पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३०९

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करेउवा केरेत | 1 करेजवा–सुझा पुं० [हिं० करेजा कलेजा । ३०--वन रोग देह करे --वि० [हिं० का,करा+एर (प्रत्य०)] कहा | कठिन । छतियाँ उपजेउ माय । दुखि दुखि उठे करेजवा लगि जनु कठोर । उ०---काया नगर सोहावन ज से ग्राम राम । जाय।-रहीम (शब्द॰) । | मन पवन तह छवि कठिन क्रेर काम ।-गुलाल, पृ० १३४। कर [हिं०] १ विशेप-पूर्व क्षेत्रों में 'या', 'वा' प्रत्यय लगाकर विशिष्ट निर्देश करर' ! करेरुवा--सज्ञई पुं० [देश॰] एक कैंटीली बेल ।। व्यक्त किया जाता है । विशेष—इसके पत नीद के प्रकार के होते हैं। चैत वेगास में करेजा -सा पुं० [स- यकृत अथवा हि कलेजा] कलेजी । इसमें हलके करदिया रग के फूल लगते हैं जिनकी केसर बहुत हृदय । उ०----(क) कीजो पार हरतार करेजे । गंधक देव लंबी होती है फूलों के झड़ने पर इसमें परवल की तरह फन अमिह जिउ दीजे -जायसी (शब्द॰) । (ख) मानो गिन्यो लगते हैं जिनमें वीज ही बीज भरे रहते हैं। यह खाने में बहुत हैमगिरि ग १ सुकेलि करि कढ़ि के कलुक कलानिधि के करेजे कड़ा होता है, यहाँ तक कि इसके पते से भी बी कुडुई गच्च ते ।-पद्माकर (शब्द॰) । निकलती है। फल की तरकारी बनाई जाती है ! लोगों का करेजी-वश जी० [हिं० करेजा] पशुयों के कलेजे का मास जो खाने विश्वास है कि प्रा नक्षत्र के पहले दिन इसे खा लेने से साल में अच्छा समझा जाता है । भर फोडा फुसी होने का डर नहीं रहता। करेवा के पत्त यौ०-५-पत्थर की फरेजी= पत्थर की खानों में चट्टानों की तह में पीसकर घाव पर भी रखते हैं। से निकली हुई पपड़ी की सी वस्तु जो खाने में सोंधी लगती है। करेलु---सा पुं० [हिं० करेला] १ एक प्रकार का बड़। मुगदर जो करेणु–सच्चा पुं० [सं०] १ हाथी । २ कणकार वृक्ष । कनेर । दोनों हाथो से घुमाया जाता है। इसका वजन : मुगदरी के करेणक-माझा पुं० [सं०] करेण नामक पौधे का विर्पला फल (को०]। बराबर होता है। इसका सिरा गोलाई लिये हुए होता है, करेणुका-सच्चा औ० [सं०] हथिनी । मादा । हाथी । इससे यह जमीन पर नहीं खड़ा रह सकता, दीवार इत्यादि करेणुभू-सा पु० [स०] हस्तिशास्त्र के प्रवर्तक पालकाप्य मुनि छिौ । से अड़ा कर रखा जाता है । २. फरेल घुमाने की कसरत । करेणुवती--संज्ञा स्त्री० [सं०] चेदिराज की कन्या का नाम जो नकुल क्रि० प्र०—करना । को व्याही गई थी । । कुरेलनी--सुली सी॰ [वैश०] लकड़ी की वह फरुई जिससे घास का करेणसुते--सेवा पुं० [सं०] दे॰ 'रेणुभू' कि०] । अटाला लगाते हैं । करेण ---सबा सी० [सं०] हथिनी [को०)। करेला--सझा पुं० [सं० कारवेल्ल) १ एक छोटी बैंल । उ०----‘भाव करेवा-सुझा पुं॰ [देश॰] चरियार । बला । खिरैटीं । झी भजी सील की सेमी' बने करोल करेला जी ।-धीर करेनर--संज्ञा पुं॰ [सं०] धूप । लोहबान । को॰] । ०, पृ० ११ ।। करेनुका-सच्चा स्त्री० [सेकरैण का ३० 'करेणुका'। उ०—केसोदास। विशेप--इसकी पत्तिय पाँच नुकीली फकों में कटी होती हैं । प्रवल करेनुका गमन हर मुकुत सुहसक सबद सुखदाई है। इसमें लबे लवे गुल्ली के प्रकार के फल लगते हैं जिनके छिलके --केशव० ग्र०, भा० १, पृ० १३७ । पर उभडे हुए लवे लबे और छोटे दड दाने होते हैं। इन फलों की तरकारी बनती है। करेला दो प्रकार का होता है। एक करेप-सी स्त्री० [सं० फरेब दे० 'करेव' । उ०—-वे करेप की बैसाखी जो फागुन मे क्यारियो में बोया जाता है, जमीन पर |वनी नौकरें, जती पर अजगर की खाल । कमरों में शेरो की फैलता है और तीन चार महीने रहता है। इसका फल कुछ पीला वाले यो अरना सिर सजी दिवाल चंदन, पृ० १४४ ! होता है, इसी से केजी बनाने के काम में भी आता है। दूसरी करेव--सा धी० [अ० *प एक करारा झीना रेशमी कपडा । बरसाती जो बरसात में बोया जाता है, झाङपर चढ़ता है उ०पचरग उपट्यौ दुपटो करेक कौ त्य'इत, बेल कारचोवी और सलि फूलता फलती है। इसका फन कुछ कुछ पतला जाम सोहति मोहति चित -रत्नाकर, भा० १, पृ० ६ । पौर ठोस होता है। कहीं कहीं जगतो करेला भी मिलता है। करे ---सब। पुं० [हिं॰ करेम | दे० 'करेनू'। उ०—वालों में से जिसके फल बहुत छोटे और फैज ए होते हैं । इसे करेली | भी करेमुमा और । प्रेमघन, भा॰ २, पृ० १८ । कहते हैं । करमू-संज्ञा पुं० [सं० कलम्बु] एक घास जो पानी में होती है । १. मला या इमेल की नवी गुरिया जो बड़े दानों या कोंढ़ेदार विशेष- यह पानी के ऊपर दूर तक फैलर्ती हैं। इसके इठले रुपयों के बीच में लगाई जाती है। हरे । ३ एक प्रकार की पतले और पोले होतें हैं, जिनको गाँठों पर से दो लवी तबी आठशवाजः । । पत्तियां निकलती हैं । लड* इठली को लेकर बाजा बजाते कलास ° [हिं० करेलाजंगनी करेला जिसके हैं। इस घास का लोग साग बनाकर खाते हैं। करे| अफीम छोढे छोटे और कई ए होते हैं । का विप उतारने को दवा है । जितनी अफीम पाई गई हो, करेवर -सी पुं० [हिं॰] दे० 'करेन । उपना करेम का रस पिला देने से दिप घात हो जाता है। रेत--सम पुं० [हिं० रात ६१ 'करात।