पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३०८

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জুতালায় ६२३ करुणागार--वि० [सं०] करुणा से ओतप्रोत । करुणामय । उ०— इसकी चौच वहुत लवी श्रौर नुकीली होती है। लोग इसका कही वह करुणा करुणागार, विपयरस में रत मेरे प्राण । पीठ शिकार भी करते हैं। पर लदा मोह का भार, कहाँ वह दया, करे जो प्राण ।- करुवा+-सया पुं० [हिं० करदा] ३० 'करवा' । मधुज्वाल, पृ० ५५ ।। करुवा'f-सज्ञा पुं० [हिं० कडar]दे० 'कड़ ग्रा' । उ०—सुदर सुगधमय करुणाष्टि - सच्चा स्त्री० [सं०] १ दयाद फिट ! कृपा । २ नृत्य की मंजरी मधुर तजि पवे कुसुम कहो वाके मन मावं क्यो । छत्तीस दृष्टियों में से एक जिसमे ऊपर की पलक दवाकर -मोहन०, पृ० ४१ । । अनुपात सहित नासिका के अग्र भाग पर दृष्टि लाते हैं। करुवार'–स पुं० [हिं० कलवारो] नाव लेने का एक प्रकार | का डाँड । । कणाद्र–वि० [सं० करुणाविकरुणा से प्रार्द्र या इवित होनेवाला। बिशेप---इस डाँड के पते में थमने का वास और हाड़ों से लबा करुणानिधान- वि० [सं०] जिसका हृदय करुणा से भरा हो । होता है। छोटी नावों में, जिनमें पतयार नहीं होती, वह माँझी दयालु ।। इसे लेकर पीछे की तरफ बैठता है जो अच्छा स्वेना जानता हो, करुणानिधि - वि० [सं०] जिसका हृदय करुणा से भरा हो । दयालु । कोकि नाव का सीधा ले जाना और घुमान। सव कुछ उमी करुणापर वि० [सं०] करुणाकर 1 दयालु । के हाथ में रहता है। करुणामय--वि० [स०] जिसमे बहुत करुणा हो । दयावान । उ०- करुवार--सा पुं० [देश०] लोहे का बद जिसके दोनों नुकीले छोर ला३ = वह शुभ मंन सा कर करुणामय अह शुभ तर गिनी शोभ मुड़े होते हैं और जो दो लकड़ियों या पत्थरो के जोई को दृढ़ सनी ।—केशव (शब्द०) । रखने के लिये जड जाता है । करुणाद्र–वि० [सं०] केरुणा से पीडित । दुखी । द्रवित । उ०-- करूq--वि० [हिं० फ. या फर पr] दे॰ 'कमा' । राजा हरिश्चंद्र को श्मशान में रानी शैव्या से कफन माँगते करूवेल -सा मी० [सं०कारुवेल इद्रायण को बेल या लता । उ०दृए, 'राम जानकी को वन गमन के लिये निकाते हुए पढ़कर कीन्हेसि ऊख मीठ से भरी । कीन्हेसि कल्वेल बढ़ फररी |ही लोग क्या करुणाद्रं नही हो जाते ?--चितामणि, भा० ३, जायसी ग्र०, १० २।। पृ० ४४। केरूर--वि० [हिं० का मा] ३० 'कड़ थे' ।। कुणावान-वि० [सं० करुणावान् करुणामय । दयालु । उ०--जव करूर -वि० [सं० ऊर]१. कठोर । कडा । उ०—चदेल बेनाफर तुम मुझे गभीर गोद में लेते हो, है करुणवान । मेरी छाया। मुख्य सो सूर। बघेल सुगोहिल लोह करूर –० स०, भी तब मेरा पा सृकती हैं नही प्रमाण ।--वीण, १० २५ । १० ५१ । २ झर । निदेय । ३०-प्रवास प्रवास छीजत अवश्य करुणासिक्त----वि० [सं०] करुणा से द्रवित । करुणापूर्ण। उ०- दुष्कर काल करून् । रामा यार्तं ऊपर समरथ साधु हुजूर 1-- नरेंद्र की ‘युबक कर के' पर कविता भी करुणासिक्त है । राम० धर्म०, १० २३८ । करूला-सय पुं० [हिं० का+ऊला (प्रत्य॰)]१ हाय में पहनने का हि० अ० १०, पृ० २३३। कड़ा। २. एक प्रकार का मध्यम सोना जिसकी कड़े के प्रकार कणी -वि० [सं० करुणिन्]१ दयनीय । दया का पात्र । २ दु खी । की का भी होती है । इसमें तोला पीछे कार र चाँदी होती | पीडित (को०] । है, इसी से यह कुछ सस्ता विफता है। ३ मुह में भरे हुए करुना - संज्ञा पुं० [म० करुणा] दे० 'करुणा'। पानी या और किसी पनीली वस्तु को जोर से मुंह से करुनाकार -वि० [सं० करुणाकर] दे॰ 'करुणाकर' । उ०—काकुस्थ निकालना । कुल्ला । करुन।कार । गुन निद्धि सुम्मट भार ।--१० रा०, २५ । करूष- सच्चा पुं० [सं०] एक प्राचीन देश का नाम । उ०—पूरब में त्रय करूप देश हैं देव किए निरमाना । पूरन रहे धान्य धन जन ते करुनानिधि -वि० [स० करुणानिधि]'दे० 'करुणानिधि' । उ०— सरित तड़ागहु नाना --रघुराज (शब्द॰) । देखि प्रीति सुनि बचन अमोले । एवमस्तु करुनानिधि बोले ।--- विशेष--रामायण के अनुसार यहे गगा के किनारे गया था और मानस०, ११५० । राम के समय में घोर वन था और ताडका नाम की राक्षस करुनामय -वि० [सं० करुणामय]६० ‘करुणामय' । उ०—ऐसे हि रहती थी। महाभारत के समय में यह देश वस गया था और मोहि'कौ करुनामय, सुर'स्याम ज्यो सुत हित माई ।—पोद्दार इसका राजा दतवक्र था। वायुपुराण और मत्स्यपुराण में अभि० ग्न २, पृ॰ २४९। करूप को विध्य पर्वत पर बतलाया गया है । इससे विदित होता है कि वर्तमान शाहावाद का जिला ही प्राचीन रूप देश है । कर----[स० कटु] कड़ा । तीखा । करेंसी--वि० [अ०] हाथो हाय चलनेवाला । लेनदेन के व्यवहार में करुल-सज्ञा पुं॰ [वैश०] एक प्रकार को बड़ी चिकिया। घन की तरह काम आनेवाला । जैसे,—करेंसी नोट । ' विशेष—यह जल के किनारे रहती है और घोंघे अादि फोहकर करेजा-सा पुं० [हि करेजा दे० 'करेजा' । उ---मौदि करेज़ खायर करती है । इसके डैने काले और छाती सफेद होती हैं। | पानि भी लोह-चित्रा प०, ३६ । ।