पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३०५

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करियार करिमा ६१९ तेल चोर कहे तेल कराही, घृत चोरहिं घृत माँझ गिराही - करिप---सा पुं० [सं०] महावत [को०]। करिपा--सज्ञा स्त्री० [स० कृपा] दे० 'कृपा'। उ०—करि करिपा अब कवीर सा०, पृ० ४६७ ।। हेरिए दोन भक्त जोरे करन ।–श्यामा०, पृ० १५८ । करिमा - सज्ञा पुं॰ [देश॰] चमारों के नाच का विदूषक । उ० करिपोत--सज्ञा प० [सं०] हाथी का बच्चा की। झम झम बाँसुरी करिगा वजा रहा, बेसुध सर्व हरिजन - करिवध-सुज्ञा पुं० [सं० करिवन्व] हायी के बंधने का खूट [को०] । ग्राम्या, पृ० ४४।। करिवदन-- करिद- सुज्ञा पुं० [सं० करीन्द्र] १. हाथियों में श्रेष्ठ । उत्तम करिवदन---संज्ञा पुं० [सु० करिवदन] दे० 'करिवदन'। हाथी ।वडा हाय। २. ऐरावत हायी । करिवू- संज्ञा पुं॰ [देश॰] अमेरिका के उत्तर ध्रुवीय प्रदेश का एक करिंदा--सच्चा पु० [हिं० करदा] दे० 'कारिंदा' । ३०--सौच करदा | वारहसिंगा ।। | पटवारी धीरज नेम विचारे -धेरण० वानी, भा० २. विशेष--इससे वहां के निवासियों को बहुत सी काम चलता है । पृ० १२४ । वे इसका मास खाते हैं, इसकी खाल ओढ़ते हैं, खाल से बवू करि--संज्ञा पुं०० करिन][स्त्री॰ करिणी]सूड वाला अर्थात् हाथी । या वरफ पर चलने का जूता बनाते हैं और हड्डी की छुरी करि –प्रत्य॰ [हिं०] १. से । २. लिये । ३. द्वारा । उ०तुम बनाते हैं। | करि तोपित पोषित गात । तुम ही मानत ह्र हैं तात -- करिमाचल- सुज्ञा पुं० [सं०] सिंह । शेर [को०] । ‘नद० ग्र ०' पृ० २३६ । । करिमुक्ता-सज्ञा स्त्री० [सं०] गजमुक्ता (को०)। करि - संज्ञा पुं० न० कर] दे० 'कर' । उ०-भरपति व्यामृ कहइ करमख-सज्ञा पुं० ।सुं०] गणेश [को०] । करि जोड़ तो तूठा तौंतिसौ कोडि-बी० रासो, पृ॰ ३० ।। करिया --संज्ञा पुं० [सं० कर्णी] १ पतवार । कनवारी। उ०करिकट--तज्ञा पु० [देश॰] किलकिला नाम का पक्षी जो मछलियाँ साग स्यामहि सुरति कराई। प? होहि जहाँ नैदेनदन ऊँचे पकडकर खाता है [ये०] । टेर सुनाइ । गए ग्रीषम पावस ऋतु आई सर्व काहू चित चाइ । करिश्रा--संज्ञा स्त्री० [हिं० काला दे० 'काला' । ३०-चंदन में तुम विनु ब्रजवासी यौं जीवे ज्यौं करिया बिनु नाइ । तुम्हरे कुरिता खुलि वनौ, करि गाई में समाई मनोहर समिरे । कह्यो मानिहैं मोहन चरन पकरि ले आई। अवेकी वेर सुर के --पोद्दार अमि० ग्रं॰, पृ० ९२९ । प्रभु को नैननि अाइ दिखाई ।—सूर (शब्द॰) । २. कर्णधार । करिका-सज्ञा स्त्री० [सं०] वह घाव जो नाखून की खरोच से हो माँझी । केवट। मल्लाह । ३ पतवार थामनेवाला माझी । | जाता है कि० ।। किलवारी धरनेवाला मल्लाह । उ०--(क) सु न रहई सुरकि जिव, अब हि काल सो आउ । सत्तर अहइ जो करिया, करिकु भ-मज्ञा पुं० [सं० करिकुम्भ हाथी का भाथा या मस्तक [को॰] । करिकुसु भ-सज्ञा पु० [स० करिकुसुम्भ] नागकेशर का सुगधित कवहु सो दोरइ नाच -- जायसी (शब्द॰) । (ख) सेतु मुले शिव शोभिजे केशव परम प्रकास । सागर जगत जहाज को करिया | चूर्ण (को॰) । | केशवदास ।—केशव (शब्द॰) । (ग) जल वूडत नाव राखिहैं। करिखई@----सुज्ञा स्त्री० [हिं० कारिख +ई (प्रत्य॰)] श्यामता। सोई जौई करिया पूरी । करी सलाह देव जी माँग में कहा कालापन । तुम ते दूरौ !-—सूदन (शब्द॰) । करिखा -सज्ञा पुं० [हिं० कालिख दे० 'कालिख' । करिया ---वि० [हिं० काला] काला । श्याम । उ०—(क) ताके करिगह-सज्ञा पुं० [हिं० करगह] दे॰ 'करगह' । बेचने वाले सम लागे । करिया मुख करि जाहि अभागे |--- करिणी--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ हस्तिनी । हथिनी । २. वह कन्या जो तुलसी (शब्द०)। (ख) तुलसी दुख दूनो दसा दुइ देखि कियो वैश्य पिता और शुद्ध माता से उत्पन्न हुई हो । ३. हस्ति मुख दारिद क करिया।—तुलसी (शब्द०) । पिप्पली । गजपिप्पली (को०)। करिया--संज्ञा पु॰ [देश॰] ईख को एक रोग जो रस सूखा देता है। करित–सुझा पुं० [६० या सु० कारित वह पदार्थ जो अर्डिया आज्ञा और पौधे को काला कर देता है। देकर वनवाया गया हो (ले०] । करिया —संज्ञा पुं० [हिं० काला] काली साँप । काला नाग । करिदारक - सज्ञी पु० [सं०] सिह । शेर [को॰] । उ०—-करिया का जिये रे भाई। गुरु काटे मरि जाई ।--- करिनासिका - संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का वाजा या वाद्य कि]। कवीर श०, भा० ३, पृ० १६ । । करिनिकrg)--सज्ञा स्त्री०सै० कणका] दे० 'कणिका' । उ०—अधि कमनीय करिनिका सव सुख सुदर कंदर।–नद ग्रं०, पृ०६। करियाई सच्चा श्री० [हिं करिया+ई (प्रत्य०)] १. काला पन् । स्याल्ले । कालिमा । श्यामता । २ कजली । कालिख । करिनी(५- सच्चा स्त्री० [सं० करिणी] दे॰ 'करिणी' । उ०—संग लाई फरिनी करि लेहीं । मानहु मोहि सिखावन देही ।—मानस, करीयाद-सा पुं० [सं० करिपावस]जलहस्ती[को०)। करिया--सज्ञा स्त्री० [सं० कलकारी] १ कलियारी विप । २. ३।३१। लगाम । उ०—ठी भवन भूपति रानिन युत छठी कृत्य सव