पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३०६

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फरिरत ६१० रो करही। खग, कमान, वान, करियारी मथ पूजि सुख भरही। करी-मा सी० [हिं० सी] चली । मनविला फल । -- ' रघुराज (शब्द॰) । कह सुगध फनि कसि निर मरी। मा अलि सग कि अबही करित–सङ्घा पुं० [सं०] मैथुन की एक स्थिति [क] । फरी ।—जायसी ग्र० (गुप्त), १० ९४) २ १५ मात्रा करिल -सा लौ० [हिं० कोंपल कोपल । नया कल्ला । उ०-- का एक छंद जिसको चौपाई या चौपैया भी कहते हैं । ३ - प्रोहि भांति पलुही सुखबारी । उठी करिन नइ कप सँवारी । चलत कहो मधुकर भूपाले ) दविनी पावत तुम पै हाल 1-- जायसी (शब्द॰) । सूदन (शब्द॰) । करिल?--वि० [हिं० काला] मे० 'काला'। उ०—करिल केस करी--वि० [सं० कर प्रत्य० की स्वी०]१ करने या करानेबानी। जैसे, विसहर विस भरे । लह लेहि कंवल मुख धरे !-जायसी प्रलयको । २ प्राप्त करनेवाली । नापन्न करानेवाली । जैसे, (शब्द०)। अयंकरी ।। करिवदन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०]जिनका मुह हाथी के ऐसा हो ।hणेश 1 करोन-f० [अ० करीन] १. साथ रहने या बैटनेवाला । २ करिवर--सज्ञा पुं० [सं०]श्रेष्ठ हाथी । उ०--जो सुमिरत सिधि होइ सद्श 1 समान । ३ मिला हेमा ।। गननायक करिवर वदन । करौ अनुग्रह सोइ बुदिरासि सुम गुन करीना-सज्ञा पुं॰ [देश॰] पत्य र गढ़ ने की चेन । टॉकी। सदन ।—मानस, १ ।। करीना -सी पुं० [हिं० फेरान] केन । मसाला । उ:करिवाँण-सज्ञा स्त्री० [हिं० कृपाण] कृपाण । छोटी तलवार । इन पर घर, उत है घर, धनिज न भए हाट । कर्म करीना तलवार । उ०—सीगणि जोडलीय करिवीण चौ० सो, बँचिकै, उठि फरि चाल वाट ।--रवीर (शब्द०)। पृ० ५८ ।। करीना--सज्ञा पुं० [अ० करीन] १ ढ । तजं । तरीका । अदाज। करिवैजयंती-सज्ञा पुं० [करिवंजयन्ती) हाथी पर स्थाई त झडा पा चाल । २ फर्म । तर वीज । जैसे,----इन सब चीजों को कराने निशान [को०)। से रख दो । ३ रीति । व्यहार । ऊर। भलीका । जैसेकरिशव करिशावक - सज्ञा पुं० [सं०] हाथी का वच्चा (को०)। दस 'मले अदमियों के सामने करीन से बैठ कर । ४. हुक्के के करिश्मा–सज्ञा पुं० [फा० किरिश्मह] दे० 'करश्मा' । उ०—-इस नीचे का फपहे से लपेटा हुआ वह भाग जो फरशी के मुहडे पर चमत्कार से दुनिया को चौंकाया । कुछ शक्ति करिश्मा माज ठीक वैठ जाता है । करीव-क्रि० वि० ]अ० फरीवसमीप । पास। नजदीक । निकट की। हमें दिखलाग्रो 1-सूत०, पृ० ६४ । करिस्कघ–सच्चा पुं० [सं० करिस्कन्ध] हस्तिसेना । गजसेना [को०)। २ लगभग । जैसे-५००) के करीव तो चंदा घा गया है। करिहस्ताचार—सच्चा पुं० [सं०]नृत्य में देशी भूमिचार के ३५ भेदो मे | यौ०-करीब करीव = प्राय | लगभग । करोबर निकटतम । पास का । करोवतरीन=सबसे निकटतम । विल। पास की। एक जिसमे इस स्थानक रचकर दोनो पैर तिरछे करके जमीन । पर रगड़ते हैं । करीवन--कि० वि० [अ० करीवन लगभग । प्रायः ।। करिहाँसिज्ञा स्त्री॰ [पुं० कटिभाग] कमर । कटि । उ०—यो कवि-वि० [अ० करोव+फु० ई (प्रत्य॰)] नजदीकी या निकट मिचकी मचको न हहा लचके करिही मचके मिचकी के - सवधी । करीवुलमर्ग-वि० [अ० करोबुलमर्ग] मरणासन्न । पद्माकर ग्र०, पृ० १३० । करीम'-वि० [अ०]१. कृपालु । दयालु । २ क्षमाशील । ३ उदार) करिहवां---सा ली० [सं० कदिभाग] १. कमर। कटि ।३ कोल्हू का वह गड़ादार मध्य भाग जिसमे कनेठा और भुजेला करीम-सज्ञा पुं० ईश्वर। उ०-कर्म करीमा लिखि रहा होनहार घूमता हैं । समरस्य !- कबीर (शब्द॰) । करिहा सज्ञा स्त्री० [स० कटि, प्रा० क]ि दे॰ 'करिहु । उ०—। मुहा०—-करीम लेना = भालू के नाखून काटना [--(कलदर) । कीरा सजि, सगे चले देलक --हम्मीर रा०, पृ० १२८ । करीमभार--सज्ञा पुं० [देश॰] एक प्रकार की जगली घास जो करिहाय७---सज्ञा स्त्री० [हिं० फरिहा कमर। कटिं। उ०—कर | चौपाया को हरी और सूखी विलाई जाती है । जमाय करिहार्यं नैन नभ और लगाए ।–रत्नाकर, भा० १, करामुख -सी पुं० [हिं० करी+ मुख हाथी के मुहवाले, गणेश प० २०५६ जी । उ०—साधुन को सुबसी करतार करीमुख के कर सीकर करीद्र--संज्ञा पुं० [१६ करी:३] १ ऐरावत हाथी । २ वहुत बड़ा या सोहै ।--मति० ॥ ०, १० ३६२ ।। करीमननफस--वि० [अ० विशाल हाथी । करीमुननफस-वि० [अ० करीमुन्न स] पुण्यात्मा । सदाचारी। करी- ज्ञा पुं॰ [सं० फत्ति] [ब्री० करिणी] १. हाथी । उ०-- नेकदिल । भला । उ०- जो पहचान कोई करीमुननफथ । ने दीरघ दरीन वैसे के देनदास केसरी ज्यों केसरी को देखे बने करी करीर-सज्ञा पुं० [सं०] १ बाँस का अँखुमा । वस का नया कुल्ता हो कैद सो अनसरी के कफस ।-कवीर म०, पृ० ३८६ ज्यो कैपत है !-केमा (शब्द॰) । करी-सज्ञा स्त्री० [सं० का १३काण्डिका] छत पाटने का २ करील का पेड । उ०—धारपो दलन करीर तुम वई रितुराजन पाय –दीन० ग्र०, प० २१६ । ३. घर ।। ‘पाहुतीर-1 घरन। कड़ी ।' करीरक---संज्ञा पुं० [सं०] युद्ध । लडाई [वै] ।