित, उरज्ञासित, उच्छ रुकने से आने लगती है। सुनसुनी। वासी ] १. ऊपर को खीची हुई सांस । उनास । २ मसि । उच्छ - वि० [सं०] १ वढा प्रा । २ फ्ना हुअा। सूजा हुग्रा। प्रवास । उ०—घूम उठे हैं शून्य मे, चमड़ घुमड़ घनघोर, ये स्यूल । ३ भारी ऊँचा (को॰) । किसके उच्छ्वास से छाए हैं सर्व अोर ।-साकेत, पृ० २७१। उच्छखल---वि० [सं० [सं० उच्छृङ्खल] १ जो शुख बद्ध न हो। यौ०-शोकोच्छ्वास । क्रमविहीन । अडवेंड । २ बधनविहीन । निरकुरा । स्वेच्छा ३ ग्रथ का विमाग । प्रकरण । ४ सात्वना (को०)। ५ चारी । मनमाना काम करनेवाला । उ०--अग अग ने नव प्रोत्साहन (को०)। ६ मरण (को०)। ७ हवा यो ननिको यौवन उच्च स्रन, fतु वैघा लावण्यपाश से नन्न तहास अचचत्र। (को०)। ८. फैलाव। वृद्धि (को०)। ६ भाग । --अनामिका, पृ० ५० । ३ उद्द हैं। अपवर। किसी का उच्छवासित-वि० [सं०]१ थका हुमा । अति । २ विएन । अधि। देवावे न माननेवाल।। •. ३ ६० 'उच्छ्वासित' (ले०] ।