पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/३०३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

करार ६१७ कन करात-नाश ही० [अ० कैरट] ६० 'कट' । हुए भूरा होता है और इसकी गरदन के नीचे का मार्ग सफेद कराना–क्रि० स० [हिं० करना का १० रूप] करने में लगाना । कुछ होता है । यद्यपि संस्कृत कोषो में 'काकूर' और 'क्रौंच करने के लिये उत्प्रेरित करना । दोनो एक नहीं माने गए हैं तथापि अधिकाश लोग 'कर कुन' करावत- संज्ञा स्त्री॰ [अ० करावत] १ नजदीकी । समीपता । २ को ही ‘क्रौंच पक्षी मानते हैं। | नाता । रिश्ता । रिश्तेदारी । संवध । कराँत--सुज्ञा पुं० [सं० करपत्र, प्रा० करक्त] लकडी चीरने का प्रार।। कावित दार-वि० [अ० कवित+फा० दार) रिश्तेदार ! संवधी । कररांती-तज्ञा पुं० [हिं० करीत] करत या अारा चलानेवाला । करावतदार-: ती स्त्री० [अ० करीव + फा० दार+ई (प्रत्य०)] करा--सा स्त्री० [सं० कला] ६० कना' । उ०—(क) कीन्हेसि रिश्तेदारी । नातेदारी। अपनायत । संवैध । । पुरुप एक निरमरा । नाम मुहम्मद पूनो करा 1-जायसी (शब्द०) । (ख) तुम हुत मयो पतों की करा। सिहल दीप करावा--सज्ञा पुं० [अ० करोबा, ने० केरका, हि० करवा] शीशे का . वडा वरनन जिसमे अर्क इत्यादि रखते हैं । कोच का छोटे मुहै। अयि उडि पर ।--जायसी (शब्द॰) । का पात्र । शशै को सुराही । करा-सच्चा स्त्री० [?]सौरी या सवरी नाम की मछली जिसकः मास | खाया जाता है। कराम- संज्ञा पु० [न० फर्म] दे॰ 'कर्म' । उ० -नामु दाम इनानु अरु काम । तिस मिले पदारय जिस निखिपा के राम ।कर सज्ञा पुं॰ [देश०] १ सन या मूज का रेश।। २ टूव दल ।। प्राण०, पृ० १५३ ।। करोइत सज्ञा पुं० [सं० किरात हि० कारा, फाला] एक प्रकार का कुराम--सज्ञा स्त्री॰ [अ॰] १ प्रतिष्ठ।। २ ।। ३ चमत्कार। | काला साँप जो बहुत विपैल होता है । । छप्पर के ऊपर कराइन--सज्ञा पुं० [हिं० खर+सं० अयन = घर ४ बुजुर्ग । ५ वडाई । कर।मन कातवीन-संज्ञा पुं० [अ० किरामा कातडीन] इम्लामी धर्म | का फुस । के अनुसार वे दैवी व्यक्ति जो नो के पुण्य या पाप कम कराई-- सज्ञा सी० [हिं० केराना) दाल का छिलका । उर्द, अरहर का लेखा ना तैयार करते हैं। उ ।—कर मिन क.तू न की | मोदि के ऊपर की भूसी । कराई- सा सी० [हिं० फारा, काला]कालापन 1 श्यामता। उ० - पुस्तक में लिखा है कि इसकील सदैव दुखी रहता है ।--- कवीर म०, पृ० २२० । मुख मुरली सिर मोर पखौमा वन वन घेनु चराई । जे जमुना जल रग रंगे हैं ते अजहू नहि तजत कराई । —सूर करामात- सज्ञा स्त्री० [अ० करामत' का यहु०] चमत्कार । अद्भुत व्यापार । करश्मा । जैसे,—ाबा जी, कुछ करामात दिखाम्रो । कराइ–सच्चा स्त्री० [हिं० करना] १ करने या करने का भाव । २ करामाति--वि० [हिं० करामाती दे० 'करामाती' । उ०—दुह” करा| करने या कराने की मजदूरी । । माति सम गुनो, आप और हम्मीर ।--हम्मे र रा', पृ० ६५ } कराकुल-नशा पुं० [स० कलाडू र]दे० 'करोकुल' । उ०- कोउ तलही। करामाती वि० [हिं० करामात + ई (प्रत्य॰)]१ करामात दिखानेमुगवी, को कुराकुल मारे ।--प्रेमघन॰, भ० १, पृ० २६ ।। वाला। करश्मा दिखानेवाला । सिद्ध । २ करमत से संबधित । कराग--सच्ची पुं० [सं० फराय कराग्र 1 हाथ । उ०—-वधिया कराग उ०• • कई योगियों के साथ ब्वाजा मुइनुद्दीन का भी ऐसा ही | वाहते, रूक जाग चतुरगिणी ।-रा० रू०, पृ० ८५ । व रामाती दगल कहा जाता है । इतिहास, पृ० १५ । कराघात--सा मुं० [सं०] हाथ का अधिात । हाथ का प्रहार । करायजा--संज्ञा पुं० [स० कुटज] १ कोरेया । ३. इंद्रजवा । उ०-एक लहर | भेरे उर में मधुर करघातो से देगी खोल करायल --संशा स्त्री० [सं० फाला] कभी। मंगरैला । हृदय का तेरा चिर परिचित वह द्वार |-अनामिका, करायल'-सी पुं० [सं० कराल तेल मिली हुई राल । पृ० ३५ । करायिका--सज्ञा स्त्री० [सं०] एक पक्षी । सारस क’ एक छोटा कराड -सा पुं० [सं० यार= खरीदनेवाली अश्वी सु० किराट] १ प्रकार को०] । महाजन ।-(हिं॰) । ३ बनियो की एक जाति जो पजाव के कुरार-मज्ञा पुं० [४० करत = ऊँची । हि० = फट = कटना+न० उत्तरपश्चिम भाग में मिलती है । ये लोग महाजनी का आर = किनारा नदी का ऊँचा किन र जो जन के काटने से व्यवसाय करते हैं । वनता है! कैराड़न [५.-#ि० अ०[सं० कराल ॐची अवज में वलिन । T, नो इची अावाज में बोलना । जोर करार-- सा पुं० [५ करार- सज्ञा पुं० [अ० फरार] १. पिरत । व्हाव । से बोलना। उ०-पक रहा लव कराडिया में वे अगुल ५ न्न । क्रि० प्र०-- पाना। -देना होना । दि ज चीन्हो वेलडी, विण लाखौणा पन्त ।--ढोल, | : धैर्य । घरज की । संतोप । उ०-- दिल को फरार ० २ १० ८६ । ३ प्रारीन । पैन । -: दिन को नहीं कर । जो मेरे ले कराव--सज्ञा पुं० [अ० फीरात एक तौल जो चार जौ फी होती हैं । विशेप-यह प्राय सोनी, दी या दवा तौलने के काम में आती नरिनेदु प्र०, भा० २ १०५ है। इसका वजन लगभग साढे तीन ग्रेन होता है।